मांगलिक दोष बुरा नहीं, बना सकता है आपको अच्छा लेखक

मन के भावों को कागज़ पर उकेरने की कला को लेखन का नाम दिया गया। ज़रा विचार कीजिये कैसा रहा होगा वह समय जब मानव ने लिखना नहीं सीखा होगा। उसकी मानसिक स्थिति क्या रही होगी। विचारों के बादल मन के आकाश पर घिर घिर आये होंगे, परन्तु लेखनी का साथ ना मिल पाने के कारण बिना बरसे लौट गए होंगे।

लेखन कला सबके बस के बात नहीं, विरले व्यक्ति में ही ये गुण जन्मजात होते है। कुछ स्वयं को तराश कर इस कौशल को स्वयं में निखार लेते है, तो कुछ के जीवन की पीड़ा ने लेखन का रुप ले, कविता, काव्य, कथा, कहानी का रुप ले लिया। एक कवि ने एक स्थान पर कहा कि ” कागज के जिस्म को कुरेद कर, कलम ने अपनी रूह बसाई थी, शब्दों ने अपना वजूद मिट आया था, अर्थ ने समंदर से ली गहराई थी, व्याकरण ने भी कर्ज दिया था, तब कहीं जाकर एक कविता उभर कर आई थी”। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि मन के भावों को शब्दों का आकार देना, सहज नहीं है, लेखन के सागर में गोते तो लाखों लगाते है, परन्तु कुछ मात्र ही कुछ ऐसा लिख जाते है जो इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम होकर यादगार हो जाते है।

एक लेखक अपनी कलम के जादू से रोते को हंसाने की योग्यता रखता है तो अपने भावपूर्ण लेखन से हंसती आंखों में दुख के अश्रु भी झलका सकता है। बीते समय की किसी याद को ताजा कर, भूत को सजीव रुप दे सकता है तो भविष्य के सपनों को सच होने का आभास भी करा सकता है। गालिब से लेकर कुमार विश्वास ने जहां काव्य, कविता, गजल को एक नया मुकाम अपनी लेखनी के बल पर दिया तो बाल्मीकी जी ने रामायण लिख स्वयं को लेखन के आकाश पर धुर्व तारे के समान अंकित कर दिया। अपनी लेखनी के कौशल से हम सभी को हैरान, परेशान, अचंभित, भावविभोर करने वाले कवियों, लेखको, कथाकारों की कुंड्लियों में ऐसा कौन सा योग होता है जो उनसे यह चमत्कारिक कार्य करता है। आज हम ऐसे ही कुछ कवियों, गजलकारों, लेखकों और कथाकारों की कुंडलियों का अध्ययन करने जा रहे है।  

लेखन के ज्योतिषीय योग

लेखन का पौधा अध्ययन रुपी खाद और पठन-पाठन रुपी पानी के साथ ही फलता फूलता है। इस पौधे को यदि एकाग्रता, तीव्र स्मरण शक्ति, अतुलनीय प्रतिभा और संवेदात्मक ह्र्दय की भूमि मिले तो इसे पनपते और बढ़ते देर नहीं लगती है। कहा जाता है कि जिस व्यक्ति पर देवी सरस्वती की कॄपा हो जाए, उस व्यक्ति की लेखनी संसार भर में प्रसिद्धी दिलाती है।

ज्योतिष में बुध ग्रह को कलम कहा गया है एवं मंगल को स्याही माना गया है। कलम और स्याही अपना कार्य तभी कर पाते है जब उन्हें तीसरे भाव रुपी कागज का साथ प्राप्त होता है। लेखक, पत्रकार, कवि, कथाकारों और किसी भी प्रकार लेखनी का प्रयोग करने वाले व्यक्तियों की कुंडलियों में बुध, मंगल और तीसरे भाव का मजबूत संबंध होना चाहिए।  

तृतीय से तृतीय भाव अर्थात पंचम भाव जिसे ज्योतिष शास्त्र में शिक्षा, अध्ययन और पठन पाठन का भाव कहा गया है। इस भाव से ग्यान, विद्या और पढ़ने में रुचि का विचार किया जाता है। लेखन से संबंधित अन्य भाव ४, 7, 8 और 9 है और इसके अन्य ग्रह चंद्र, गुरु, शुक्र और शनि है। चंद्र ग्रह लेखन में कल्पनाशक्ति का गुण देता हैं तो गुरु ग्यान एवं मेधा शक्ति देता है, शुक्र कलात्मकता, रचनात्मकता और सौंदर्यरस से पूर्ण काव्य लेखन कराते है। शनि से चिंतन, दर्शन एवं शोधपूर्ण लेखन का गुण आता है।  

जब लग्न भाव, लग्नेश, तृतीयेश या तृतीय भाव का आपसी संबंध बनें तो और इन भावों से लेखन से संबंधित ग्रह भी संबंध बनाए तो व्यक्ति लेखन के क्षेत्र में हाथ आजमाता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र के कुछ प्रसिद्ध ग्रंथ यह कहते है कि पंचमेश का नवम भाव में होना लेखक बनने की निशानी है। इस योग में जब सरस्वती योग भी सम्मिलित हो जाए तो सोने पर सुहागे वाली स्थिति बनती है। अर्थात लेखक को मनचाही सराहना भी प्राप्त होती है। लेखन के आकाश में अपना नाम सुशोभित कराने वाले व्यक्तियों की कुंडली में सामान्यता बुध और मंगल एक साथ देखे गए है। जन्मपत्री में मांगलिक योग से युक्त व्यक्ति भी लेखन कला का गुर रखते है। 

