जिनका उसूल ना कोई ईमान इन दिनों,
वो ही तो बन रहे हैं सुल्तान इन दिनों।
बच्चो ने उसके जब से दौलत कमाई है,
अपने ही घर में मां है मेहमान इन दिनों।
रिश्ते हमारे खून के किस काम आयेंगे,
भाई पे भाई कर रहा एहसान इन दिनों।
दौलत रही तो उनकी क़तारे लगी रहीं,
पैसा गया तो दोस्त हैं अंजान इन दिनों।
ताक़त के बल पे समझ बैठे थे जो खुदा,
उनके महल भी हो गये वीरान इन दिनों।
मंज़िल पे ले जा सके जो रहबर नहीं कोई,
सियासत है कुर्सी दौड़ का मैदान इन दिनों।
इंसां के दुश्मनों में इज़ाफ़ा हुआ है और,
इंसां से ही डर रहा है इंसान इन दिनों।
पैसे की जुस्तुजू में हमें फुर्सत नहीं ज़रा,
जंग खा रहा है ऐश का सामान इन दिनों।।
नोट-क़तारें-लाइनें, रहबरःनेता, इज़ाफ़ाःबढ़ोत्तरी, जुस्तुजूःसंघर्ष