ममता शर्मा के बयान पर इतना बवाल क्यों?

0
169

राष्ट्रीय महिला आयोग की अध्यक्ष ममता शर्मा के बयान पर बवाल हो गया है। स्थिति की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने थूक कर चाटना ही बेहतर समझा, लिहाजा तुरंत बयान वापस भी ले लिया। ज्ञातव्य है कि ममता ने यह कहा था कि युवतियां युवकों की टिप्पणियों से न डरें, बल्कि सकारात्मक रूप में लें। लड़कों द्वारा कहे जाने वाले सेक्सी शब्द को नकारात्मक सोच लेकर बुरा नहीं माने। इसका मतलब सुंदरता है, आकर्षण है और एक्साइटमेंट है।

भारतीय संस्कृति की दृष्टि से मोटे तौर पर निरपेक्ष रूप में उनका बयान निहायत ही आपत्तिजनक प्रतीत होता है और इस बयान की जरूरत भी नहीं थी दिखती, मगर सवाल ये उठता है आखिर उन्होंने गलत क्या कह दिया? सीधी सी बात है कि उन्होंने उन्हीं लड़कियों को यह सीख देने की कोशिश की होगी, जिन्हें सेक्सी शब्द बाण झेलना पड़ता है। वे वही लड़कियां हैं, जो कि जानते-बूझते हुए भी इस प्रकार के वस्त्र पहनती हैं, ताकि वे सुंदर व सेक्सी दिखाई दें। जो पारंपरिक परिधान पहनती हैं या जिनके सिर पर पल्लू ढ़का होता है, उन लड़कियों को वैसे भी कोई लड़का सेक्सी कहने की हिमाकत नहीं कर पाता। अमूमन उन्हीं लड़कियों को ऐसी टिप्पणी का सामना करना पड़ता है, जो कि शरीर के अंगों को उभारने वाले वस्त्र पहनती हैं। अव्वल तो उन लड़कियों को ऐसी टिप्पणी से ऐतराज होना ही नहीं चाहिए, क्योंकि वे जानबूझ कर ऐसे वस्त्र पहनती हैं। सच तो ये है कि लड़कों को ऐसी टिप्पणी के लिए प्रेरित करने के लिए वे ही जिम्मेदार हैं। गर संस्कारित लड़की अपनी सहेलियों की देखादेखी में ऐसे वस्त्र पहन लेती है तो उसे जरूर अटपटा लगता होगा। संभव है ऐसी लड़कियों को ही ममता ने सीख देने की कोशिश की होगी। यदि ममता के मुंह से निकले बयान को जुबान फिसलना मानें तो यह साफ दिखता है कि उन्होंने लड़कियों को बिंदास बनने की प्रेरणा देने की कोशिश की, जैसी कि वे खुद हैं। बस गलती ये हो गई कि उन्होंने बयान गलत तरीके से दे दिया।

रहा सवाल ममता के बयान का विरोध होने का तो वह स्वाभाविक ही है। जिस देश में नारी की पूजा की परंपरा हो, वहां ऐसे बयान से बवाल होना ही है। जैसे ही बवाल हुआ तो ममता को अपना बयान वापस भी लेना पड़ गया, क्योंकि वे एक ऐसे पद पर बैठी हैं, जिस पर रह कर ऐसा निम्नस्तरीय बयान कत्तई शोभाजनक नहीं माना जा सकता। वे इस पद पर नहीं होतीं तो कदाचित यह उनका निजी विचार मान लिया जाता।

खैर, इन सवालों के बीच एक सवाल ये भी उठता है कि जिन प्रबुद्ध महिलाओं, सामाजिक संगठनों व राजनीतिक संगठनों को ममता के बयान पर घोर आपत्ति है और उनका खून खौल उठा है, उन्हें सेक्सी कपड़े पहनने वाली लड़कियों को देख कर भी ऐतराज होता है या नहीं? जिन्हें ममता के इस बयान में लड़कियों को पाश्चात्य संस्कृति की ओर ले जाने का आभास होता है, उन्हें क्या सच में पाश्चात्य संस्कृति की ओर भाग रही लड़कियों पर भी तनिक अफसोस होता है। चारों ओर से शोर मचा कर उन्होंने भले ही ममता को बयान वापस लेने को मजबूर कर दिया हो, मगर क्या कभी अंगों को उभारने वाले वस्त्र पहनने वाली बहन-बेटियों को भी वे सादगी के वस्त्र पहनने को मजबूर कर पाएंगे। बयान तो बयान है, वापस हो गया, मगर क्या अंग प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनने वाली लड़कियों व पुरुषों के वस्त्र जींस व टी शर्ट पहनने वाली युवतियों को हम वापस भारतीय परिवेश में ला पाएंगे? अगर नहीं तो हम कोरी बयानबाजी ही करते रहेंगे, आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते रहेंगे और हमारी लड़कियां पाश्चात्य संस्कृति की ओर सरपट दौड़ती चली जाएंगी।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here