आर. सिंह को डॉ. मीणा का जवाब : मनुवादी व्यवस्था के कट्टर समर्थक हैं अन्‍ना हजारे

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’ के लेख पर आर. सिंह की कड़ी टिप्‍पणी आयी। लेखक ने इस टिप्‍पणी पर प्रति-टिप्‍पणी की, जो यहां प्रस्‍तुत है- सं.

आदरणीय श्री आर सिंह जी,

सादर प्रणाम|

आपने इस आलेख पर टिप्पणी की है| इसके लिये आपका आभार|

जहॉं तक आपकी ओर से उठाये गये सवालों के बारे में मेरे मत का सवाल है| तो सबसे पहले तो मैं आपके विचारों का सम्मान करता हूँ और साथ ही इस बात का कतई भी दावा नहीं करता कि जो कुछ मैंने लिखा है, केवल वहीं सच है| सच दूसरों के नजरिये से देखने पर ही सामाने आता है| इसलिये आपके नजरिये पर भी विचार करना चाहिये| फिर भी मैं विनम्रता पूर्वक कहना चाहता हूँ कि-

१. कोई बात किसी व्यक्ति विशेष के मत में सही हो और वह दूसरों के खिलाफ जाती है, तो क्या इस प्रकार से विचार प्रकट करना पूर्वाग्रह का द्योतक है? यदि हॉं तो फिर सभी लोगों को इस बात पर विचार करना होगा कि आज के दौर में पूर्वाग्रह की परिभाषाएँ बदल रही हैं| श्री सिंह जी अब तो सारा संसार जान चुका है कि भारत की कथित हिन्दुत्ववादी ताकतें ही हिन्दुओं की सबसे बड़ी दुश्मन हैं| जो हिन्दुत्व को मजबूत करने और भारत को हिन्दू राष्ट्र बनाने का नाटक करके इस देश के लोगों में वैमनस्यता फैलाने का बखूबी नाटक करती रहती हैं| यही नहीं ये लोग कमजोर तथा विपन्न वर्गों की खिलाफत करते समय अपने मुखौटों का छुपा नहीं पाती हैं और हर हाल में इस देश के कमजोर तबकों को कुचलने पर आमादा रहती हैं| यदि इस बात को मैंने लिख दिया तो यह आपकी दृष्टि में यह पूर्वाग्रह हो गया| यदि आपकी दृष्टि में अब पूर्वाग्रही होने की यही परिभाषा है तो मैं कुछ भी कहने या लिखने की स्थिति में नहीं हूँ| क्योंकि अनुभव और सम्भवत: ज्ञान में भी मैं आपसे बहुत कनिष्ठ हूँ| यदि मेरे विचार से मेरे सच्चे किन्तु थोड़े से कुट विचारों से आपको तकलीफ हुई है तो मुझे दुख है| हालांकि मैं अभी भी अपने विचारों को सही और समाज, राष्ट्र तथा हिन्दुत्व के हित में मानता हूँ|

२. दूसरी बात आपने कही है कि भ्रष्टाचार मिटने से गरीबतम लोगों को लाभ होगा| कागजों पर तो गरीब को लाभ आज भी हो रहा है! कॉंग्रेस का हाथ गरीब के साथ कब से है, परिणाम क्या हुआ? सब बकवास है! जब तक मनुवादी व्यवस्था को समूल नष्ट नहीं किया जाता भ्रष्टाचार समाप्त नहीं हो सकता, जिसके अन्ना कट्टर समर्थक है| यही कारण है कि अन्ना का संघ समर्थन कर रहा है|

