घातक है राष्ट्रविभाजक शक्तियों का बेलगाम होना

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 निर्मल रानी 

मुंबई का बाल ठाकरे घराना अपने विवादास्पद बयानों तथा आक्रामक राजनीति को लेकर प्राय: सुर्खियों में रहता है। बाल ठाकरे की क्षेत्रीय पार्टी शिवसेना द्वारा दोपहर का सामना नामक एक पार्टी मुखपत्र मुंबई से ही प्रकाशित किया जाता है जिसमें ठाकरे घराने द्वारा दिए गए विवादास्पद बयानों तथा उनके द्वारा किसी विशेष क्षेत्र, समुदाय अथवा वर्ग के प्रति जहर उगलने जैसे वक्तव्यों को अथवा इन पर आधारित ठाकरे परिवार के साक्षात्कार को प्राथमिकता से प्रकाशित किया जाता है। और इसी नाममात्र मुखपत्र सामना में प्रकाशित ऐसे विवादित व राष्ट्रविरोधी वक्तव्यों को अन्य समाचार पत्र, समाचार एजेंसियां यहां तक कि टीवी चैनल्स भी उनके हवाले से प्रकाशित व प्रसारित करते रहते हैं। परिणास्वरूप इस नाममात्र पार्टी मुखपत्र को न केवल बेवजह का प्रचार मिलता है बल्कि ऐसी राष्ट्रविरोधी विचारधारा से प्रभावित लोगों के मध्य इसका आधार भी बढ़ता है।

बहरहाल, हर बार की तरह एक बार फिर इसी शिवसेना के मुखपत्र सामना के माध्यम से मुंबई में उत्तर भारतीयों के विरुद्ध ठाकरे घराने द्वारा जंग छेड़ी जा चुकी है। इस बार उनके निशाने पर हैं उन्हीं के पूर्व सहयोगी संजय निरुपम। संजय निरुपम भले ही आज कांग्रेस पार्टी में क्यों न हों परंतु इसमें कोई दो राय नहीं कि उन्होंने अपने राजनैतिक कैरियर की शुरुआत शिवसेना से ही की थी तथा वहीं से वे पहली बार रायसभा के सदस्य भी बने थे। परंतु राजनैतिक मतभेदों के चलते निरुपम ने राज ठाकरे से पहले ही बाल ठाकरे की शिवसेना से बिदाई ले ली और कांग्रेस का दामन थाम लिया। इन्हीं संजय निरुपम ने पिछले दिनों मुंबई में यह कह दिया कि मुंबई महानगर में दूध बेचने वाले, ऑटो रिक्शा व टैक्सी चलाने वाले, सबी बेचने वाले तथा पान की दुकानें चलाने वाले अधिकांश लोग उत्तर भारतीय ही हैं। और यदि इन्होंने एक दिन के लिए भी अपना काम बंद कर दिया तोमुंबई ठप्प हो जाएगी। संजय निरूपम के इस वक्तव्य में न तो कोई चेतावनी नजर आती है न ही धमकी। बजाए इसके वे एक वास्तविक स्थिति पर बात करते दिखाई दे रहे हैं। परंतु बाल ठाकरे परिवार ने संजय निरुपम के इस बयान को अपने लिए एक राजनैतिक हथियार के रूप में प्रयोग करना बेहतर समझा और इसके प्रत्योत्तर में क्षेत्रवाद का ाहर उगलना शुरु कर दिया।

