अशोक शर्मा
आज जब चारो ओर धर्मं के नाम पर मार काट मची है
दुनिया इंसानों और देशो में कम और धर्मो में ज्यादा बंटी है
तब धर्मो को बनाने वाले क्या ये सोचते होंगे
कि हमें धर्मं बनाने की जरूरत की क्या पड़ी थी
इससे तो दुनिया बिना धर्मो के ही भली थी!!!!!!!!
जब मनु-मोहम्मद-मसीह तीनो एक साथ बैठेंगे
एक दूसरे को कुचलने को तैयार अपने मानस-बेटो को देखेंगे!
तब उन्हें क्या लगेगा?
क्या उन्होंने धर्मं बना कर सही किया?
क्या वे ये सोचेंगे कि
वेदों के शलोक, क़ुरान आयतें और बाइबिल के फ्रेज
बनने के हज़ारों सालो बाद भी इनमें इतने मतभेद!!!!!!!!
फिर वे अपनी बनाई क़िताबो के पन्ने पलटेंगे!
उन्हें वो पंक्तियाँ हर किताब में मिलेंगी जहाँ लिखा है
तुम्हारा धर्मं बहुत अच्छा है उसमें सैकड़ो गुण है
जाओ सारी दुनिया को उसकी अच्छाई बताओ
और जो तुम्हारे साथ आना चाहे उसे अपने साथ कर लो!
लेकिन उन्हें ये पंक्तियाँ कहीं नहीं मिलेंगी जहाँ लिखा हो
कि अपने धर्मं को आतंक का पर्याय बना दो
और जो तुम्हारे धर्मं को ना माने उसे मिटा दो!
या फिर वे समझ जायेंगे कि
ग्रंथो और शास्त्रों से शुरू हुआ उनका धर्मं
अब शस्त्रों के सहारे प्रसारित हो रहा है!
धर्मं, धर्मं की तरह नहीं
एक बिज़नस की तरह प्रचारित हो रहा है
सब ज्यादा से ज्यादा ग्राहक जुटाने में लगे है
धर्मं के बाज़ार में गला काट प्रतियोगिता चल रही है
सबने मैनेजमेंट गुरु बैठा रखे है
दाढ़ी बढ़ाये, टीका लगाये, सफ़ेद चोगा पहने
सब ग्राहक बनाने में लगे है!
मनु के बेटे – यूरोप और अफ्रीका में जा कर
रामायण और भागवत गा रहे है
मसीह और मुहम्मद के बेटे यहाँ उनके घर में
रोज सैकड़ो लोगो को खुद में मिला रहे है!
फिर वे इस बात पर मंथन करेंगे
की हम में से किसी एक के बेटो ने
अगर किसी भी तरह से सारी दुनिया को
कब्ज़ा भी लिया,
सारी दुनिया ने
कोई एक धर्मं अपना भी लिया
तो उससे होगा क्या?
क्या इससे उस मजदूर को कोई फ़र्क पड़ेगा
जिसकी ज़िन्दगी की हर सुबह इसी सवाल से शुरू होती है
कि क्या आज वह अपने और अपने परिवार के लिए
दो वक़्त का खाना कमा पायेगा!
अब वो हे भगवान् कहकर बोझ उठाता है
तब या अल्लाह, ओह जीसस कहकर उठाएगा!
अगर हम तीनो में से किसी का भी बेटा
ऐसी कोई इजाद करे जिससे उसके धर्मं में आने के बाद
मजदूर, औरत और बच्चो को उनका हक़ मिले
बुजुर्गो को सम्मान मिले
कोई भूख और अभाव से ना मरे, तब तो कुछ मजेदारी है
वर्ना कोई भी धर्मं पूरी दुनिया पर अपना
पट्टा लिख दे, सबको अपने रंग में रंग दे
लेकिन पायेगा क्या और देगा क्या ?
पायेगा रोते बिलखते अभावग्रस्त लोग!
जब उसके पास सबको देने के लिए रोटी भी नहीं है
तब वो क्यों अपने सिर पर सबका बोझ रखना चाहता है!
अभी तो किसी ग़रीब मजबूर को देख कर
ये कहकर संतोष कर लेता है – फलां धर्मं के लोग भूखे ही मरते रहते है
तब तो यह कहने का संतोष भी नहीं होगा!
शायद हमारे बेटे किसी दिन इस बात को समझेंगे
धर्म के लिए लड़ने की बजाये, इंसान के लिए लड़ेंगे!
उनका मकसद हरा, सफ़ेद या केसरिया नहीं होगा
उनका मकसद होगा
रोटी का वो गहुआ रंग जो भूख के हर स्याह रंग को मिटा देगा!