व्यंग्य बाण : मनमोहन सिंह ‘मजबूर’

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manmohanदुनिया में गद्य और पद्य लेखन कब से शुरू हुआ, कहना कठिन है। ऋषि वाल्मीकि को आदि कवि माना जाता है; पर पहला गद्य लेखक कौन था, इसका विवरण नहीं मिलता। 

इन लेखकों के साथ एक बीमारी जुड़ी है। लेखन का कीड़ा काटते ही उन्हें यह ज्ञान हो जाता है कि माता-पिता ने उनका नाम ठीक नहीं रखा। इसलिए वे सबसे पहले अपना नाम बदलते हैं। यदि आपको विश्वास न हो, तो निराला, दिनकर, बच्चन, नीरज, गुलजार, दाग, काका, अज्ञेय जैसे नामों की पड़ताल कर लें। आपको इनके असली नाम मालूम हो जाएंगे, जो इनके अभिभावकों ने बड़े प्यार और दुलार से रखे थे।

पंडित जी जन्म के समय के ग्रह, नक्षत्र देखकर बच्चे का नाम रखते हैं; पर कई बार यह नाम केवल कुंडली में ही रहता है और प्रचलन में कोई दूसरा नाम आ जाता है। हां, शादी-विवाह के समय जन्म वाले नाम के अनुसार ही कुंडली मिलाई जाती है।

इतनी लम्बी भूमिका का उद्देश्य आपको लगभग 80 वर्ष पूर्व के एक प्रसंग की याद दिलाना है, जब हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के माता-पिता अपने शिशु के नामकरण के लिए एक विद्वान ग्रंथी के पास गये थे। गं्रथी महोदय ने बच्चे का नाम ‘मजबूर सिंह’ रखा। पहले तो मां-बाप इसे ‘मजबूत सिंह’ समझे; पर गं्रथी द्वारा दो-तीन बार ‘मजबूर’ कहने पर वे चुप हो गये। क्या करें, उनकी भी मजबूरी थी; पर यह नाम उन्हें जंचा नहीं, इसलिए वे अपने बच्चे को ‘मनमोहन’ कहने लगे।

कहते हैं कि जवानी में हर व्यक्ति कुछ समय के लिए कवि हो जाता है। मनमोहन जी के जीवन में जब ऐसा क्षण आया, तो वे अपने असली नाम ‘मजबूर’ के तखल्लुस से शायरी करने लगे। यद्यपि यह शायरी अधिक नहीं चली, क्योंकि कुछ ही दिन बाद घर वालों की मेहरबानी से वे दोपाये से चैपाये होकर नून, तेल, लकड़ी के चक्कर में पड़ गये।

अब इस कथा का दूसरा पक्ष देखिये। हर साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री महोदय दिल्ली में लालकिले पर तिरंगा झंडा फहराकर भाषण देते हैं। यह भाषण सरकार का योजना और घोषणा पत्र भी माना जाता है। अतः इसकी तैयारी काफी पहले से होने लगती है।

पिछले दिनों मनमोहन जी स्टाफ के साथ अपना भाषण तैयार कर रहे थे कि थकान के कारण उन्हें झपकी लग गयी। झपकी के दौरान उन्हें लगा मानो वे सचमुच लालकिले से भाषण दे रहे हैं। उस भाषण के प्रमुख अंश आप भी सुनें।

भाइयो, बहिनो और दूर-दूर से बुलाकर लाये गये प्यारे बच्चो !
जय हिन्द।

मैं आप सबको स्वतंत्रता दिवस की बधाई देता हूं। कैसी हैरानी की बात है कि आप स्वतंत्र हैं, पर मैं नहीं। इससे अधिक मैं नहीं कह सकता, क्योंकि मैं मजबूर हूं। यद्यपि मेरे साथियों का कहना है कि कुछ दिन बाद मैं भी मुक्त हो जाऊंगा। इसलिए आप इसे लालकिले से मेरा अंतिम भाषण समझें।

