सबका साथ सबका विकास के मायने

-कुलदीप घोड़ावत-
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लोकसभा चुनावों में भाजपा की अभूतपूर्व जीत के पश्चात भावी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सशक्त, सक्षम भारत के नवनिर्माण के लिए देश के अन्य दलो से भी सहयोग का पुरजोर आह्वान किया है, ठीक ऐसे ही बयान भाजपा के अन्य शीर्षस्थ नेताओ ने भी दिए। राष्ट्रहित में यह उदार पहल उस प्रमुख राजनैतिक पार्टी से हो रही है जो सहयोगी दलों की प्रभावी संख्या के अलावा भी पूर्ण बहुमत में है। विगत चुनावो के दौरान हुई अप्रिय बदजुबानी, कटाक्ष, आरोपों की मनोमलिनता को भूलकर नरेंद्र मोदी ने राजनैतिक शुचिता की यह उत्कृष्ट मिसाल दी है, वे पहले ही स्पष्ट कर चुके हैं की किसी के भी साथ पक्षपात की नहीं बल्कि देशहित में जोड़ने की राजनीती करेंगे। निश्चित ही भविष्य में भारत के चहुमुखी विकास में यह सदभावना उत्प्रेरक का काम करेगी। इस सकारात्मक पहल के बाद मोदी सरकार के लिए जयललिता व नवीन पटनायक के समर्थन की सतही संभावनाएं बढ़ गयी है, हालांकि यदि इसमें भाजपा का कूटनीतिक फायदा निहित है तो दोनों राज्यों के विकास की प्राथमिकता भी समाहित है। वहीं, देर सवेर तेलंगाना के सुदूर भविष्य के लिए चंद्रशेखर राव भी चलती गाड़ी में सवार हो सकते हैं, किन्तु मुस्लिमों के लिए आरक्षण का वादा और चंद्राबाबू नायडू की संभावित आपत्ति इस सफर की राह में रोड़े हो सकते हैं तो सीमांध्र से जगन रेड्डी का एकतरफा समर्थन तेदेपा पर परोक्ष नियंत्रण भी कसेगा। यह भी कयास लगाये जा रहे हैं क कई दलों की सीमित सांसद संख्या का फायदा भविष्य में भाजपा को मिल सकता है, क्योंकि असंतुष्ट, अवसरवादियों के कारण दलों में टूटने से इन्कार नहीं किया जा सकता है। ज्ञातव्य है कि विगत वर्षों में नरेंद्र मोदी के ‘कांग्रेस मुक्त गुजरात’ की तर्ज पर कांग्रेस के कई नेताओं ने भाजपा की सदस्य्ता ली थी। इस तरह मोदी सरकार के समर्थन का भावी अंकगणित बढ़ना ज्यादा मुमकिन है। भविष्य के गर्त में छिपे ये समीकरण जब भी यथार्थ के धरातल पर होंगे मोदी का मंत्र सबका साथ, सबका विकास ज्यादा प्रामाणिक और व्यापक होगा।

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