३. आपने बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर को हिन्दू धर्म के उत्थान तथा आध्यात्म के साथ जुड़े होने की बात कही है जो आपकी दृष्टि में ठीक हो सकती है, लेकिन इस देश के बहुसंख्यक हिन्दू इस बात को जानते हैं कि ये दोनों मनुवादी व्यवस्था की पुनर्स्थापना के लिये कार्य कर रहे हैं| जिसमें इन दोनों ने बड़ी चालाकी से भ्रष्टाचार और कालेधन को जोड़कर आम व्यक्ति को गुमराह करने का नया और भ्रामक तरीका निकाला है| इनका और इन जैसे ही अनेकों कथित संतों का पहला मकसद मनुवाद की फिर से स्थापना करना है! जिससे इनकी और इन जैसे अनेकों का ठगी का धन्धा चलता है|

मैं समझता हूँ कि आपको यह बतलाने की जरूरत नहीं होनी चाहिये कि मनुवाद की स्थापना का अर्थ है इस देश के ८५ फीसदी लोगों का सफाया| यदि ये लोग सच में ही दमित और साधनविहीन लोगों के सच्चे समर्थक हैं तो ये लोग यह घोषणा क्यों नहीं करते कि इस देश में जब तक स्त्रियों, दलितों, पिछड़ों, आदिवासियों और अल्पसंख्यकों के हाथ में सारे संसाधन और सत्ता नहीं आयेगी तब तक सच में लोक-कल्याणकारी राज्य की स्थापना नहीं हो सकती, जो संविधान का लक्ष्य है| इसके विपरीत मुनवादी सभी ताकतें एक स्वर में महिला आरक्षण और अजा/अजजा/अपिव के आरक्षण का तथा अल्पसंख्यकों के संरक्षण का खुलकर विरोध करती रहती हैं| जो लोग देश की ८५ फीसदी आबादी के विकास को राष्ट्र के उत्थान के खिलाफ मानते हैं, वे स्वयं किसके लिये कार्य कर रहे हैं, यह बात सहज समझी जा सकती है! इन लोगों की विचारधारा का विरोध नहीं करने वाला और, या इनका सहयोग करने वाला कोई भी व्यक्ति चाहे वह कितना ही बड़ा संत या साधु या अन्ना जैसा कथित गॉंधीवादी कोई भी हो ये सब इस देश के सच्चे और असली मालिकों के समर्थक नहीं, विरोधी और दुश्मन हैं| जिनका विरोध नहीं करने का अर्थ है, चुपचाप अन्याय को सहते जाना! जो अन्याय, अत्याचार और भ्रष्टाचार को बढावा देने के समान ही है| जिसे मिटाने का ये नाटक करते रहते हैं|

४. जहॉं तक लोकपाल बनने की बात है, जब तक इस देश में मनुवादी व्यवस्था लागू रहेगी लोकपाल कुछ नहीं कर सकता| सबसे पहले मनुवादी व्यवस्था को मरना होगा, तब ही इस देश का उद्धार होगा| काला धन लाना तो बीमारी का फौरी उपचार करना है| मनुवाद ही तो कालाधन पैदा करता है| मनुवाद ही तो भ्रष्टाचार को पनपाता रहा है| बीमारी के कारण को समाप्त किये बिना, किसी भी बीमारी को कभी भी समाप्त नहीं किया जा सकता|

शभाकांक्षी

डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

12 COMMENTS

  1. iqbal hindustani जी ने पूरा लेख ही लिख दिया।धन्यवाद। बहुतांश में बडा तथ्य पूर्ण लगा।
    लेखक से अनुरोध कि, आज कौनसी घृणित मनुवादी परम्पराओं को खुले आम, और किस मंचसे, समर्थन दिया जा रहा है? बताने का कष्ट करें।सारी की सारी मनुवादी प्रथाएं मुझे घृणित नहीं लगती। कुछ ज़रूर है।
    पर स्मृतियां कोड ऑफ कंडक्ट होती है, वह कालके अनुसार बदलाव मांगती है। १८ स्मृतियां तो मैं गिना सकता हूं। श्रुतियां सनातन होती है। और कालानुक्रमसे स्मृतियां बदली जाती है।
    यदि आप बार बार “मनुवादी, मनुवादी” एक गाली की भांति प्रयोजित करते हैं, तो आप मनुवाद की किस बुरी प्रथाके विषय में कह रहे हैं, यह बताएं। शायद बहुतांश पाठक आपसे सहमत हो जाए।

