-संजय सिन्हा
पश्चिम बंगाल की राजनीति में एक अजीब सा बदलाव दिख रहा है.राज्य के मुसलमानों को वरीयता देने वाली तृणमूल कांग्रेस सरकार ने अब अचानक हिन्दुओं की तरफ रुख कर लिया है,मानो सरकार का ह्रदय परिवर्तन हो गया हो.एकदम अचानक से बारह हज़ार हिंदी पुजारियों को सम्मानित करना,हिन्दुओं के धार्मिक कार्यक्रमों में सक्रियता बढ़ाना आदि गतिविधियां ये बतातीं हैं कि सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस सरकार को डर है कि कहीं राज्य के हिन्दू वोटर्स भाजपा के पाले में न चले जाएं.,यही कारण है कि ममता सरकार ने अपनी रणनीति को अचानक इस तरह से बदल दिया है. पुरानी कहावत है कि लोहा लोहे को काटता है..पश्चिम बंगाल की मुख्यो मंत्री ममता बनर्जी भी अब शायद इस कहावत पर यकीन करने लगी हैं. यही वजह है कि इस साल होने वाले पंचायत चुनावों से पहले राज्य में भाजपा के बढ़ते असर की काट के लिए उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस भी अब हिंदुत्व को भुनाने की कोशिशों में जुट गई है. इसी कवायद केतहत पार्टी ने अपने गठन के दो दशकों में पहली बार बीरभूम जिले में पुरोहितों और ब्राह्मणों के सम्मेलन का आयोजन किया.दूसरी ओर, भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस पर नरम हिंदुत्व की राह पर चलने का आरोप लगाया है.पार्टी का दावा है कि हाल में हुए तमाम उपचुनावों में भाजपा के लगातार बढ़ते वोटों को ध्यान में रखते हुए तृणमूल कांग्रेस ने हिंदू वोटरों को लुभाने के लिए यह कवायद शुरू की है.भाजपा नेत्री और राज्यसभा सांसद रूपा गांगुली का कहना है कि ,’ जनता ,तृणमूल कांग्रेस की इस कवायद को बखूबी समझ रही है,तृणमूल की गतिविधियां साफ़ तौर पर यही बता रहीं हैं कि हिन्दू मतदाताओं को भरमाने की कोशिश की जा रही है.’
दरअसल, तृणमूल कांग्रेस के मुकाबले काफी पीछे रहने के बावजूद भाजपा तमाम उपचुनावों में नंबर दो बन कर उभरी है.मिसाल के तौर पर पश्चिम मेदिनीपुर जिले में सबंग विधानसभा सीट पर हाल में हुए उपचुनाव में उसके वोटों में भारी बढ़ोतरी हुई है. इससे तृणमूल कांग्रेस ही नहीं, कांग्रेस खेमा भी भारी चिंता में है.कांग्रेस की इस पारंपरिक सीट पर वर्ष 2016 के विधानसभा चुनावों में भाजपा को महज 5,610 वोट मिले थे लेकिन उपचुनाव में उसे 37 हजार 476 वोट मिले हैं. इस साल अप्रैल-मई में राज्य में पंचायत चुनाव होने हैं. बंगाल का राजनीतिक इतिहास गवाह है कि पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन करने वाले राजनीतिक दल ही आगे चल कर विधानसभा व लोकसभा चुनावों में कामयाब रहते हैं. ममता बनर्जी की अगुवाई वाली तृणमूल ने भी वर्ष 2008 के पंचायत चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर तीन साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में जीत की राह तैयार की थी. अब भाजपा भी उसी के नक्शेकदम पर चलने का प्रयास कर रही है.बीरभूम जिला भाजपा के बढ़ते असर और इसकी वजह से होने वाले राजनीतिक संघर्षों के लिए सुखिर्यों में रहा है.अब वहां भाजपा की ओर से हिंदू वोटरों के कथित धुव्रीकरण की काट के लिए तृणमूल कांग्रेस के ताकतवर जिला अध्यक्ष अणुब्रत मंडल की अगुवाई में ब्राह्मण व पुरोहित सम्मेलन का आयोजन किया गया.मंडल कहते हैं कि इस सम्मेलन का मकसद भाजपा की ओर से हिंदू धर्म की गलत व्याख्या की ओर ध्यान आकर्षित करना और हिंदी धर्म की सही व्याख्या करना था। उनका दावा है कि इस सम्मेलन का राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है. सम्मेलन में लगभग 15 हजार लोग जुटे थे. तृणमूल कांग्रेस की ओर से इस सम्मेलन में आए तमाम पुजारियों को रामनामी चादर के अलावा गीता और स्वामी विवेकानंद व रामकृष्ण की पुस्तकें व तस्वीरें भेंट की गर्इं.
