खाली हाथ!


ममता बनर्जी पांच दिनों तक दिल्ली प्रवास पर रही पर उन्हे मुख्य विपक्षीदल कांग्रेस से कोई भाव नहीं मिला। शरद पवार ने तो मिलने से ही कन्नी काट ली। ममता जिन विपक्षी नेताओं से मिली उनमें २०२४ के चुनाव में भाजपा को पटखनी देना तो दूर भाजपा का बाल भी बांका करने की दम नहीं है।
किसान नेता राकेश टिकैत जो ममता के समर्थन में पश्चिम बंगाल तक जा पहुंचे थे उन्हे ममता ने दिल्ली आकर भी घास तक नहीं डाला।
अलवत्ता दीदी १६ अगस्त को देशभर में ‘खेला होबे दिवसÓ मनाने का ऐलान जरूर कर गई।
पश्चिम बंगाल में प्रचंड बहुमत से तीसरी बार सरकार बनाने में सफ ल रहने वाली तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी २६ जुलाई से २९ जुलाई तक दिल्ली प्रवास पर रही। दिल्ली में ५ दिन रूकने का उनका मकसद विपक्षीदलों को एककर २०२४ के आम चुनाव में भाजपा को सत्ता से उखाड़ फेंकने की ठोस शुरूआत करने की थी। पर हालात बताते हैं कि इस दिशा में उन्हे कुछ भी हाथ नहीं लगा।
अंतत: वो १६ अगस्त को देशभर में ‘खेला होबे दिवसÓ मनाने का शिगूफ छोड़कर कोलकाता वापस लौट गई।
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सरकार बनाने के बाद पहली बार लम्बे दौरे पर दिल्ली जिस मकसद से दीदी आई थी वो न केवल बुरी तरह असफ ल दिखा वरन् उन्हे भविष्य का आइना भी दिखा गया। उन्हे उम्मीद थी कि पश्चिम बंगाल में तीसरी बार सरकार बना लेने व भाजपा को पटखनी देने में सफ लता के बाद कांग्रेस सहित सभी विपक्षीदल उन्हे हाथोंहाथ लेगें पर जब वो पांच दिन में बामुश्किल केवल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी व डीएमके नेताओं से ही मिल सकी तो उन्हे भी समझ में आ गया होगा कि भाजपा के खिलाफ  विपक्षी एकता इतनी आसान नहीं है। और यह भी भान हो गया होगा कि कदाचित कोई भी मजबूत दल उन्हे विपक्षी गठबंधन का अगुवा व नेता स्वीकारने को भी तैयार नहीं है।
ममता दीदी को अच्छी तरह पता है कि भाजपा के विरूद्ध विपक्षी एकता तब तक सार्थक सिद्ध होने वाली नहीं है जब तक कांग्रेस का समर्थन नहीं हासिल होगा। इसके लिये उन्होने सोनिया गांधी से मिलने के पहले ताना-बाना भी बुना था। उन्होने एक पत्रकार वार्ता कर भाजपा नीत केन्द्र सरकार व भाजपा पार्टी पर तीखे हमले बोले। उन्होने भाजपा के चुनावी नारे पर कटाक्ष करते हुये कहा कि बहुत हुये अच्छे दिन अब सच्चा दिन देखना चाहती हूँ।
उन्होने भाजपा को रोकने के लिये विपक्ष का चेहरा बनाये जाने के मुद्दे पर मिली जुली प्रतिक्रिया दी। जब उनसे पूछा गया कि आप क्या विपक्ष का चेहरा बनना चाहती हैं? ममता ने कहा मै कोई राजनीतिक भविष्य वक्ता नहीं हूँ यह परिस्थिति, संरचना पर निर्भर करता है। अगर कोई और नेतृत्व करता है तो मुझे समस्या नहीं। जब इस मुद्दे पर चर्चा होगी तब हम निर्णय ले सकते हैं। मै अपना निर्णय किसी पर थोप नहीं सकती।