  2. संयुक्त राष्ट्र अमरीका में भ्रमण करते प्रवक्ता.कॉम पर मीना जी की बेतुकी टिपण्णी पढ़ मैं निश्चल न बैठ सका| उनकी मनुवाद-विरोधी रट और समकालीन स्वस्थ भारतीय समाज में मीना जी की मनोवृति के लोग केवल फोड़ा-फुंसी और आर सिंह जी जैसे लोग मलहम-पट्टी हैं| जब कि मीना जी के अवास्तविक मनुवादी दलित के उत्थान में बाधा बने हैं, वहां रोजमर्रा आटा तेल जुटाने की निरंतर समस्या के बीच स्वयं मीना जी दलित को दलित कह कह उसे आजन्म बेड़ियाँ पहनाएं हुए हैं| अन्ना को न कोसो, रामदेव को न झुठलाओ, कुछ करों, देश में सुशासन लाओ!

  3. सर्वप्रथम तो डाक्टर निरंकुश और टिप्पणीकारों के साथ मैं प्रवक्ता का भी आभारी हूँ कि मेरी टिप्पणी को आप लोगों इतना महत्त्व दिया..जैसे मैंने अपने विचारो के साथ अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए इस लेख पर अपने ढंग से टिप्पणी की,वैसे प्रत्येक को यह अधिकार प्राप्त है.मैं आगे केवल यही कहना चाहता हूँ कि जब भी मैं भ्रष्टाचार के बारे में कुछ कहता हूँ तो मेरा ध्यान भ्रष्टाचार की क़ानून द्वारा मान्य परिभाषा पर रहता है और उसके विरुद्ध किसी अभियान को मैं अन्य किसी सम्बन्ध से जोड़ कर नहीं देखता.ऐसे भी हमारा समाज आज भी ऐसा है कि लड़का लडकी के मिलने पर या अंतरजातीय विवाह को मेरे द्वारा वर्णित भ्रष्टाचार से बड़ी बुराई मानता है या समाज में ऐसे लोग भी हैं जो तथाकथित मनुवादी संस्कार को भ्रष्टाचार का मूल . कारण मानते हैं.ऐसा भी हो सकता है,पर मैं इन सब कारणों से ऊपर उठकर और एक जूट होकर भ्रष्टाचार से लड़ने में ही भारत का उत्थान देखता हूँ.

  4. बहुत ही सार्थक पहल है मीणा जी को वास्तव में केवल शुद्ध मनुस्मृति का ही पाठन करना चाहिए जिससे वास्तविकता का पता तो चले और ये केवल आर्य समाज के पास ही है. शुद्ध मनुस्मृति के किये संपर्क करें nandgurukkr@gmail.com
    9466436220

  5. श्रीमान सिंह साहब
    सादर प्रणाम
    आपके विचारों को पढ़ कर तो ऐसा लगता है की आप भी पूर्वाग्रह से ग्रसित हैं | क्या कभी मनु संहिता पढने का आपने कष्ट किया है ? अगर नहीं तो एक बार आद्योपांत पढ़ लें और फिर मनु वाद को अपनी परिचचा में लायें तो बात गरिमामय लगेगी | मेरी समझ से आज के दिन देश का आम आदि भ्रष्टाचार से ग्रसित है | इसके लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं | आपकी नजरों में अन्ना हजारे अगर मनुवादी भी हैं तो भी चलेगा | किसी ने तो देश को रोग मुक्त करने का प्रयाश किया | सधन्यवाद आपका नागेन्द्र पाठक

