उलझी हुई सी ज़िन्दगी,
बेचैन सी रातें,
उलझे हुए तागों मे,
पड़ती गईं गाँठे,
ये गाँठे अब,
खुलती नहीं मुझसे
उलझी हुई गाँठों को
बक्से बन्द करदूँ,
या गाँठों से जुडी बातों को,
जहन से अलग कर दूँ।
अब कोई मक़सद,
नया मै कहीं ढूँढू,
ज़िन्दगी की यही चाल है तो,
ऐसे ही न क्यो जी लूँ