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मन का मेला - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मेरे अतीत के आँगन में है,अनगिन सुधियों का मेला । कहाँ कहाँ ये जीवन बीता , कहाँ कहाँ ये है खेला ।। * रंग-बिरंगी लगीं दुकानें , तरह तरह के हैं झूले । उन सब में भटका सा ये मन,अपना सब कुछ भूले ।। * झूले के घोड़े पर…