  6. श्री आर सिंह और निरंकुश जी जैसे वरिष्ठ कलमकारों के बीच चल रही उच्चस्तरीय बहस में हिस्सा लेना वैसे तो छोटा मंुह बड़ी बात मानी जायेगी लेकिन चूंकि विचार कहीं भी कभी भी छोटा बड़ा नहीं होता इसलिये मैं भी अपने आपको यह लिखने से रोक नहीं पा रहा हूं कि निरंकुश जी की इस बात से सहमत होने के बावजूद कि देश को भाजपा और संघ परिवार की सोच से बड़ा ख़तरा है लेकिन क्या कांग्रेस के केवल इसलिये सौ खून माफ किये जा सकते हैं कि कोई और बेहतर विकल्प नहीं है।
    आप गहराई से देखंे तो खुद कांग्रेस हमारे देश की सबसे बड़ी समस्या है। कश्मीर विवाद से लेकर अब तक दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के साथ जो कुछ पक्षपात और अन्याय हुआ उसके लिये कांग्रेस ही अधिक दोषी है क्योंकि आज़ादी के बाद से सबसे अधिक शासन उसी का रहा है। एक आंकड़े के अनुसार कांग्रेस के राज में अब हुए लगभग 5000 दंगों में कुल 60 हज़ार से अधिक लोग मारे गये हैं जिनमें अधिकांश मुस्लिम थे। 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों का क़त्लेआम उसी की देखरेख और उसके नेताआंे के नेतृत्व में होने के आरोप हैं। सच्चर कमीशन और रंगनाथ कमैटी की रिपोर्ट बता रही है कि आज मुसलमानों की हालत दलितों से भी ख़राब हो चुकी है। खुद दलितों की हालत भी खास बेहतर आरक्षण के बावजूद नहीं हो पाई है जिसकी वजह से बसपा पैदा हुयी और आज सबसे भ्रष्ट होने के बावजूद मायावती देश के सबसे बड़े राज्य मंे पूर्ण बहुमत से राज कर रही हैं। कांग्रेस की गलत नीतियों से देश में पहली बार एमरजैंसी लगी और पंजाब में भिंडरावाला और महाराष्ट्र में बालठाकरे को की साम्प्रदायिकता को राजनीतिक लाभ लेने के लिये बढ़ावा दिया गया। श्रीलंका में शांतिसेना के रूप में भारतीय फौज को भेजा गया और पहले लिट्टे को पैसा और हथियार देकर प्रशिक्षण भी दिया गया। इन दोनों गलत कामों का दुखद परिणाम यह हुआ कि हमारे दो दो पीएम इंदिरा जी और राजीव जी असामयिक हमले का शिकार होकर अपनी जान से हाथ धो बैठे। आज कांग्रेस जिस पूंजीवाद पर चल रही है उसने देश का भट्टा बैठा दिया है। एलपीजी यानी लिब्रल, प्राइवेट और ग्लोबल अमेरिका परस्त ये जनविरोधी नीतियां पहली बार 1991 में कांग्रेस की ही सरकार ने लागू की थी जिसका खामियाज़ा आज देश भ्रष्टाचार और महंगाई के रूप में चुका रहा है। 2009 में कांग्रेस दोबारा सत्ता में आने के बाद तो पूरी तरह तानाशाह और जनविरोधी हो चुकी है अगर वह एक बार फिर सरकार बनाने में कामयाब होती है तो उसको किसी तरह से काबू नहीं किया जा सकेगा।
    जहां तक अन्ना हज़ारे के आंदोलन का सवाल है आप कितना ही झूठा प्रचार करलें कि इस भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के पीछे संघ परिवार है तो एक बात समझ लेनी चाहिये कि गांधी जी कहा करते थे कि अपराधी से नहीं अपराध से घृणा करनी चाहिये। मुझे लगता है यह बात यहां भी ठीक लागू होती है कि संघ परिवार अपनी सोच को लेकर और मामलों में चाहे जैसा हो लेकिन वह भ्रष्टाचार के खिलाफ बिना मांगे अगर देशहित और जनहित में अन्ना के आंदोलन को सपोर्ट करता है तो यह संघ का आंदोलन नहीं हो जाता और न ही इसमें कोई बुराई है। जहां तक बाबा रामदेव और गुरू रविशंकर जी का सवाल है वे अध्यात्मिक संत हैं और अगर कालेधन और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर बोलते या आंदोलन को सपोर्ट करते हैं तो इसमें कोई मनुवाद और संघवाद नहीं है। हर चीज़ को मनुवाद और संकीर्णता से चश्में से नहीं देखा जाना चाहिये। हम मानते हैं कि कांग्रेस अगर आज चुनाव हारती है तो विपक्ष में होने की वजह से भाजपा सत्ता में आ सकती है लेकिन कांग्रेस इस डर से खुद को सुधार भी तो सकती है और भाजपा सरकार बनाने के बाद मनुवाद और हिंदुत्व छोड़कर जनहित में काम करने को भी मजबूर हो सकती है। इस जोखिम को तो उठाना ही होगा वर्ना परिवर्तन कैसे आयेगा? एक शेर याद आ रहा है।
    0 मौत के डर से नाहक़ परेशान हैं,
    आप जिं़दा कहां है जो मर जायेंगे।
    इक़बाल हिंदुस्तानी, संपादक, पब्लिक ऑब्ज़र्वर, नजीबाबाद,यूपी