सूत्रों का कहना है कि सुबह पत्रकार वार्ता करने के बाद शाम को सोनिया गांधी से उनके आवास पर मिली ममता बनर्जी का जिस अनमने ढंग से सोनिया व राहुल गांधी ने स्वागत किया उससे ही दीदी का दिमाग घूम गया। किसी तरह चाय पर इधर उधर चर्चा करने के बाद जब ममता दीदी बाहर निकली तो सोनिया, राहुल ने उन्हे बाहर तक छोड़ने की बजाय घर की चौखट से ही बाय-बाय कर दिया। तिलमिलाई दीदी करती भी क्या? इसलिये उन्होने एक बार पुन: विपक्षी एकता राग अलापा। पत्रकारों के बार-बार यह पूछने पर कि सोनिया गांधी विपक्षी एकता के लिये तैयार है अथवा विरोधी दल का नेता क्या आप बनेगी या कोई और? तो ममता दीदी ने कहा उनकी सोनिया जी से मौजूदा हालात और विपक्ष की एकजुटता पर चर्चा हुई। उन्होने कहा सबको एक होना होगा। विपक्षी एकता में उनकी क्या भूमिका होगी इस सवाल पर ममता ने कहा हम लीडर नहीं कैडर है। ममता ने कहा अभी कई राज्यों में विधान सभा चुनाव होने वाले है। हम संसद सत्र के बाद सभी राजनीतिक दलों के साथ मिलकर बात करेंगे। उन्होने कहा कि अगर विपक्षी मोर्चे पर गंभीर होकर काम करते है तो छ: महीने में नतीजे दिख सकते हैं।
राजनीतिक विश£ेषकों का कहना है कि ममता दीदी को सबसे बड़ा झटका राकांपा प्रमुख शरद पवार से लगा जब दिल्ली में रहते हुये भी उन्होने ममता से मिलने से कन्नी काटी। जबकि इसी बीच श्री पवार राजद नेता लालू प्रसाद यादव व सपा नेता रामगोपाल यादव से मुलाकात की थी। ऐसे में केजरीवाल (आम आदमी पार्टी) अथवा कनिमोझी (डीएमके) से मिलने से उन्हे क्या हासिल होगा वो अच्छी तरह जानती है।
यहां पर स्मरण कराना जरूरी है कि कुछ दिनों पहले ही श्री पवार के घर पर ही १४ विपक्षीदलों की एक बैठक हुई थी और यह बैठक तृणमूल प्रमुख ममता के नये मित्र बने कभी भाजपा के खास रहे पूर्व केन्द्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा के राष्ट्रमंच के नाम पर हुई थी। तो आखिर ऐसा क्या हो गया कि श्री पवार ममता दीदी से नहीं मिले।
समझा जाता है कि श्री पवार को अच्छी तरह मालूम है कि कांग्रेस कभी भी ममता बनर्जी को विपक्षी एकता का सूत्रधार व नेता स्वीकार नहीं करेगी। उन्हे यह भी पता है कि ममता दीदी की पार्टी केवल और केवल क्षेत्रीय पार्टी है फि र जिस तरह उनका केन्द्र सरकार से आज तक टकराव जारी है और जिस तरह केन्द्र सरकार की जांच एजेन्सियां उनकी पार्टी के कई नेताओं की कारगुजारियों पर शिंकजा कसने में जुटी हैं उससे उनका बच पाना आसान नहीं है।
राजनीति के घाघ खिलाड़ी श्री पवार जानते है कि केन्द्र सरकार से टकराव लेना उनके हित में भी नहीं है। जिस तरह केन्द्र सरकार ने अलग से सहकारिता मंत्रालय बनाकर उसकी जिम्मेदारी अमित शाह को सौपी है वो कम से कम उनके व उनके जैसे सहकारिता के माफियाओं के लिये किसी गंभीर खतरें के संकेत से कम नहीं है।
कौन नहीं जानता कि महाराष्ट्र में पवार जैसे अनेक राजनेताओं की राजनीति सहकारिता के बलबूते ही जमी हुई है।
सूत्रों का कहना है कि श्री पवार की जाने भी दें तो आखिर ममता बनर्जी से सपा, बसपा, बीजू जनता दल, वाईआरएस एवं टीआरएस जैसे क्षेत्रीय दलों के नेता भी क्यों नहीं मिले। इस सवाल का जवाब भी ममता बनर्जी को ही ढूंढना होगा।
