कई मायने में ऐतिहासिक रहा 66वां गणतंत्र दिवस समारोह

republic dayकेंद्र में तीस वर्षो के बाद राजनैतिक परिवर्तनों के बाद आयोजित 66वें गणतंत्र दिवस समारोहों व उसमें निकलने वाली भव्य परेड पर इस बार भारत ही नहीं अपितु पूरे विश्‍व की निगाहें लगी हुई थीं। इस बार अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की अपनी पत्नी मिषेल के उपस्थिति से यह आयोजन और भी अधिक भव्य व मन को रोमांचित तथा नये उत्साह से लबरेज करने वाला यह समारोह हो गया। अपनी राजनैतिक पारी में अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा पहली बार खुले आसमान के नीचे हल्की बारिश के बीच बैठे रहे व भारत की सैन्य शक्ति व सांस्कृतिक विरासत को भाव विभोर होकर देखते रहे। अमेरिकी मीडिया व सोशल मीडिया में यह गणतंत्र दिवस समारेाह छा गया तथा अमेरिका से नारी सशक्तिकरण की तारीफों के पुल भी बांधे गये हैं। विगत कई वर्षों से आतंकवादी साये व धमकियों के चलते भव्य परेड का आकार व समय लगातार कम होता जा रहा था लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ। सभी आतंकी धमकियों को दरकिनार करते भव्य परेड का समारोह शांतिपूर्वक संपन्न हो गया यह भारतीय एजेंसियों के लिए भी सुखद व गौरवशाली क्षण हैं क्योंकि इस बार विश्व के सबसे ताकतवर देश अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की उपस्थिति के बाद अतिरिक्त सुरक्षा का भार एजेंसियों के पास आ गया था। एजेंसियों ने अपना दायित्व बखूबी निभाया है। इस बार की परेड का थीम नारी सशक्तिकरण था। इस बार 16 राज्यों और नौं केंद्रशासित राज्यों की झाकियों सहित कई विभागों की झांकियों ने एक भारत श्रेष्ठ भारत के नारे पर काम किया। वहीं ऐसा भी प्रतीत हो रहा है कि परेड में मोदी का प्रभाव भी स्पष्ट रूप से दिखा है जबकि उत्तर प्रदेश की ओर से प्रदर्शित की झांकी में नवाबों की झलक दिखाकर मुस्लिम तुष्टीकरण का एक और श्‍ार्मनाक उदाहरण प्रस्तुत किया गया है। यूपी सरकार के सभी विभाग केवल और केवल वंशवादी समाजवाद के विकृत मुस्लिम तुष्टीकरण का नजारा पेष करके अपनी वोटबैंक की मानसिकता को ही परोस रहे हैं और पूरी दूनिया के सामने अपनी जगहसाई करवा रहे है। इस बात के भी संकेत मिल रहे हैं कि राष्ट्रपति ओबामा की आगरा यात्रा सुरक्षा कारण व सऊदी अरब के शाह का निधन तो बहाना मात्र है उसके पीछे समाजवादियों की अमेरिकी विरोध की मानसिकता भी है। अमेरिकी राष्ट्रपति की अचानक आगरा यात्रा रद्द होने से प्रदेश की समाजवादी सरकार के खिलाफ एक छिपा हुआ संदेश चला गया है। यह समाजवादी सरकार सुरक्षा दे पाने में पूरी तरह से नाकाम हो रही है। इस सरकार में अब कोई भी सुरक्षा का पुख्ता दावा नहीं कर सकता। उत्तर प्रदेश की जनता अपने आप को निराश समझ रही है उसे अब केवल और केवल एक बड़े अवसर का इंतजार है।

इस बार उप्र की झंाकी को छोड़कर सभी झांकियां एक से बढ़कर एक थी वहीं कुछ कोई न कोई संदेश भी दे रहीं थीं। बहुत दिनों बाद वित्त मंत्रालय की झांकी देखने को मिली जिसमे प्रधानमंत्री जन- धन योजना को दिखाया गया। रेल मंत्रालय ने प्रधानमंत्री मोदी के स्वप्निल सपने को दिखाया । इसके अतिरिक्त इस बार की भव्य परेड में मेक इन इंडिया, आदर्श ग्राम पंचायत व उनका विकास सहित मंगलयान का भी गुणगान करने वाली झांकियां व नृत्य इत्यादि प्रस्तुत किये गये। गुजरात की झांकी में सरदार पटेल की भव्य प्रतिमा को प्रदर्शित किया गया। महाराष्ट्र की झांकी संत ज्ञानेश्वर पर आधारित थी। एक प्रकार से सभी झांकियों में विविधतापूर्ण भारतीय संस्कृति के रंग दिखलाई पड़ रहे थे। राजपथ पर एक भारत श्रेष्ठ भारत व सबका साथ सबका विकास का नारा आकार ले रहा था। परेड में डिजिटल इंडिया व स्मार्ट सिटी का सपना भी उकेरा गया था। इस बार पहली बार महिलाओं ने पर्याप्त भागीदारी की। यह उनके लिए बेहद गौरवशाली क्षण थे। सबसे यादगार झांकी आयुष मंत्रालय की भी रही जिसमें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस का उल्लेख किया गया और योग तथा आयुर्वेद का महत्व परिलक्षित किया गया।