  7. जिस समज व्यवस्था को मनुवादी कह कर पक्ष और विपक्ष निंदा या समर्थन करता है मेरी समझ से यह गलत है मनुवादी समाज क्या है इसे कभी भी दलित नायकों ने सपष्ट नहीं किया और न ही इससे चिढने वालों ने इसकी व्याख्या की अगर कुछ ने कहा भी तो वह अँधेरे में तीर ही चलाया समाज के विकास को समझने की द्वंदावादी पध्वती की सहायता लेनी चाहिए पर कुछ लोग ऐसे है की इसमें उन्हें मार्क्सवाद की बू आने लगेगी तो उन्हें एक किनारे पर छोड़ कर उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे आधुनिक भारत का संविधान ने स्मृतियों का सहयोग लिया है और हो भी क्यों न अच्छी बाते तो शामिल की जानी चाहिए डाक्टर आंबेडकर नए स्मृतिकार है उनकी भी समालोचना हुई है तो इसमें समस्या कहाँ है ? मै बताता हूँ राजनीति इसकी जड़ है आज के युग में यही एक सस्ता सुभीता और टिकाऊ रास्ता है जिस पर चल कर पब्लिसिटी पाई जा सकती है तो भाई निरंकुश हों या फिर विपिन किशोर ये क्यों मौका चूके चलती का नाम गाड़ी है चलाते चलो.
    बिपिन

  8. विपिन किशोर जी आप निरंकुश जी के विचारों से नहीं सहमत हें तो कोई बात नहीं पर आलोचना करने का यह कौन सा तरीका है की उनकी वेशभूषा क्या है इसका मतलब साफ है की आपके पास न तो शब्द है और न चिंतन की गहराई इसी से तो आपकी नजर बार बार बाहरी उपादानो पर अटक जाती है आपकी वेशभूषा पर भी तो टिपण्णी की जा सकती है विचारों का जबाब शुद्ध विचारों से दिया जाना चाहिए न की गलथोथारी कर के और जो यह आप बार बार हिन्दू धर्म कह कह कर बहुत बड़ा हिंदूवादी बनाने की कोशिश कर रहे वह छद्म हिन्दुवाद है जो इसकी कुरीतियों अन्धविश्वाश को ढक कर आधुनिक बनने की कोशिश कर रहा है अच्छा तो यह होता की इन अन्ध्विश्वाशों के खिलाफ अपनी चिंतन धारा को मोडते पर आप इसका पोषण ज्यादा करते है जहा तक मनुस्मृति की बात है यह एक श्रेष्ठ ग्रन्थ है नीतिशास्त्र पर और तात्कालिक स्थितियों के अनुरूप थी ,यदि मनुस्मृति का लेखक स्त्री के बारे में यह कहता है कि जहाँ स्त्रियों कि पूजा होती है वहां देवता निवाश करते है तो इसका यह अर्थ यह सम्झना चाहिए कि उस समय स्त्रियों कि दशा अच्छी नहीं थी और स्मृतिकार को यह बात लिखनी पड़ी .मेरा सबसे अनुरोध है कि
    हिस्त्रिओग्रफि का अध्यन करते हुए किसी एतिहासिक घटना के बारे में लिखे
    बिपिन

