माणा गांव में आज भी होती है सरस्वती की पूजा-अर्चना
चमोली,। चमोली जिले में तिब्बत सीमा पर देश के अंतिम गांव माणा में आज भी सरस्वती की पूजा की जाती है। माणा से तकरीबन 40 किलोमीटर दूर तिब्बत सीमा की तरफ (माणा पास) से आने वाली नदी को सरस्वती माना जाता है। वहां सरस्वती कुंड से इस नदी का उद्गम माना जाता है। इस कुंड में माणा ग्लेशियर के साथ ही आस-पास के ग्लेशियरों का पानी पहुंचता है। सरस्वती यहां कुंड के बाद कई जगह हिमखंडों व पत्थरों के नीचे से बहकर सीधे माणा में दर्शन देती है। माणा में भीम पुल के पास सरस्वती की पूजा की जाती है। इसके लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं।वेद पुराणों में जिक्र है कि सरस्वती माणा के पास अलकनंदा नदी में मिलकर विलुप्त हो जाती है। इसके पीछे भी किवदंतियां हैं। माणा स्थित वेदव्यास मंदिर के पुजारी हरीश चंद्र कोठियाल के अनुसार वेदव्यास ने सरस्वती नदी के किनारे ज्ञानोपार्जन किया था। वेदव्यास जी जब गणेश जी को महाभारत लिखवा रहे थे तो सरस्वती नदी के उद्घोष से व्यवधान पहुंच रहा था। तब वेदव्यास ने सरस्वती से शांत रहने का अनुरोध किया, लेकिन अनुरोध के बाद भी जब सरस्वती नहीं मानी तो वेदव्यास ने श्राप दिया था कि तुम्हारा नाम यहीं तक रहेगा। शास्त्रों के अनुसार तभी से सरस्वती को माणा के पास केशव प्रयाग में अलकनंदा में समाकर विलुप्त माना जाता है। अलकनंदा में मिलने के बाद सरस्वती के जल का रंग नहीं दिखता। शास्त्रों के अनुसार सरस्वती नदी प्रयागराज इलाहाबाद में जाकर प्रकट होती है।श्री बदरीनाथ मंदिर के धर्माधिकारी भुवन चंद्र उनियाल का कहना है कि शास्त्रों में सरस्वती के बदरीनाथ धाम के माणा में लुप्त होने के प्रमाण हैं। सरस्वती नदी में स्नान व मां सरस्वती की पूजा के लिए यात्रा काल में देश विदेश से श्रद्धालु माणा गांव आते हैं। श्रद्धालु सरस्वती नदी का जल पूजा अर्चना के लिए घर ले जाना नहीं भूलते। माणा में सरस्वती के मंदिर के मंदिर के साथ ही वेदव्यास और गणेश मंदिर भी हैं। पूर्व पर्यटन मंत्री केदार सिंह फोनिया के अनुसार वेद पुराणों की रचना के समय ही सरस्वती के उद्गम और विलुप्त होने के तथ्य शास्त्रों में हैं। सरस्वती सूखी नहीं, बल्कि माणा के पास से निकलकर अलकनंदा में विलुप्त हो रही है।