बाल ठाकरे के पुत्र उद्धव ठाकरे ने संजय के इस बयान पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि यदि उनमें हि मत है तो वे मुंबई बंद करके दिखाएं। उध्दव ने यहां तक कहा कि मैं संजय निरुपम के दांत तोड़ दूंगा। संजय ने भी इसके जवाब में कहा कि यदि ठाकरे परिवार में हिम्‍मत है तो वे मुंबई में बिना सुरक्षा के यात्रा करके दिखाएं। उधर इसी वाक्युद्ध के बीच मुंबई में विभिन्न स्थानों पर लगे संजय निरुपम व कांग्रेस नेता कृपाशंकर सिंह के पोस्टरों को फाड़े जाने व उनके मुंह पर कालिख पोते जाने का सिलसिला शिवसैनिकों द्वारा शुरु कर दिया गया। शिवसेना के एक मराठी विधायक ने तो यहां तक कहा कि वे छठ पर्व के पश्चात् अपने पद से त्यागपत्र देगा तथा संजय निरुपम के मुंह पर कालिख पोतेगा। संजय निरूपम के विरुद्ध आक्रामक बयानबाजी करने की तो शिवसेना में मानों होड़ सी लग गई। और यह होड़ संजय निरूपम अथवा उत्तर भारतीयों के विरुद्ध जहर उगलने के साथ-साथ बाल ठाकरे व उध्दव ठाकरे को खुश करने के लिए भी है। शिवसेना के रायसभा सदस्य तथा सामना के संपादक संजय राऊत ने तो यह भी कहा कि संजय निरूपम उनकी नारों में तिलचट्टे(कॉकरोच)के समान हैं और वह उसे कुचल डालेंगे।

उपरोक्त सारी की सारी बयानबाजियां इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए कांफी हैं कि ठाकरे घराना महा इसीलिए उत्तर भारतीयों तथा उत्तर भारतीयों के हितों की बात करने वाले लोगों के विरुध्द बयानबाजी व अशिष्ट शब्दावली का प्रयोग समय-समय पर करता रहता है ताकि वह मराठी मतों को अपने पक्ष में कर सके तथा राय की सत्ता पर अपना कब्‍जा जमा सके। परंतु यहां प्रश्न यह उठता है कि क्या देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाली इस प्रकार की राजनैतिक शैली, असभ्‍य शब्दावली तथा हिंसक व आक्रामक एवं भड़काऊ राजनीति को इसी प्रकार सहन करते रहना चाहिए अथवा इनपर नियंत्रण पाने की भी जरूरत है? अब जरा पिछले दिनों अन्ना हजारे के सहयोगी प्रशांत भूषण के साथ कुछ युवकों द्वारा की गई मारपीट की घटना को याद कीजिए। प्रशांत भूषण ने वाराणसी में मीडिया के समक्ष यह कह दिया था कि कश्मीर में जनमत संग्रह कराया जा सकता है। उनके इस वक्तव्य से नाराज होकर कुछ युवकों ने नई दिल्ली में उच्चतम् न्यायालय में प्रशांत भूषण के चैंबर में घुसकर उन्हें मारा-पीटा। इस घटना की देश में अधिकांशतय: निंदा की गई। उस अहिंसक कार्रवाई को किसी ने भी सही नहीं ठहराया। हालांकि प्रशांत भूषण के वक्तव्य की भी आलोचना जरूर की गई। परंतु उनके साथ हुई मार-पीट को सिवाए बाल ठाकरे के और किसी भी राजनैतिक दल ने उचित नहीं कहा। इस घटना के संबंध में अपनी टिप्पणी करते हुए बाल ठाकरे ने उसी शिवसेना के मुखपत्र सामना में दीपावली विशेषांक के अंतर्गत् प्रकाशित अपने एक साक्षात्कार में प्रशांत भूषण की टिप्पणी को राष्ट्रविरोधी टिप्पणी बताया। उन्होंने यह भी कहा था कि देश को तोड़ने की बात करने वाले किसी भी व्यक्ति को सबंक सिखाना ही होगा। उन्होंने हमलावर युवकों की भरपूर प्रशंसा भी की थी तथा यह कहा था कि यह नवयुवक शाबाशी पाने के लायक़ हैं तथा ऐसे लोग जो देश को बांटने का काम कर रहे हों उनको ऐसा ही सबक़ सिखाया जाना चाहिए। इस विषय पर ठाकरे ने कहा कि पहला गुनाह भड़काने वाले का होता है जबकि दूसरा गुनाह पीटने वाले का। शिवसेना की ओर से यह तर्क भी दिया गया कि यदि प्रशांत भूषण को अपनी बात रखने का अधिकार है तो दूसरों को अपना क्रोध व्यक्त करने का हंक भी हासिल है।