  9. तिरुवळ्ळुवर विरचित तिरुक्कुरळ में गुपतचरों के परिच्छेद ५९ में कहा गया है,
    (१)
    कि गुपचरों को चाहिए कि, वे साधुसन्तोंका वेश धारण करें और ….किन्तु चाहे कुछ भी हो जाए, वे अपना भेद न बतावें।
    (२)
    लगता है, सन्त के भेष में तिलकधारी, रुद्राक्ष(?) की माला पहने, और भगवा वस्त्र धारी, दूसरा छद्द्मवेश “अग्निवेश” आ गया है।
    (३)
    सुना है खोटे पैसे की गति अधिक होती है….अधिक चलता है।
    (४)
    अच्छा शायद यही है, कि डॉ. निरंकुश ने तिरुक्कुरळ या वैसी ही कोई पुस्तक तो पढी।

  10. भाई मीना जी , हर उस व्यक्ति को जो समाज के उत्थान की बात कहता है और राष्ट्र के प्रति निष्ठां जगाने का काम करता है मनुवादी कहकर लांछित करना उचित नहीं है. यदि समाज की एकता के लिए काम करने वाले हर व्यक्ति को गाली के रूप में मनुवादी कहकर उसका तिरस्कार किया जाये तो हर वह व्यक्ति आलोचना के काबिल होगा जो दलित/वंचित न होते हुए भी समाज के उत्थान का प्रयास करेगा. इस लिहाज से तो कबीर, नानक, दयानंद, विवेकानंद, और यहाँ तक की वो आम्बेडकर जिन्होंने बालक भीमराव को अपनाकर उन्हें प्रोत्साहन देकर आगे बढाया जिससे आगे चलकर भीमराव ने अपने नाम के आगे आम्बेडकर जोड़ लिया सभी निंदनीय हो जायेंगे.देश में आज दो तरह के आन्दोलन चल रहे हैं. एक वो जो गाली देकर पुरानी प्रथाओं को बुरा भला कहकर समाज को भड़काने का कार्य कर रहे हैं; दुसरे वो जो समाज की कुप्रथाओं को पहचानकर उनकी चर्चा में समय नष्ट न करके उनसे हटकर नयी प्रथाओं को चलाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि अतीत के निंदनीय कार्यों से पीछा छुड़ाकर एक स्वस्थ नए समाज का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ा जाये.हजूर जीवन आगे बढ़ने का नाम है. पीछे अटके रहने से कोई फायदा किसी को नहीं मिलता है. न व्यक्ति को न समाज को.अतः कृपया अपने वैचारिक पूर्वाग्रहों से आगे बढ़कर समाज को स्वस्थ दिशा देने के प्रयास करें.

