गरीब बच्चों के लिये बाल दिवस का क्या मतलब ?

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     bal diwas मिलन सिन्हा

फिर बाल दिवस आ गया और चाचा नेहरु का जन्म दिवस भी । फिर अनेक सरकारी- गैर सरकारी आयोजन होंगे । स्कूलों में पिछले वर्षों की भांति कई कार्यक्रमों का आयोजन होगा, ढेरों बातें होंगी, बच्चों की भलाई के   लिए ढेर सारे वादे किये जायेंगे, तालियां बजेंगी, मीडिया में तमाम ख़बरें होंगी । इस साल ये सब कुछ थोड़ा ज्यादा और जुदा भी होगा क्यों कि बच्चों की बेहतरी के लिए समर्पित दो शख्सियतों, सत्यार्थी व मलाला को नोबल शांति पुरस्कार जो मिला है । हां, आजाद भारत के पहले प्रधान मंत्री और बच्चों के चाचा नेहरू के जन्म दिन के उपलक्ष्य में भी अनेक कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे । बस और क्या ?

ज़रा सोचिये, इस मौके पर पूरे देश में जितने रूपये सारे सरकारी – गैर सरकारी आयोजनों में खर्च होंगे तथा खर्च हुए दिखाए जायेंगे, उतनी भी राशि अगर कुछ गरीब, बेसहारा, कुपोषित बच्चों के भलाई के लिए कुछ बेहद पिछड़े गांवों में   खर्च किये जाएं तो बच्चों का कुछ तो भला होगा ।

आजादी के 67 साल बाद भी पूरी आजादी से गरीब छोटे बच्चे सिपाही जी को रेलवे के किसी स्टेशन पर या चलती ट्रेन में मुफ्त में गुटखा, सिगरेट,बीड़ी या तम्बाकू खिलाता,पिलाता दिख जायेगा। वैसे ही दिख जाएगा नेताओं, मंत्रियों, अधिकारियों के घर में भी नौकर के रूप में काम करते हुए लाचार, बेवश छोटे गरीब बच्चे। सड़क किनारे छोटे होटलों, ढाबों, अनेक छोटे-मोटे कारखानों, दुकानों आदि में ऐसे छोटे बच्चे सुबह से शाम तक हर तरह का काम करते मिल जायेंगे । यह सब देख कर ऐसा प्रतीत होता है कि हमारे देश में जन्म से ही गरीब तबके के बच्चों के साथ लापरवाही या जैसे-तैसे पेश आने का प्रचलन रहा हो ।

बहरहाल, इस मौके पर निम्नलिखित तथ्यों पर गौर करना प्रासंगिक होगा । बच्चों के अधिकार पर आयोजित संयुक्त राष्ट्र संघ अधिवेशन में पारित प्रस्ताव के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु के लड़का और लड़की को बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है । भारतवर्ष में बच्चों की कुल संख्या देश की आबादी का 40% है, यानी करीब 48 करोड़ । देश में हर घंटे 100 बच्चों की मृत्यु होती है । भारत में बाल मृत्यु दर (प्रति 1000 बच्चों के जन्म पर ) अनेक राज्यों में 50 से ज्यादा है जब कि इसे 30 से नीचे लाने की आवश्यकता है । दुनिया के एक तिहाई कुपोषित बच्चे भारत में रहते हैं ।   देश में आधे से ज्यादा बच्चे कुपोषण के कारण मरते हैं ।   पांच साल तक के बच्चों में 42% बच्चे कुपोषण के शिकार हैं । जो बच्चे स्कूल जाते है उनमें से 40% से ज्यादा बीच में ही स्कूल छोड़ देते हैं जब कि शिक्षा के अधिकार कानून के तहत उनके स्कूली शिक्षा के लिए सरकार को हर उपाय करना है । हाल के वर्षों में बच्चों के खिलाफ अपराध के मामलों में वृद्धि हुई है ।

इस तरह के अन्य अनेक तथ्यों से हम पढ़े-लिखे, खाते-पीते लोग रूबरू होते रहते है । वक्त मिले तो कभी -कभार थोड़ी चर्चा भी कर लेते हैं । लेकिन, अब सरकार के साथ-साथ हमारे प्रबुद्ध तथा संपन्न समाज को भी इस विषय पर गंभीरता से सोचना पड़ेगा और संविधान/कानून के मुताबिक जल्द ही कुछ प्रभावी कदम उठाने पड़ेंगे, नहीं तो इन गरीब, शोषित, कुपोषित,अशिक्षित बच्चों की बढती आबादी आने वाले वर्षों में देश के सामने बहुत बड़ी और बहुआयामी चुनौती पेश करनेवाले हैं । ऐसे भी, हम कब तक सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी), शाइनिंग इंडिया, अच्छे दिन आने वाले हैं जैसे लुभावने जुमलों से देश की करोड़ों विपन्न लोगों और उनके नौनिहालों को छलते रहेंगे ।

 

1 COMMENT

  1. बाल दिवस हो महिला दिवस वे सब रस्म अदायगी बन कर रह गए हैं।
    बच्चों की हालत में सुधार के लिए न केवल सरकार और अफसरों का ईमानदार होना ज़रूरी है बल्कि जनता भी जब तक परिवार नियोजन और अशिक्षा से लड़ने का फैसला नहीं लेगी तब तक बड़ा बदलाव आने वाला नहीं है।

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