जम्मू-कश्मीर में भाजपा समर्थि‍त सरकार होने का अर्थ

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 डॉ. मयंक चतुर्वेदी

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनावों में किसी को बहुमत नहीं मिला है, यह हम सभी को विदित है। प्रदेश की प्रमुख चार राजनीतिक पार्टियों के अपने अपने अजण्डे हैं, स्वाभाविक है कि यहां अलग-अलग क्षेत्रों के मतदाताओं को जिस पार्टी की रीति-नीति ने ज्यादा आकर्षि‍त किया, वहां से जनता ने उसी पार्टी के प्रत्याशी को बहुतायत में वोट देकर उसे अपना जन प्रतिनिधि‍ चुना। किंतु सच यही है कि राज्य में पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के रूप में भले ही उभरी हो , पर 25 सीटें जीतने वाली भाजपा को उससे 14 हजार 991 वोट अधिक मिले हैं। कहने का आशय यह है कि जम्मू-कश्मीर की जनता ने अपने लिए सरकार बनाने और राज्य से जुड़े सभी हितों की चिंता करने के लिए पीडीपी और भाजपा परस्पर दोनों धुर विरोधी पार्टियों पर समान विश्वास जताया है। यहां की जनता चाहती है कि यह दोनों प्रमुख पार्टियां ही राज्य की सत्ता पर काबिज हों।

जम्मू-कश्मीर में पिछली बार जब-जब चुनाव हुए हैं, तब हर बार यह देखने में आया है कि अलगाववादी चुनावों के वहिष्कार को हवा देते थे और पूरे राज्य में घाटी से मतदान प्रतिशत कम रहता था लेकिन इस बार ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ। जिस घाटी क्षेत्र में लोग मतदान के लिए तमाम जन जागरण के कार्यक्रम चलाने के बाद भी वोट डालने वाले दिन अपने घरों से नहीं निकलते थे अथवा मतदान को महत्व ही नहीं देते थे। वे इस बार के विधानसभा चुनावों के दौरान थोक में वोट डालने निकले। किसी के विचारों में यह बात सहज आ सकती है कि आखि‍र इस बार ऐसा क्या हो गया कि कल तक जिन्हें वोट डालने की फुरसत नहीं थी, वे एकाएक कैसे एकजुट हो गए और बड़ी संख्या में मतदान के लिए जा पहुंचे । वस्तुत: यह जो वोट प्रतिशत का अचानक कश्मीर घाटी में बढ़ना बताता है कि यहां भारतीय जनता पार्टी को लेकर अलगाववादियों और अन्य राजनैतिक पार्टियों ने आम जनता में संभवत: इतना भय पैदा कर दिया होगा कि घाटी के लोगों को लगने लगा था कि किसी भी तरह भाजपा को सत्ता से दूर रखा जाना चाहिए। पाकिस्तान भी भयभीत था कि कहीं भाजपा कश्मीर घाटी में सेंध लगाने में कामयाब न हो जाए। उसकी भी कोशि‍श रही कि ज्यादा से ज्यादा घाटी के बाशिंदे बड़ी तादाद में उमड़कर मतदान करने पहुंचे और भाजपा को सत्ता से दूर रखें और कुछ हद तक हुआ भी ऐसा ही। अलगाववादियों के प्रति झुकाव रखने वाली पीडीपी हो या नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस जैसी भाजपा विरोधी राजनैतिक पार्टियां जिनसे चुनावों से पहले कोई उम्मीद नहीं की जा रही थी, वे भी घाटी में अपनी सीटें लाने में कामयाब हो गईं और भाजपा हासिए पर चली गई।

भारतीय जनता पार्टी ने कश्मीर घाटी की 46 सीटों में से सिर्फ 33 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, पर वादी में एक भी कमल नहीं खिला। सभी सीटों पर उसे कश्मीर के लोगों ने नकार दिया। उसकी स्टार प्रत्याशी डॉ. हिना बट, नीलम गाश और द्रक्षां अंद्राबी भी हार गईं। यहां तक कि भाजपा विस्थापित कश्मीरी पंडितों के प्रभाव वाले क्षेत्रों में भी नहीं जीत सकी। जबक‌ि दूसरी और जम्मू क्षेत्र है जहां के आम जन को लगता था कि राज्य के संपूर्ण विकास के लिए अधि‍क से अधि‍क सीटें भाजपा ही जीते ताकि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी की सरकार होने का लाभ जम्मू-कश्मीर राज्य को अधि‍का‍धि‍क मिल सके। भाजपा ने जम्मू संभाग की 37 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे और 25 पर कमल खिल गया। 28 सीटें जीतने वाली पीडीपी को मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में जीत मिली है और पीडीपी से महज तीन सीटें कम पाने वाली भाजपा को सभी सीटें हिन्दू बहुलता वाले क्षेत्रों से प्राप्त हुईं हैं। वस्तुत: राज्य में इन दोनों पार्टियों के बीच जीत का यह परस्पर अंतर्विरोध विद्यमान है। वहीं अपनी आलोचना के चरम पर पहुंचने के बाद भी नेशनल कांफ्रेंस ने यहां 15 सीटें जीत कर सभी को आश्चर्य में डाल दिया तथा जम्मू में हारते हुए कांग्रेस का घाटी और लद्दाख में अपनी सीटों की संख्या 12 तक पहुंचाने में सफल हो जाना बताता है कि इस प्रदेश में पूरी तरह जनमत किसी भी राजनैतिक पार्टी के साथ नहीं गया है।

