अनगिनत टैक्स से जूझता आम भारतीय नागरिक

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गोपाल सामंतो

कुछ दिनों पूर्व जब मैं रायपुर से नागपुर तक का सफ़र अपनी गाड़ी से कर रहा था तो एक ख्याल मेरे मन में हर कुछ किलोमीटर के सफ़र के बाद बार बार आ रहा था कि आखिर मैं इन्कम टैक्स पटाता ही क्यों हूं? और ये सवाल इसलिए आ रहा था क्योंकि इस 300 किलोमीटर के सफ़र में मेरे जेब से टोल टैक्स के रूप में 100 रुपये लग चुके थे और वापस आते वक़्त भी इतने का ही चुना मुझे दोबारा लगा. मुझे ये भी पता है कि शायद इन पंक्तियों को पढ़ के कुछ लोग जरूर ये बोलेंगे कि देखो ये व्यक्ति मात्र 200 रूपये के लिए रो रहा है. क्योंकि सबसे बड़े लोकतन्त्र में ऐसी भावनाए रखने वालों को अक्सर हीन दृष्टि से देखा जाता है या ये सोचा जाता है कि ऐसी सोच रखने वालों के पास कोई काम नहीं होता है. ऐसे आजकल देश का इन्कम टैक्स डिपार्टमेंट बहुत तेज तर्रार हो चुका है और अपने विज्ञापनों के माध्यम से लोगों के बीच डर और देशप्रेम दोनों भावनाओं को जगाने में लगा हुआ है. इनके विज्ञापनों में ये बताया जाता है कि हमारे टैक्स के पैसो से रास्ते, पूल आदि अन्धोसंरचना का विकास होता है. पर अब मेरा सवाल ये है कि अगर मैं हर साल इन्कम टैक्स नियमित रूप से अदा करता हू तो इसका मतलब कही न कही मेरा योगदान भी इन सड़कों के निर्माण में है तो फिर मुझसे टोल टैक्स क्यों लिया जाता है?

देश के इकोनोमिक सिस्टम को अगर गौर से देखा जाए तो ये पता चलता है कि यहाँ हर नागरिक चाहे वो इन्कम टैक्स के दायरे में आता हो या न हो पर उसे हर दिन अनगिनत टैक्स पटाना पड़ता है. हद तो ये है कि मनोरंजन पर भी कर अदा करना पड़ता है और इन गाढ़ी मेहनत कि कमाई से हजारो करोड़ के घोटालो को अंजाम दिया जाता है. आलम तो ये है कि आज हर भारतीय नागरिक को अनगिनत टैक्स पटाने पड़ते है चाहे वो इन्कम टैक्स के दायरे में आता हो या नहीं. एक मोबाइल के बिल में सरकार 3 तरह के टैक्स वसूलती है, 10 फीसदी का सर्विस टैक्स, 2 फीसदी एजुकेशन सेस और उस पर 1 फीसदी का हायर एजुकेशन सेस. देश जब आज़ाद हुआ था तब सूदखोरी को कानूनन अपराध के श्रेणी में लाया गया था पर आज जो इन्कम टैक्स विभाग हर टैक्स के ऊपर टैक्स ले रही है तो ये क्या अपराध नहीं है. अगर यूरोप और एशिया के ज्यादातर देशों के टैक्स पालिसी को देखा जाए तो कही भी सर्विस टैक्स का उल्लेख न के बराबर ही है. अमरीका और ब्रिटेन में डायरेक्ट सर्विस टैक्स का प्रावधान है ही नहीं और न ही सेस का, आखिर भारत कि अर्थव्यवस्था में ऐसी क्या जरूरत आन पड़ी है कि एक एक नागरिकों को टैक्स के बोझ के तले दबा दिया जा रहा है .

आज देश के महंगाई के स्तर को देखें तो 1,80,000 कि टैक्स फ्री लिमिट बहुत कम लगती है, बड़े शहरों में तो इतने में मध्यम वर्ग का घर नहीं चल पाता है. महानगरों कि परिस्थिति ये है कि खाली किराया में ही लोगों को लाखो खर्च बढ़ जाते है, बच्चों कि शिक्षा और स्वस्थ के तो क्या कहने इन पर तो जितना खर्च कर ले उतना कम है. तो आखिर ये सब सरकार को समझ क्यों नहीं आती है. भारत शायद इस विश्व के कुछ चुनिन्दा देशो में आता है जहा मनोरंजन पर भी टैक्स लगाया जाता है, मतलब आपको खुश रहने का भी टैक्स अदा करना पड़ता है.

