मनु और वत्र्तमान राजनीति की विश्वसनीयता, भाग-4

dalit rajnitiराकेश कुमार आर्य

वायु : वायु की विशेषता है कि वह सब प्राणियों में और स्थानों में प्रविष्ट होकर विचरण करता है। उसी प्रकार राजा को अपने गुप्तचरों द्वारा सर्वत्र प्रविष्ट होकर सब स्थानों की अपनी तथा शत्रु की प्रजाओं की बातों की जानकारी रखनी चाहिए। राजा की इस विशेषता में स्पष्ट किया गया है कि उसे कभी भी प्रमाद नही करना चाहिए। उसका गुप्तचर विभाग सदा जागरूक रहना चाहिए। जिससे देश से शत्रुभाव रखने वाले लोगों या शक्तियों को या आतंकी संगठनों को राज्य के विरूद्घ विद्रोह करने या उपद्रव करने का अवसर ही उपलब्ध न होने पाये। राज्य की स्थिरता के लिए और प्रजा के लिए शांति-व्यवस्था बनाये रखने के लिए राजा का यह ‘वायुरूप’ अति आवश्यक है।

यम : यम ईश्वर की संहारक शक्ति का नाम है। जैसे ईश्वर समय आने पर हर प्राणी को उसके कर्मों के अनुसार दण्ड देता या मारता है, उसी प्रकार राजा को भी न्याय करते समय किसी प्रकार के पक्षपात का प्रदर्शन नही करना चाहिए। राजा को न्याय करते समय बिना पक्षपात के शत्रु और मित्र को समान दण्ड देना चाहिए। राजा की दृष्टि समदर्शी हो, कानून के समक्ष समानता तभी आ सकती है जब न्यायाधीश की दृष्टि में समदर्शिता आ जाए। वह ईश्वरीय व्यवस्था से जुडक़र ईश्वरीय व्यवस्था के अनुरूप ईश्वरीय व्यवस्था को चलाने में स्वयं को सहयोगी और सहभागी मानने लगे।

भारतीय संस्कृति में राजा को पक्षपात शून्य रहने का परामर्श बार-बार इसीलिए दिया गया है कि उसके ऐसा रहने से सबको उसके कर्मानुसार दण्ड मिल जाना संभव है। यदि राजा पक्षपात शून्य हो जाएगा तो देश भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगा। क्योंकि पक्षपाती राजा को दुष्ट लोग अपना-अपना स्वार्थ सिद्घ करने के लिए धनादि का लालच देते हैं और उससे न्याय खरीद लेते हैं जिससे देश में सर्वत्र भ्रष्टाचार का बोलबाला हो जाता है। क्योंकि ‘यथा राजा तथा प्रजा’ वाली कहावत तब चरितार्थ होने लगती है।

अर्क : सूर्य जब अपनी किरणों से समुद्र से जल का ग्रहण करता है तो उस क्रिया से समुद्र को कोई कष्ट नही होने देता। उसी प्रकार राजा को चाहिए कि वह भी जब अपनी प्रजा से कर ग्रहण करे तो उस क्रिया से भी प्रजा को कोई कष्ट नही होना चाहिए। यदि राजा की कर प्राप्त करने की नीति या विधि-विधान कठोर है तो उससे जनता में राजा के विरूद्घ विद्रोह का भाव पनप सकता है। दूसरे ऐसी स्थिति में प्रजा कष्टपूर्ण मानसिकता में अपना जीवन यापन करती है।

अग्नि : ‘जैसे अग्नि अशुद्घि का नाश करके शुद्घ करने वाली होती है, उसी प्रकार राजा अपराध, हानि एवं दुष्टता करने तथा प्रजा को पीडि़त करने वालों को प्रभावशाली ढंग से संतापित करने वाला एवं दण्ड से सुधारने वाला होवे।’ यहां अग्नि एक प्रकार से राजा की दण्डशक्ति का प्रतीक है। राजा की दण्ड शक्ति का प्रताप शत्रु के लिए संतापकारक होना ही चाहिए। राजा के दंड की उसकी स्मृति मात्र से शत्रु और आतंकी व्यक्ति को कंपकंपी आनी चाहिए।