इस बार की परेड चूंकि कुछ लम्बी थी इसलिए कुछ टीवी चैनलों और सोशल मीडिया में इस विषय को लेकर भी बहस छिड़ गयी है जो कि बेहद निराशाजनक है। यह बहस की जा रही है हर वर्ष गणतंत्र दिवस पर निकलने वाली यह परेड 1955 से लगातार निकलती जा रही है अब इसका स्वरूप परिवर्तित किया जाना चाहिये। इस प्रकार की सोच रखने वाले सेकुलर लोग हैं और विदेशी मानसिकता से ग्रसित हैं तथा इस प्रकार की बहसों को जन्म देने वाले वे लोग कहीं न कहीं भारतीय परम्पराओं को विकसित होते हुए नहीं देख सकते। यह भी बहस की जा रही है कि क्या यह परेड छोटी और सीमित नहीं की जा सकती। आजकल देश में विचारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर लोगों को कुछ भी बोलने और बहस करने की खुली छूट मिल गयी है। यह सब कुछ भारत की सांस्कृतिक विरासत के खिलाफ एक असभ्य अपराध है। पता नहीं क्यों टी वी व सोशल मीडिया इस प्रकार की बेतुकी बहसें क्यों करने लग जाता है।हम विश्व के सबसे बडे़ं लोकतांत्रिक देश है। हमें अपना गणतंत्र इसी प्रकार से पूरे धूमधाम और उत्साह के साथ मनाया जाना चाहिये। अगर हम साल में केवल एक दिन वह केवल दो घंटे अपने देश की विरासत को समझने के लिए नहीं दे सकते तो फिर हम सभी भारतीय नहीं कहें जायेंगे। हमें अपने गणतंत्र व सांस्कृतिक, आर्थिक व सैन्य शक्ति पर गर्व होना ही चाहिये तथा भावी पीढि़यों में इन सभी का हस्तांतरण करना चाहिये तभी भारत और भारतीयों का डंका पूरे देश में बजेगा। निश्चय ही इस बार के गणतंत्र दिवस समारोह का पूरे विश्व में एक संदेश गया है कि अब भारत का राजनैतिक नेतृत्व बहुत ही मजबूत हाथों में तथा उस पर किसी प्रकार का कोई भी दबाव नहीं है तथा आवश्यकता पड़ने पर हर प्रकार का निर्णय लेने भी सक्षम है।

 

1 COMMENT

  1. इसमें कोई शंका नहीं की गणतंत्र दिवस मैं नयापन था। और नारी सशक्तीकरण के अनुरूप झांकिया प्रदिर्शित की गयी. बेटियों का पिता होने के नाते जब मैं विंग कमान्डर पूजा ठाकुर को सलामी देते हुए और परेड का नेतृत्व करते हुए देख रहा था तो हर्ष और कौतुहल से मेरे रोंगटे खड़े हो गये. मेरी बेटियों भी एन सी सी मैं रही हैं उन्हें परेड करते देखा है, बरबस मुझे बेटियों की याद आगई. देशी सुघंद होने से यह दिवस विशेष रहा है. बीटिंग रिट्रीट मैं भी अब की बार कई धुनें भारतीय थी. कई चैनलों पर ताजा हाल सुनानेवाले जो भूतपूर्व सैन्य अधिकारी थे वे भी अभिभूत थे। सुरक्षा एजेंसियां चौकस होने से समारोह मैं कोई अनहोनी या ज़रा सी भी चूक नहीं हुई ,अन्यथा कुछ नेता और चैंनल आसमान सर पर उठा लेते. इतना भव्य ,लम्बे समय चलनेवाला ,समारोह एक सुखद स्मृति है. खासकर तब जब अमेरिकी राष्ट्रपति प्रोटोकॉल के विरुद्ध ४५ मिनिट की बजाय २ घंटे खुले आसमान मैं रहे हों। अब एक युवा नेता और ह्र दय सम्राट को मोदीजी के नामधारी सूट को उछालने की सलाह मिलिऽउर चुनावी सभा मैं उन्होंने सूट के बारे मैं चर्चा कि. क्या मानसिकता है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here