सबसे पहले मैं केदारनाथ में मरे लोगों के प्रति संवेदना प्रकट करता हूं। वहां कितने लोग मरे, यह जानने में न हमारी रुचि है और न उत्तराखंड सरकार की। लोगों को शिकायत है कि वहां राहत के काम देर से शुरू हुए। आप कृपया मेरी मजबूरी समझें। राहुल जी पिकनिक पर विदेश गये हुए थे। अतः हमें उनकी प्रतीक्षा करनी पड़ी। उनके आते ही हमने राहत सामग्री के ट्रक भेज दिये, जो ऋषिकेश में कई दिन खड़े रहे। अब जैसे-जैसे देश और विदेश से आने वाले पैसे में खाने और पीने का हिस्सा तय हो रहा है, वैसे-वैसे राहत के काम भी शुरू हो रहे हैं।

आजकल मीडिया वाले गरीबी का बहुत शोर कर रहे हैं। वैसे तो इंदिरा जी ने गरीबी मिटा दी थी; पर बेशरम गरीब गाजर घास की तरह फिर बढ़ गये हैं। उन्हें समाप्त करना तो संभव नहीं है, इसलिए हमने गरीबी रेखा का पैमाना बदलकर उनकी संख्या ही घटा दी है। मैंने विश्व बैंक में रहकर आंकड़ों की यह बाजीगरी सीखी थी, जो अब बहुत काम आ रही है। मैं अर्थशास्त्री हूं। मेरे लिए आंकड़े ही खुदा हैं। मैं उन्हें ही खाता-पीता और ओढ़ता-बिछाता हूं। मेरा काम कागजों का पेट भरना है, जनता का नहीं।

कुछ लोग रुपये के अवमूल्यन पर छाती पीट रहे हैं। असल में  रुपये का मूल्य नहीं घटा, बल्कि डाॅलर का मूल्य बढ़ रहा है। डाॅलर तो अमरीका की मुद्रा है। उसकी बढ़त को मैं कैसे रोक सकता हूं ? मैंने बहुत साल तक अमरीका का नमक खाया है, उसे निभाना मेरी मजबूरी है।

पिछले कुछ समय से चीन बार-बार हमारी सीमाओं में घुस रहा है। आप इससे परेशान न हों। मैडम इटली (मेरा मतलब है सोनिया जी) के नेतृत्व में हम इस पर नजर रखे हुए हैं। इसके लिए वे हर साल अमरीका जाकर अपना चश्मा भी ठीक कराती हैं।

असल में व्यक्ति की तरह हर देश का भी स्वभाव होता है। अतिक्रमण करना चीन का स्वभाव है और वार्ता करना हमारा। हम पिछले 50 साल से बात कर रहे हैं और अगले 50 साल तक करते रहेंगे। चीन की शह पर पाकिस्तान, बर्मा, बंगलादेश, श्रीलंका, नेपाल और मच्छर जैसा मालदीव हमें आंखें दिखा रहा है। इस पर राहुल बाबा के नेतृत्व में हमारे विदेश मंत्री जी ध्यान दे रहे हैं।

भाइयो और बहिनो, देश में भ्रष्टाचार लगातार बढ़ रहा है। मैं भी इससे चिंतित हूं; पर हमारे वित्तमंत्री का कहना है कि जब हर तरफ उन्नति हो रही है, तो यह भी बढ़ेगा ही। 40 साल पहले इंदिरा जी ने कहा था कि यह विश्वव्यापी समस्या है, जो समाप्त नहीं हो सकती। हमारे पूर्व प्रधानमंत्री श्री राजीव (बोफोर्स) गांधी ने भी यह कहकर इसे उचित ठहराया था कि जिसे हम भ्रष्टाचार कहते हैं, उसे विदेश में व्यापार कहा जाता है। इसलिए इस बारे में कृपया शर्मिन्दा न हों।

जहां तक आतंकवाद की बात है, तो यह एक विश्वव्यापी समस्या है। जब अमरीका और रूस जैसे देश इसे नहीं रोक सके, तो हमारी औकात ही क्या है ? अभी-अभी बोधगया मंदिर में विस्फोट हुआ है; हम उसकी जांच करा रहे हैं। विस्फोट किसने किया है, यह पूरा देश जानता है; पर मेरी मजबूरी है कि मैं इस बारे में मुंह नहीं खोल सकता।