अब जरा प्रशांत भूषण की पिटाई के संदर्भ में बाल ठाकरे व उनके मुखपत्र सामना की टिप्पणियों को उत्तर भारतीयों के प्रति उन्हीं के द्वारा अपनाए जा रहे रवैये के मापदंड पर तौलने की कोशिश कीजिए। प्रशांत भूषण के मुंह से निकली जनमत संग्रह कराए जाने की बात बाल ठाकरे की नारों में ऐसी थी कि वह पीटे जाने के योग्य थे। जबकि फिलहाल प्रशांत भूषण की देश में न तो कोई राजनैतिक हैसियत है न ही कोई व्यापक जनाधार, न ही देश की संसदीय, प्रशासनिक अथवा निर्णय लेने वाली किसी संस्था में उनका कोई दंखल अथवा भूमिका है। जबकि ठीक इसके विपरीत बाल ठाकरे स्वयं व उनका घराना व उनके राजनैतिक संगठन शिवसेना का देश की राजनीति में पूरा दंखल है। शिवसेना महाराष्ट्र में सत्ता में रह चुकी है तथा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के शासन काल में शिवसेना के नेता देश के लोकसभा अध्यक्ष पद पर आसीन हो चुके हैं। आज भी शिवसेना देश की मुख्‍य विपक्षी पार्टी भारतीय जनता पार्टी की खास सहयोगी पार्टी है। तथा महाराष्ट्र में भाजपा-शिवसेना मिलकर चुनाव भी लड़ते हैं व मौंका पड़ने पर राय की सत्ता भी सांझी करते हैं। ऐसे में सवाल यह है कि उस बाल ठाकरे अथवा उनकी पार्टी शिवसेना या उनके मुखपत्र सामना के द्वारा उत्तर भारतीयों के विरुध्द महा अपने राजनैतिक फायदे के लिए जहर उगलना क्या देश की एकता व अखंडता को नुंकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं है? क्या इस प्रकार की बयानबाजियां राष्ट्रविरोधी नहीं हैं? मुंबई में बैठकर उत्तर भारतीयों पर अत्याचार करना, उन्हें मुंबई व महाराष्ट्र छोड़कर जाने के लिए कहना तथा उनपर आक्रमण करना आदि राष्ट्रविरोधी कार्रवाईयां नहीं हैं?

ऐसे में सवाल यह है कि जब प्रशांत भूषण जैसा गैर राजनैतिक व साधारण व्यक्ति अपने गैर प्रभावशाली वक्तव्य के लिए ठाकरे के अनुसार पिटाई का हंकदार है तो देश को तोड़ने की प्रमाणित व साक्षात कोशिश करने वाला ठाकरे घराना आखिर किस प्रकार की सजा का पात्र है? केवल उत्तर भारतीय ही नहीं बल्कि ठाकरे घराना देश के जिस भी विशिष्ट व्यक्ति को जब भी चाहता है यूं ही धमकियां व घुड़कियां देने लगा जाता है। कभी शाहरुख़ खान इस घराने को पाकिस्तानी नजर आने लगते हैं तो कभी सचिन तेंदुलकर को केवल इसलिए घुड़कियां मिलने लग जाती है क्योंकि तेंदुलकर ने मुंबई को पूरे भारत की मुंबई क्यों कह दिया। कभी अन्ना हजारे के अनशन को बाल ठाकरे पाखंड करार देते हैं तथा उनपर ऐसे बेहूदा आरोप लगाते हैं कि अन्ना हजारे बाहर अनशन करते दिखाई देते हैं और पर्दे के पीछे छुपकर जूस पीते हैं। एक प्रमुख सूक्ति के अनुसार जिसका स्वंय पर नियंत्रण नहीं वह दूसरों पर शासन नहीं कर सकता। निश्चित रूप से बाल ठाकरे का घराना ऐसे ही अनियंत्रित, अशिष्ट राजनैतिक घरानों में है। इसे व इसकी राष्ट्रविरोधी वाणी को समय रहते शीघ्र नियंत्रित किए जाने की सख्‍त जरूरत है।

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