इससे पहले बीते साल अप्रैल में रामनवमी व हनुमान जयंती पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ व उससे जुड़े संगठनों की ओर से आयोजित कार्यक्रमों की काट के लिए मंडल ने जिले में एक विशाल यज्ञ आयोजित किया था. उसके लिए असम के कामाख्या मंदिर से 11 पुजारी बुलवाए गए थे.मंडल कहते हैं कि बंगाल में हिंदुत्व कार्ड के लिए कोई जगह नहीं है. हमारी सरकार सबके लिए समान रूप से काम करती है.इस ब्राह्मण सम्मेलन को हिंदू पुजारियों का तृणमूल कांग्रेस समर्थित संगठन बनाने की दिशा में एक पहल माना जा रहा है.इससे इमामों की तर्ज पर इन पुजारियों को भी सरकारी सुविधाओं का लाभ मिल सकता है.मंडल ने इस सम्मेलन को अपनी नाक का सवाल बनाते हुए इसे कामयाब बनाने के लिए पूरी ताकत झोंक दी थी.इस बीच, कांग्रेस भी बहती गंगा में हाथ धोने की तर्ज पर पुरोहितों को भी इमामों की तर्ज पर सरकारी भत्ता देने की मांग उठा कर उनको लुभाने की कवायद में जुट गई है.पार्टी ने इस मुद्दे पर बीरभूम जिले के तारापीठ से आंदोलन शुरू करने का भी एलान किया है.कांग्रेस की दलील है कि लगातार बढ़ती महंगाई में पुरोहितों-पुजारियों के लिए आजीविका चलाना मुश्किल हो रहा है,इसलिए इमामों की तर्ज पर उनको भी सरकारी खजाने से भत्ता मिलना चाहिए.
दूसरी ओर, तृणमूल की प्रस्तावित रैली को भाजपा हताशा भरा फैसला मानती है.भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप घोष का दावा है कि पार्टी के झंडे तले हिंदुओं के एकजुट होने की कवायद तेज होने की वजह से तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम पार्टियां डर गई हैं. इसलिए तृणमूल कांग्रेस अब हताशा में उसी राह पर चल रही है जिसकी आलोचना करते नहीं थकती थी.उधर, पुरोहितों के संगठन निखिल बंग संस्कृत प्रेमी समिति की राज्य समिति के सदस्य सोमनाथ चटर्जी ने कहा है कि समिति तमाम राजनीतिक दलों की गतिविधियों पर निगाह रख रही है। जो भी हमारे हित में आवाज उठाएगा, समिति उसी को समर्थन देगी.
बता दें कि पश्चिम बंगाल के ग्रामीण और शहरी इलाकों में बीजेपी अपनी पहुंच और प्रभुत्व लगातार बढ़ाती जा रही है.हाल में हुए सबांग उपचुनाव में बीजेपी ने चौकाते हुए 37 हजार 476 वोट हासिल किये, जबकि 2016 में पार्टी को यहां पर महज 5610 वोट ही मिले थे.हालांकि यह सीट टीएमसी ने जीती और पार्टी को 1,06,179 वोट हासिल हुए. दक्षिण कांठी में भी बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा रहा था. गौर करने वाली बात यह है कि इन इलाकों में बीजेपी का संगठन नाम मात्र का है. बावजूद इसके बीजेपी का उभार पश्चिम बंगाल की राजनीति में बदल रही बयार को दर्शाती है. क्लास, मार्क्स और अल्पसंख्यकों के कठिन घालमेल में जकड़े बंगाल की राजनीति में दूसरे दलों का पैठ बना पाना बेहद मुश्किल है.