हमने दिग्विजय सिंह और शकील अहमद जैसे कुछ लोगों को जांच भटकाने और निर्णय अटकाने में लगा दिया है। वे पूरी मेहनत कर रहे हैं। आतंक के सब आरोप मुसलमानों पर ही लगते हैं। इसलिए हमने कुछ हिन्दुओं को भी झूठे मामलों में पकड़ा है, जिससे तराजू की डंडी सीधी रहे। लोकसभा चुनाव से पहले हम कुछ और बड़े लोगों पर हाथ डालेंगे, जिससे हिन्दू संस्थाओं को सीधे-सीधे बदनाम कर वोटों की फसल काटी जा सके।

भाइयो, हम काम तो बहुत से करना चाहते हैं; पर गठबंधन सरकार की भी कई मजबूरियां हैं। हमारी सबसे बड़ी सहयोगी सी.बी.आई. है। यदि कोई हमें आंख दिखाता है, तो हम उसका डंडा सामने कर देते हैं। कुछ लोग भले ही इसे ‘कांग्रेस ब्यूरो आॅफ इन्वैस्टिगेशन’ कहें; पर शरद पवार से लेकर मुलायम सिंह और मायावती तक, सब इस डंडे से ही डरते हैं।

एक बात मैं और कहना चाहता हूं। आजकल न्यायालय कुछ अधिक ही सक्रिय हो गया है। उसके निर्णयों से हमें बहुत परेशानी हो रही है। हमारे कई मंत्रियों को इस कारण जेल जाना पड़ा। हम उसकी नाक में भी नकेल डालने की कोशिश कर रहे हैं। इसके बाद सब ठीक हो जाएगा। पिछले साल अन्ना हजारे, बाबा रामदेव और अरविंद केजरीवाल ने हमारी नाक में दम कर रखा था; पर वे सब भी अब थककर चुप बैठ गये हैं।

बढ़ती हुई महंगाई के बारे में भी कुछ कहना जरूरी है। जब तक शरद पवार कृषि मंत्री हैं, तब तक महंगाई नहीं घट सकती। मैं उन्हें हटाना चाहता हूं; पर वे इतने भारी हैं कि मुझ अकेले के बस की बात नहीं है। खतरा ये भी है कि उनके हटने से कहीं सरकार ही न हट जाए। अतः इसके लिए मैं आपका सहयोग चाहता हूं।

भाइयो, मैंने पहले ही कहा था कि लालकिले से ये मेरा अंतिम भाषण है। अगला भाषण कौन देगा, मैं नहीं जानता। देश भर में नरेन्द्र मोदी की चर्चा है। यों तो मैं भी उनका प्रशंसक हूं और चाहता हूं कि वे प्रधानमंत्री बनें, जिससे देश की प्रतिष्ठा बढ़े; पर इसे मैं सबके सामने कह नहीं सकता। ये तो आपको ही तय करना है। जहां तक राहुल बाबा की बात है, वे भी मेरी तरह सदा चुप रहते हैं और दूसरों का लिखा हुआ पढ़ते हैं। इसलिए आप चाहें, तो उन्हें चुन लें। मेरा समय तो पूरा हो गया। अब आप जानें और आपका काम। देश आपका, फैसला आपका।

अच्छा तो भाइयो और बहिनो, आखिरी बार मेरे साथ जोर से बोलिये – सोनिया माता की जय, राहुल बाबा की जय।

पाठक मित्रो, कुछ लोग कहते हैं कि नाम में क्या रखा है; पर पिछले नौ साल से बेचारे मनमोहन जी जिन मजबूरियों में दिन काट रहे हैं, उसे देखकर मैं उस विद्वान ग्रंथी के प्रति नतमस्तक हूं, जिसने तत्कालीन ग्रह-नक्षत्रों की गणना के अनुसार उनका नाम ‘मजबूर सिंह’ रखा था। आप उन्हें मनमोहन सिंह ‘मजबूर’ कहें या मजबूर सिंह ‘मनमोहन’; पर मुझे उनसे सचमुच बहुत सहानुभूति है।

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