वरूण : सामान्य परिस्थितियों में जल हमारे लिए जीवनदायी है, परंतु जब कोई व्यक्ति जल के साथ छेड़छाड़ करने लगता है और उसके प्रवाह की मुख्यधारा को बार-बार छेड़ता है तो उस समय वही जीवनदायी जल उसके लिए प्राणघातक भी हो उठता है, और जल तब इस प्रकार का उत्पात मचाने वाले व्यक्ति को अपने भंवरजाल में फंसा लेता है। इसी प्रकार किसी राज्य की राज्यव्यवस्था यूं तो हर प्राणी के लिए जीवनदायी होती है, परंतु जब कोई व्यक्ति बार-बार इस राज्यव्यवस्था को तोडऩे लगता है और विधि-विधान का उपहास उड़ाने लगता है, तब राजा को भी ऐसे लोगों को अपने भंवरजाल में फंसाकर उन्हें जेल में डाल देने में कोई देरी नही करनी चाहिए।

चंद्र : जैसे चंद्र शीतलता प्रदान करता है और पूर्णिमा के चांद को देखकर जैसे हर व्यक्ति के हृदय में प्रसन्नता होती है, उसी प्रकार राजा प्रजाओं को शांति तथा प्रसन्नता प्रदान करने वाला होना चाहिए। उसे अपने मध्य पाकर या अपने संरक्षक के रूप में देखकर प्रजा को प्रसन्नता होनी चाहिए।

वित्तेश अर्थात धनी : वित्तेश या धनाढ्य का अभिप्राय है कि जैसे परमेश्वर समान भाव से सब प्राणियों का पालन-पोषण करता है, उसी प्रकार राजा को अपनी प्रजा का पालन पुत्रवत करना चाहिए। राजा को अपना धन उसी प्रकार अपनी प्रजा के लिए व्यय करने में कोई देरी नही करनी चाहिए, जिस प्रकार एक पिता को अपनी संतानों के पालन पोषण के लिए अपने धन को व्यय करने में कोई देरी नही लगती।

विश्व के किसी भी देश में किसी प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति या शासन प्रमुख के भीतर इन 8 गुणों का विधान आवश्यक नही माना गया है। हमें भ्रमित करने के लिए एक तर्क आज के राजनीतिशास्त्रियों के द्वारा दिया जाता है कि यदि किसी देश के प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति या शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष के लिए इस प्रकार के गुणों का विधान आवश्यक कर दिया जाएगा तो वर्तमान लोकतंत्र ‘आम आदमी’ का लोकतंत्र नही रह पाएगा। तब यह कुछ चुनिंदा लोगों का लोकतंत्र होकर रह जाएगा। जिससे एक ‘आम आदमी’ सत्ताशीर्ष तक पहुंचने में असफल हो जाएगा। वस्तुत: यह तर्क खोखला है। वर्तमान लोकतंत्र तो वैसे भी आम आदमी का लोकतंत्र नही रह गया है। आम आदमी के लोकतंत्र का अभिप्राय यह कदापि नही है कि उसे यह लालच देकर मूर्ख बनाया जाए कि यदि वर्तमान प्रणाली लागू रही तो एक दिन तू भी राजा बन सकता है। ऐसे लालच से तो आम आदमी का भला होना नही। वास्तव में आम आदमी के लोकतंत्र का अभिप्राय उसकी समस्याओं के समाधान में चौबीसों घंटे रत रहने वाली राज्यव्यवस्था है। सचमुच एक ऐसी राज्य व्यवस्था जो आम आदमी से सदैव संवाद बनाये रखने में सफल रहे। हम इस बात को बिना किसी लागलपेट और ‘डंके की चोट’ कह सकते हैं कि उपरोक्त 8 गुणों के अपनाने से हम एक पूर्णत: उत्तरदायी शासन की स्थापना करने में सफल हो सकते हैं।
क्रमश:

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