दरअसल ममता बनर्जी को एहसास हो गया है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की जोड़ी ने हिन्दुत्व के मुद्दे को जिस तरह व्यापक आयाम दिया है उससे पश्चिम बंगाल की राजनीति भी बिना प्रभावित हुए नहीं रह सकती है.लिहाजा ममता बनर्जी अब इस दिशा में कदम उठा रही हैं.ममता बनर्जी ने मंदिरों के रखरखाव के लिए बोर्ड का गठन किया है. पश्चिम बंगाल में तारापीठ, तारकेश्वर, कालीघाट जैसे मंदिर हैं, ममता बनर्जी ने इन मंदिरों के लिए पुनर्उद्धार के लिए बोर्ड का गठन किया है.इससे पहले सीएम ने फुरफरा शरीफ मजार के लिए बोर्ड गठित किया था. ममता बनर्जी आदिवासियों के श्मशान घाट भी उद्धार कर रही हैं.
उधर ममता बनर्जी के राज्य में विश्व हिंदू परिषद (वीएचपी) की युवा ईकाई बजरंग दल ने युवाओं को मिलिट्री जैसी ट्रेनिंग दी है. दक्षिणी परगना जिले में युवाओं को इसके तहत तलवार और राइफल जैसे हथियार चलाना सिखाया गया था. पूरे दक्षिण बंगाल से इस कैंप में कुल 170 युवाओं ने हिस्सा लिया, जिन्हें यहां सेल्फ डिफेंस स्किल के नाम पर यह ट्रेनिंग दी गई. बजरंग दल ने यह शौर्य प्रशिक्षण शिविर सुंदरबन के कुलताली ब्लॉक स्थित एक स्कूल में आयोजित कराया था, जो 17 दिसंबर से 23 दिसंबर के बीच चला था। दक्षिण बंगाल में वीएचपी के सहायक सचिव ने इस बारे में कहा, “ऐसे कैंप का मुख्य उद्देश्य युवाओं को सेल्फ डिफेंस की ट्रेनिंग देना है ताकि वे अपने ऊपर होने वाले बाहरी और आंतरिक आक्रमणों से खुद को बचा सकें, जो किसी समुदाय या अन्य देश की ओर से किए जा सकते हैं. ‘”वीएचपी कार्यकर्ता मदन ज्ञान ने आगे इस बाबत बताया कि ऐसे शिविर हर साल लगते हैं. जिलों में लगने वाले छोटे कैंप्स से सबसे अच्छे उम्मीदवार चुने जाते हैं, जिन्हें राज्य स्तर के शिविर में ट्रेनिंग दी जाती है, जो कि इसी महीने सुंदरबन इलाके में हुआ था.उनके मुताबिक, “आपातकालीन स्थिति के दौरान अगर सेना को नागरिकों की ओर से मदद की जरूरत पड़ेगी तो यह ट्रेनिंग उनके काम आएगी. यह युवाओं को किसी प्रकार के भी हमले से लड़ने और बचने के लिए सशक्त करती है.”
वहीं, सीएम ममता पूर्व में ऐसे कैंप्स पर राज्य में सांप्रदायिक हिंसा फैलाने के आरोप लगा चुकी हैं. ममता ने इस बाबत एक घटना का जिक्र करते हुए इसी साल कहा था, “मैंने असम की एक वीडियो क्लिप देखी थी, जिसमें वीएचपी महिलाओं को राइफल चलाने की ट्रेनिंग दे रही थी, जो कि बीजेपी से जुड़ी हुई है.क्या वे ऐसा कर सकते हैं? क्या वे सेना हैं? यह खेल बेहद खतरनाक है। ये इस देश को तबाह करना चाहते हैं.”
आपको बताता चलूं कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल के अहमदपुर में एक सभा को संबोधित करते हुए भाजपा की अगुवाई वाली राजग सरकार पर राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के पहले मसौदे में बंगालियों के नाम हटाकर उन्हें असम से बाहर करने की ‘साजिश’ रचने का आरोप लगाया था. पहले मसौदे का प्रकाशन 31 दिसंबर, 2017 को किया गया. उन्होंने कहा था, ‘मैं केंद्र की भाजपा सरकार को आग से नहीं खेलने की चेतावनी देती हूं…यह करीब 1.80 करोड़ लोगों को राज्य से खदेड़ने की केंद्र सरकार की साजिश है. मामले में गुवाहाटी पुलिस के उपायुक्त (मध्य) रंजन भुइयां ने बताया, ‘लतासिल थाने को पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री के एक कथित भाषण के संदर्भ में शिकायत मिली है. हमने शिकायत दर्ज कर ली है ओर नियमों के अनुरूप जांच करेंगे.’ उन्होंने बताया कि गुवाहाटी उच्च न्यायालय के अधिवक्ता तैलेंद्र नाथ दास ने शिकायत की और पुलिस ने आईपीसी की धारा 153 (ए) के तहत प्राथमिकी दर्ज कर ली है.आईपीसी की यह धारा धर्म, नस्ल, जन्मस्थान, निवास और भाषा के नाम पर लोगों के बीच शत्रुता पैदा करने और सौहार्द्र बिगाड़ने की कोशिश से संबंधित है. दास ने ममता पर उच्चतम न्यायालय की अवमानना का भी आरोप लगाया है क्योंकि एनआरसी का काम उच्चतम न्यायालय की प्रत्यक्ष निगरानी में हो रहा है. एक और शिकायत शहर के दिसपुर पुलिस थ्ज्ञाना में कृषक श्रमिक उन्नयन परिष्ज्ञद प्रमुख प्रमोद कलीता ने दायर की थी.उन्होंने आरोप लगाया है कि मुख्यमंत्री अपने भाषण के जरिए लोगों के बीच शत्रुता फैला रही हैं.