राजनीतिक समीक्षकों का कहना है कि चौंकाने वाली बात तो यह है ममता दीदी ने उन किसान नेता राकेश टिकैत से मिलना गवारा नहीं किया जो टिकैत पश्चिम बंगाल में चुनाव के दौरान उनके समर्थन में कोलकाता में डेरा डाले हुये थे।
यही नहीं टिकैत  २०२२ के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में भाजपा को हराने का बार-बार ऐलान भी कर रहे है और ममता बनर्जी का भी यही लक्ष्य है तो भी टिकैट से उनका परामर्श छोड़ मिलने तक गंवारा न करना संदेह तो पैदा करता ही है।
सूत्रों के अनुसार लब्बोलुआब यह है कि ममता बनर्जी का विपक्षी एकता का पहला प्रयास कतई असफ ल व निराश करने वाला ही रहा है। भविष्य में क्या गुल खिलेगा यह तो भविष्य ही बतायेगा पर आसार अच्छे नजर नहीं आते।
 
खेला होबे दिवस मनाने का ऐलान
दिल्ली दौरे से जब ममता दीदी को कोई खास सफ लता  नहीं मिली और भविष्य भी दमदार नजर नहीं आया तो उन्होने १६ अगस्त को देशभर में खेला होबे दिवस मनाने का ऐलान करके कांग्रेस सहित अन्य विपक्षीदलों को यह संदेश देना चाहा है कि वो केन्द्र सरकार व भाजपा से टक्कर लेने में पीछे हटने वाली नहीं है।
ममता का कहना है कि जब तक भाजपा पूरे देश से साफ नहीं हो जाती, तब तक सभी राज्यों में खेला होगा। बीजेपी को देश से खदेड़ने तक खेला चलता रहेगा।
ममता बनर्जी कह रही है कि बीजेपी को देश से खदेड़े बिना लोकतंत्र को बचाना मुश्किल होगा। हमने बंगाल में एक बार खेला दिखा दिया है। अब देश भर में फिर से भगवा पार्टी को खेला दिखाएंगे। 16 अगस्त को हम खेला होबे दिवस मनाएंगे।
बुध को हैलो हाय, गुरू को खंजर
कांग्रेस एवं सोनिया गांधी तो उसी दिन से ममता बनर्जी से अति कुपित व सावधान रहने लगी थी जिस दिन से उन्होने कांग्रेस छोड़कर अपनी नई पार्टी टीएमसी बना ली थी। तब से भले ही शिष्टचारवश वो दीदी से मिलती रही हैं पर दीदी से दिल नहीं मिला पाई हैं।
आखिर मैडम सोनिया, दीदी ममता पर भरोसा करें भी तो कैसे करें। अतीत की जाने भी दें तो ताजी घटना ने उन्हे झकझोर कर रख दिया है।
बुधवार को जब ममता बनर्जी दिल्ली में सोनिया गांधी के घर पर चाय पर चर्चा कर रही थी तो त्रिपुरा में उनके रणनीतिकार कांग्रेस को बड़ा झटका देने की तैयारी में मशगूल थे। आखिर गुरूवार को त्रिपुरा में दीदी ने बड़ा खेला कर ही डाला। त्रिपुरा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सुबल भौमित का सहित कई कांग्रेस नेताओं ने टीएमसी का दामन थाम लिया।
ज्ञात रहे अगले साल त्रिपुरा में विधान सभा चुनाव होने वाले है और दीदी की निगाहें त्रिपुरा पर लग गई हैं। बंगाल में प्रचंड जीत के बाद अब वह हर हाल में त्रिपुरा में टीएमसी की सरकार बनाने का हर दांव चल रही हैं।
इस घटना के बाद से कांग्रेस आलाकमान और सतर्क हो गई हंै। उन्होने राहुल गांधी, प्रियंका गांधी व अन्य वरिष्ठ सहयोगियों से चर्चा के बाद तय कर लिया है कि कांग्रेस कीे टीएमसी से दूरी बनाकर चलने में ही भलाई है। 

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