सिकंदर लोदी बारादरी पर मरियम उज-जमानी का मकबरा

डा. राधेश्याम द्विवेदी
शाहजहां ने अपनी प्रेमिका मुमताज के लिए ताजमहल बनवाया, तो वहीं शाहजहां के पिता जहांगीर ने अपनी मां की याद में एक भव्य स्मारक बनवाया। नेशनल हाईवे दो पर अकबर टॉम्ब से महज 500 मीटर की दूरी पर यह मथुरा सड़क पर बायीं ओर तथा अकबर का मकबरा, सिकंदरा से पश्चिम की ओर मरियम का मकबरा स्थित है। मरियम उज-जमानी की मृत्यु 1622 में हुई और उसके बेटे जहांगीर ने उनके नाम पर इस महल का निर्माण करवाया था। यह महल अकबर के मकबरे के करीब ज्योति नगर में तंतपुर रोड पर स्थित है। पहले इस महल का निर्माण पर्दे में रहने वाली शाही औरतों के आवास के रूप में किया गया था। इस महल के प्रांगण के चारों ओर कई सारे कमरे बने हुए हैं। महल के उत्तरी छोर पर एक बाग भी है, जो एक पुल के जरिए महल से जुड़ा हुआ है। अकबर की पत्नी मरियम जयपुर के कछवाहा राजा भारमल की पुत्री थीं जिसने जब अकबर को उत्तराधिकारी के रूप में सलीम दिया, तो अकबर ने मरियम को मरियम जमानी का खिताब दिया। मरियम जमानी का मतलब होता है विश्व पर दया रखने वाली। बाद में यही सलीम जहांगीर के नाम से जाना गया। मरियम अजमेर के राजा भारमल कछवाहा की बेटी थी। उनकी शादी मुगल बादशाह अकबर से हुई थी। इस मकबरे में आमेर (जयपुर) की राजपूत राजकुमारी, बादशाह अकबर की बेगम तथा जहागीर (सलीम) की मा मरियम जमानी के पार्थिव अवशेष हैं।
सिकंदर लोदी की बारादरी में मरियम की समाधि:-1495 ई. में सिकंदर लोदी द्वारा बनवाया गया यह भवन एक उत्सव मण्डप था। सिकंदर लोदी की इस बारादरी में 1623 ई. में नवनिर्माण तथा पुननिर्माण कर इसे मकबरे में बदला गया। इस समाधि का निर्माण 1623 से 1627 के बीच चार साल में पूरा हुआ। भूतल पर सिकंदर लोदी द्वारा बनवाए गए लगभग 40 प्रकोष्ठ हैं, जिन पर चित्रकारी तथा पलस्तर युक्त दीवारों के जीर्ण-शीर्ण अवशेष हैं। भूतल के मध्य (केन्द्र) में मरियम की समाधि है। बारादरी का अग्रभाग लाल बालुआ-पत्थर का पृष्ठावरण है जो कई खण्डों में बॅंटा है तथा इन पर ज्यामितीय नमूने तथा निम्न उद्भृत ( ऐसी निर्मितिया जिनमें आकृति आधार पटल से कुछ उभरी हुई होती है) नक्काशी की हुई है। इस संरचना के प्रत्येक कोनों पर अलंकृत अष्टफलकीय मीनार लगी हैं। मीनार के ऊपर पतले स्तम्भों पर टिका एक मण्डप है। ऊपरी मंजिल पर खुले आकाश के नीचे संगमरमर की समाधि है।
बाग में स्थित समाधि:-यह वर्गाकार समाधि एक बाग में स्थित है और इसके मध्य में दो गलियारे हैं। इस मकबरे की छत मेहराबदार है और इसका निर्माण एक बड़े से वृतखंड पर किया गया है, जो एक बड़े से खंभे पर टिका हुआ है। इसका निर्माण ईट और संगमरमर के चूने से किया गया है। इसके चारों कोणो पर मौजूद चार बड़ी-बड़ी छतरियां इसकी शोभा और बढ़ा देती है। मुगल वास्तुशिल्प शैली में बना यह मकबरा ‘बिना गुंबद के मकबरा’ का एक बेहतरीन नमूना है।
हरियाली से घिरा है यह मकबरा:-पुरातत्व विभाग के अुनसार यह लोदी काल की एक बारहदरी है। मुगलों ने इसे अपनाकर इसमें मकबरा बना दिया। इसके केन्द्रीय कक्ष के नीचे एक तहखाना बनाया गया। इमारत के चारों मुखारों को लाल पत्थर के उत्कीर्ण फलकों और छज्जों से बनाया गया है। चारों कोनों पर दुछतियां बनाई गई हैं। यह मकबरा चारों ओर से हरियाली से घिरा हुआ है। यह पूरी इमारत नौ भागों में बांटी गई है। चारों दिशाओं में गलियारे हैं। इस मकबरे में तीन कब्रे हैं। एक तहखाने में स्थित मूलकब्र है, बाकी की दो कब्रें प्रतीकात्मक हैं, जो ऊपरी भूमितल और छत पर हैं।
गुम्बद विहीन मकबरों में इसका विशिष्ट स्थान:-इस इमारत के अंदरूनी हिस्सों और बाहरी छज्जों को संभालने के लिए सुंदर मदलों का प्रयोग किया गया है। प्रत्येक खम्भे पर पांच मदले हैं, इस प्रकार एक छतरी पर 40 मदले सजाए गए हैं, जो देखने में बडे ही अद्भुत हैं। यह इमारत बिना गुम्बद के भी स्वंय में पूर्ण है। इस मकबरे का मुगलों के गुम्बद विहीन मकबरों में विशिष्ट स्थान है।

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