कुंडली विश्लेषण की शुरुआत करते हैं अपने समय के मशहुर शायर मिर्जा गालिब से।

मिर्जा गालिब – 27 दिसम्बर 1797, 05:00, प्रात:, आगरा (उत्तर प्रदेश)

मिर्जा गालिब को कौन नहीं जानता, शायरी के सागर में इन्हें कोहिनूर रत्न का स्थान दिया जा सकता है। देश-विदेश में अपनी कीर्ति की पताका फहराने वाले मिर्जा गालिब की वृश्चिक लग्न की कुंडली में मंगल बारहवें भाव में स्थित हो मांगलिक योग का निर्माण कर रहा है। बारहवें भाव से मंगल चतुर्थ दॄष्टि से तृतीय भाव से जुड़ रहे है। बुध वाणी भाव में दशमेश सूर्य के साथ है। इनके लेखन में अद्भुत गहराई और व्यंग्यात्मक भाव भी पाया जाता है। यह गुण इन्हें तृतीयेश शनि और लग्न में स्थिति केतु ने  दिया। पंचम भाव में स्वराशि के गुरु की नवमेश चंद्र के साथ युति होना, इन्हें जगप्रसिद्ध कर रहा है। इनकी कुंडली में मांगलिक योग और तीसरे भाव से मंगल के संबंध ने इन्हें विलक्षण लेखन की कला से युक्त किया।

विशेष- द्वादश भाव का मांगलिक योग

सूर्यकांत त्रिपाठी निराला

21 फरवरी, 1899, 13:30, मेदिनीपुर, पश्चिम बंगाल

निराला जी की कुंड्ली मिथुन लग्न, मिथुन राशि की है। लग्न भाव में मंगल को वाणी भाव के स्वामी का साथ मिल रहा है। लेखन के मुख्य ग्रह बुध सप्तम दृष्टि से तीसरे भाव को सक्रिय कर रहे हैं। यहां भी मंगल का प्रथम भाव में होना मांगलिक योग बना रहा है। लग्न भाव में चंद्र-मंगल की युति को सप्तम भाव से शुक्र-राहु की दॄष्टि प्राप्त हो रही है। अष्टमेश शनि भी दशम दॄष्टि से तीसरे भाव पर अपना प्रभाव दे रहे हैं। लेखन जगत में निराला जी के योगदान को विस्मृत नहीं किया जा सकता है। यही वजह है कि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला कवियों में अग्रणी पंक्ति में आते है।

विशेष- प्रथम भाव का मांगलिक योग

आर के नारायण

10 अक्तूबर 1906, 06;30, मद्रास 

आर के नारायण जी की कहानियां किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इनका जन्म कन्या लग्न, मिथुन राशि में हुआ। इनकी कुंडली में मंगल बारहवें भाव में मांगलिक योग के साथ स्थित है। लग्न भाव में सूर्य और वाणी भाव में बुध स्थित है। तीसरे भाव के स्वामी मंगल द्वादश भाव से चतुर्थ दॄष्टि से तृतीय भाव को बल प्रदान कर रहे हैं। ये उच्च कोटि के लेखक तो थे ही साथ ही बाद में जाकर ये भारत के राष्ट्रपति भी बने। मांगलिक योग यहां भी बन रहा है अत: लेखन कला में मंगल का योगदान स्पष्ट देखा जा सकता है।

विशेष- द्वादश भाव का मांगलिक योग

डा जी नारायण रेड्डी

29 जुलाई, 1931, 04;00, करीमनगर 

नारायण रेड्डी जी नाटककार और लेखक रहे है। इनकी कुंड्ली मिथुन लग्न और मकर राशि की है। कुंडली में मंगल चतुर्थ भाव में केतु के साथ स्थित है। मंगल यहां चतुर्थ भाव में मांगलिक योग बना रहा है साथ ही इन्हें लेखन क्षमता दे रहा है और यहां मंगल बुध की  राशि में है। बुध तीसरे भाव अर्थात लेखन के भाव में स्थित है। यहां लग्नेश बुध स्वयं है। पराक्रमेश सूर्य वाणी भाव में है। 

विशेष- चतुर्थ भाव का मांगलिक योग

प्रेमदत्त पाण्डे

28 जुलाई, 19:00, सिहोर मध्यप्रदेश 

निरोगधाम पत्रिका के संपादक प्रेमदत्त पाण्डे जी की कुंड्ली मकर लग्न और तुला राशि की है। द्वादश भाव में मंगल मांगलिक योग के साथ स्थित है। इस भाव से मंगल चतुर्थ दृष्टि से तीसरे भाव, बुध और राहु से बना रहा है। वाणी भाव में सूर्य और शुक्र की युति इन्हें काव्य से जोड़ रही है। वाणी भाव के स्वामी शनि और कर्मेश शुक्र में राशि परिवर्तन योग बना हुआ है। 

विशेष- द्वादश भाव का मांगलिक योग

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