इस देश में जो वर्तमान टैक्स पोलिसी है उसके तहत यहाँ के नागरिकों को पहले पैसे कमाते वक़्त टैक्स चुकाना पड़ता है और जब वे अपने उन पैसो को खर्च करते है तो दोबारा टैक्स पटाना पड़ता है. बाद में यही टैक्स का पैसा है जो घोटालो के रूप में भ्रष्ट नेताओ और अधिकारिओं के जेब गरम करने का काम करता है और कभी कभी इन तमाम कद्देवर लोगों के स्विस बैंक में भी सड़ते है. एक सर्वे के अनुसार स्विस बैंक में रखे भारतीय पैसों को अगर देश में लाया जा सका तो एक ऐसी व्यवस्था कड़ी हो पायेगी जिससे आने वाले ३० सालों तक देश के नागरिको को टैक्स से राहत दिया जा सकेगा. ये वही देश है जहा एक केंद्रीय मंत्री के अध्यक्षता वाले अंतरास्ट्रीय क्रिकेट कमेटी को 45 करोड़ रुपये की टैक्स छूट प्रदान की जाती है. आखिर ऐसा इस कमेटी ने देश के लिए क्या कर दिया कि इस संस्था को इतनी बड़ी छूट दी गयी? ये समझ से परे है अलबत्ता देश के महंगाई मंत्री शरद पवार ने इस छूट कि नीव रखी ये जग जाहिर है.

जब अन्ना हजारे जी मैदान में भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल फूका तो पूरा देश उनके साथ खड़ा हो गया, कभी अगर इस ओर भी उनका विचार गया तो शायद देश में सत्तासीन लोगो के कान में आवाज पहुच पायेगी.

 

4 COMMENTS

  1. श्री गोपाल जी ने बिलकुल सही सवाल उठाया है. आज इस देश के नियम कायदे ऐसे लोग बनाते है (अति उच्च वर्ग, बहुत ज्यादा पढ़े लिखे और बहतु ऊँची पदवियो पर बठे लोग) जिन्हें यह पता नहीं होता है की गुड और तेल में क्या बोतल में मिलेगा और क्या पुडिया में. कौन सही इकोनोमिस्ट है?.

  2. भाईजी
    आपने मेरा विषय pakad liya. kai दिन से मै भी इसपर कुछ लिखना चाह रहा था.
    आप केवल रोड टैक्स की baat कर रहे है या आयकर की . आप जरा ध्यान से सोचिये की rojana के जीवन में आप कितना कर देते हैं. जबसे वेट कर का नया तरीका सरकारों को mila है हर बजट मैं वेट के लिए नयी चीजो को शामिल कर दिया जाता है. आपने कभी pada या सुना होगा की yadi अत्याचार का विरोध नहीं करोगे तो अत्याचारी aik दिन आपका सर्वस्व हड़प लेगा. कुछ varsh poorva jab वेट लगाया gaya था तो उसका jyada विरोध नहीं हुआ और फिर हर साल वेट के लिए नयी-नयी वस्तुओं को liya जाने लगा. आज स्थिति ये है की हर वास्तु की खरीद पर और हर seva पर वेट lagakar जनता को लूटा ja रहा है क्योंकि koi विरोध नहीं करता. annji जैसे लोग कभी खड़े होते हैं तो कोई unka साथ नहीं देता. मुझे तो आश्चर्य हुआ दिल मैं यह देखकर की इस बार कैसे इतने लोग साथ खड़े ho gaye. yadi aarambh मैं hi iske khilaf लोग खड़े ho jate तो sarkar की aage badne की himmat नहीं hoti. jis prakar dilli मैं bijali का nijikaran karke dilli sarkar ne apni bala tali साथ hi lakho karod rupaye rishvat के dakare और uske विरोध मई dilli के sabhi लोग खड़े नहीं hue तो ab dilli sarkar pani के nijikaran से भी apna khar bharna chahti है और nitya naye hathkande apnakar pani के लिए logon को pareshan कर rahi है.

    mahoday , yadi ab भी लोग नहीं chete तो jald hi vah दिन भी aane vala है jab लोग saans lene के लिए भी टैक्स denge और apni kamar पर saans mitar lekar ghomenge. इस sarkar के khoon munh lag chuka है और jab tak जैसे annaji के pradarshan के samay netao को bhaga दिया gaya था usi prakar yadi neta को dekhate hi joote नहीं maare jaye तो इस desh की जनता का कुछ नहीं hone vala.

  3. सरकार रोड टैक्स भी लेती है , पता नहीं किस लिए ?

    पहले टोल टैक्स का नियम होता था की एक बार टैक्स पटा दिये तो 24 घंटे तक फिर नहीं लगेगा लेकिन अब हर जगह अलग टैक्स लगता है क्योंकि सरकार आजकल सड़क नहीं बनाती केवल ठेका देती है ।

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