  11. निरंकुश जी की बात से मै सहमत हूँ भ्रसटाचार की पड़ताल समाज के हर कोने से की जानी चाहिए आज तक हिन्दू समाज अपनी सड़ी गली
    परम्पराओं से निजात पा नहीं सका है जो शोषण के आधार पर टिकी है कभी धर्म के नाम पर कभी परंपरा के नाम पर और कभी सांस्कृतिक बन्धनों के नाम पर शोषण की व्यवस्था बड़े आराम से चली आ रही है इसमें दलित आदिवासी और स्त्री का कोई स्थान नहीं है वे तो मूक प्राणी की तरह निर्णय को मानने को बाध्य है अन्ना हजारे तो केवल एक पहलु की बात करते है पर यह भी शुरू होता है दलित आदिवासी और स्त्री विमर्श के साथ जहाँ उनकी कोई गति नहीं है यद्यपि में इसे कोई नाम नहीं दूंगा जैसा निरंकुश जी ने मनुवादी कह कर दी है वैसे मेरी समझ ने यदि मनुवादी शब्द एक विचारधारा के लिए उपयोग में लाया जाता है जो सामंत वादी प्रकति वाले व्यक्ति के लिए है तो दलित आदिवासी या फिर स्त्री वे भी सत्ता जब हाथ में आती है तो मनुवादी विचारधारा से प्रेरित हो कर शोषण और लूट में पीछे नहीं रहती है इसका ज्वलंत उदहारण मायावती है जो दलित भी है और स्त्री भी है उनका भ्रसटाचार और लूट क्या मनुवादी सामंती मिजाज का द्योतक नहीं है क्या उनका रहन सहन किसी सामंत से कम है अब इस बात पर भड़क नहीं जाइएगा क्यों की दलित वाद का मुखौटा पहन कर कितनो ने लोगो को मुर्ख बनाया और बना रहे है और आगे भी बनाते रहेंगे .बड़े आराम से आपने गाँधी इत्यादि को दलित आदिवासी विरोधी करार दे दिया पर उनके अपनों की दुर्गति आपने लोगों के द्वारा ही हो रही हो तो अन्ना हजारे की जरूरत क्या है खुद आगे बढ़ो और इसे दूर करो क्या किसी दलित आदिवासी नेता ने भ्रसटाचार जो समाज में व्याप्त है खासकर उनके ही वर्गों में कभी आवाज उठाने की कोशिश की है राजनितिक चालबाजिया अलग बात है उससे किसी का भला नहीं हो सकता है सुधार लाना है तो खुल कर सामने आये जो बुराइया इन समाजो में व्याप्त है अंधविश्वास डायन और शराबखोरी जैसी अन्य , इन्हें दूर करे शिक्षा का का प्रसार करे और अपनों के भ्रसटाचार का शिकार न बने .
    बिपिन

  12. आपके कई लेख हमने पढे हैं। आपके बदलते विचारों की तरह आपका परिचय का चित्र भी रंग बदलता है। पहले आपने आंग्ल परिधान में अपना चित्र दे रखा था लेकिन जब आपको प्रवक्ता के पाठकों ने हिन्दू-विरोधी घोषित किया तो आपने दूसरा चित्र लगा दिया। वर्तमान चित्र में आप ने गेरुआ वस्त्र के साथ रुद्राक्ष की माला धारण कर रखी है ताकि लोग आपको धर्मपारायण समझे और आपकी बातों पर विश्वास करें। इस छद्म परिधान और पवित्र माला की पृष्ठभूमि में आपने फिर हिन्दुत्व पर आघात करना आरंभ कर दिया है। श्री आर. सिंह तो आपको पूर्वाग्रही कहते हैं, मैं तो ये मानता हूं कि आप हिन्दू धर्म से घृणा करते हैं। आपके लेख आपकी घृणा के दर्पण हैं। जिस मनु की व्यवस्था और मनुस्मृति की बात आप करते हैं, वह कहां है? क्या भारत के संविधान ने मनुस्मृति को मान्यता दी है। देश अपने संविधान से चल रहा है, न कि मनु से। फिर हवा में तलवार भांजने से क्या लाभ? आपका पूरा प्रयास है कि हिन्दू विभाजित हों और समाज में घृणा का व्यापक प्रचार-प्रसार हो। आप वही कर रहे हैं, जो पाकिस्तान और चीन चाहते हैं। मैं आपके अन्दर विवेक जगाने के लिए नीरज की दो पंक्तियां उद्धृत कर रहा हूं। शायद इससे आपका चिन्तन समग्रता की ओर बढ़े।
    घृणा का प्रेम से जिस रोज अलंकरण होगा,
    धरा पर स्वर्ग का उस रोज अवतरण होगा।
    जय रामजी की! वन्दे मातरम!!

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