तृणमूल कांग्रेस महासचिव पार्था चटर्जी ने कहा कि यदि भाजपा और असम सरकार को लगता है कि वे पार्टी को और ममता को मुसलमानों के हितों की लड़ाई लड़ने से रोक सकते हैं तो वे लोग पूरी तरह से भ्रम में हैं. इस बीच, पश्चिम बंगाल भाजपा ने भी ममता के बयान की आलोचना करते गई हुए कहा कि तृणमूल कांग्रेस निहित राजनीतिक स्वार्थ के लिए ‘एक बिना महत्व की बात को मुद्दा बनाने की कोशिश कर रही है.’ पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने तृणमूल कांग्रेस नेतृत्व पर पश्चिम बंगाल को ‘जिहादियों की पनाहगार ’ बनाने का भी आरोप लगाया. राज्य भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि उनके आरोप पूरी तरह बेबुनियाद हैं.
देखा जाए तो पश्चिम बंगाल में भारतीय जनता पार्टी और सत्तासीन तृणमूल कांग्रेस सीधे तौर पर आमने-सामने आ गई है.समय-समय पर दोनों की रणनीतियां बदलती रहतीं हैं.यहां मुसलमानों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए बीजेपी ने भी मुसलामानों का एक सम्मलेन कर डाला.आने वाले समय में इन तमाम गतिविधियों का जनता पर पर क्या असर पड़ेगा,ये देखने वाली बात होगी.
बीजेपी ने किया मुसलमानों का सम्मलेन
पश्चिम बंगाल में पैर जमाने की कोशिश में जुटी भाजपा ने राज्य के मुस्लिम मतदाताओं को लुभाने की कोशिश शुरू कर दी है.अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को देखते हुए केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी ने 11 जनवरी को मुस्लिम सम्मेलन का आयोजन किया .पार्टी को सम्मेलन में बड़ी तादाद में मुस्लिम समुदाय के लोगों के जुटने की उम्मीद थी, लेकिन अधिकांश कुर्सियां खाली ही रह गईं. बीजेपी इसके जरिये अल्पसंख्यकों को अपनी ओर आकर्षित करने की उम्मीद लगाए बैठी थी. हालांकि, सम्मेलन में कुछ सौ लोग ही जुटे थे। मालूम हो कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ब्राह्मणों को अपनी ओर करने के लिए ब्राह्मण सम्मेलन कर चुकी हैं.
भाजपा ने कोलकाता के मोहम्मद अली पार्क में अल्पसंख्यकों का जमावड़ा किया. पश्चिम बंगाल में मुस्लिम मतदाताओं की तादाद को देखते हुए पार्टी समुदाय को अपनी ओर करने में जुटी है. बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चे के राष्ट्रीय अध्यक्ष अब्दुल राशिद अंसारी के साथ पश्चिम बंगाल के बीजेपी अध्यक्ष दिलीप घोष और वरिष्ठ नेता मुकुल रॉय भी मौजूद थे. राज्य में मुस्लिमों की अच्छी-खासी आबादी है, ऐसे में समुदाय राजनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण है। इसे देखते हुए वाम मोर्चा और ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस के बाद अब बीजेपी भी मुस्लिमों को रिझाने में जुट गई है. बीजेपी ने मुस्लिम सम्मेलन का आयोजन ऐसे समय किया है, जब पश्चिम बंगाल में इसी साल पंचायत चुनाव होने हैं.
-संजय सिन्हा