मोटे तौर पर देखने पर इतना दिखाई देता है कि यहां ध्रुवीकरण का चित्र उभरा है, किंतु विस्तृत अध्ययन बताता है कि राज्य की जनता ने पीडीपी और भाजपा को परस्पर अपनी पहली पसंद के रूप में चुना है। फिर भले ही भाजपा सूबे में दूसरे नंबर पर हो किंतु हमें यह ध्यान रखना होगा कि समग्रता में उसका वोट प्रतिशत राज्य में पीडीपी से भी ज्यादा रहा है। इसका मतलब यह भी निकाला जा सकता है कि भाजपा इस बार के चुनावों में संख्यात्मक दृष्टि से जम्मू-कश्मीर की जनता के बीच पहली स्वीकार्यता रखने वाली पार्टी बन कर उभरी है। भले ही लोकतंत्र में बहुमत के लिए संख्या का अपना गणि‍त क्यों ना हो। बहरहाल, इस आधार पर कहा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर की सत्ता संभालने के लिए आपसी गठबंधन का जो राजनैतिक पार्टियों के बीच दौर चल रहा है, उसमें भारतीय जनता पार्टी की अंतत: महत्वपूर्ण भूमिका होनी ही चाहिए।

यह सर्वविदित है कि जम्मू-कश्मीर के प्रति भाजपा का अपना प्रारंभ से एक अलग ऐतिहासिक दृष्टिकोण रहा है। जिसे लेकर संसद से सड़क पर अनेक अवसरों पर वह देश की आवाम को अवगत कराती रही है। देश में समान नागरिक संहिता, जम्मू-कश्मीर में धारा 370 का उन्मूलन, पाक अधि‍कृत कश्मीर का भारत में बिना शर्त, किसी अन्य देश के हस्तक्षेप किए वगैर उसकी स्वीकार्यता का होना, विस्थापन का दंश झेल रहे कश्मीरी पंडितों की घाटी में खुशहाल वापिसी, भारत के किसी भी राज्य में रहनेवाले नागरिक को जम्मू-कश्मीर में रहने और वहां विवाह संबंध स्थापित करने की स्वतंत्रता देश के अन्य आम नागरिकों की तरह प्रदाय होने जैसे तमाम ऐसे मुद्दे हैं जिन पर भारतीय जनता पार्टी की अपनी एक विशेष सोच है। फिर भी हाल में संपन्न् हुए चुनावों में भाजपा ने इनमें से किसी भी मुद्दे को यहां नहीं छेड़ा था। उसने तो यहां इस बार लोकसभा चुनावों की तर्ज पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का विकासवादी चेहरा सभी के सामने रखा था, उसकी कोशि‍श यही रही होगी कि जम्मू-कश्मीर को देश के अन्य राज्यों की तरह मुख्य धारा में सिर्फ विकास के माध्यम से ही लाया जा सकता है। विकास के इस भाजपायी अजण्डे को राज्य की आधी आवादी ने प्रमुखता से लिया और उसे प्रदेश की दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनने का अवसर भी दे दिया। वस्तुत: समस्या अब यह पैदा हो गई है कि राज्य में सरकार बने तो बने कैसे ? अलगाववादियों के प्रति झुकाव रखने वाली पीडीपी और धुर राष्ट्रवादी भाजपा एक-दूसरे के साथ कैसे आ सकते हैं। दोनों की सोच एक-दूसरे के विपरीत है। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस दोनों पहले से ही भाजपा को इस राज्य में दोयम दर्जे का मानती आई हैं और विचारधारा व कार्य प्रणाली के स्तर पर सदैव आलोचना करती रही हैं। इन हालातों में यहां कौन से विकल्पों की तलाश की जाए जिससे यहां एक स्थायी सरकार का गठन हो सके। जबकि सरकार बनाने का आंकड़ा यह बताता है कि राज्य की कुल सीटें 87 में सरकार बनाने के लिए 44 विधायकों का एक साथ होना जरूरी है। यदि पीडीपी अपनी प्राप्त 28 सीटों के साथ क्रमश: 15 और 12 सीटें जीतने वाली नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस दोनों के साथ हाथ मिला लें तो यहां आसानी से सरकार बनाई जा सकती है। लेकिन तब घोषि‍त सरकार क्या पूरे राज्य का प्रतिनिधि‍त्व करेगी ? उत्तर होगा बिल्कुल नहीं ! क्योंकि जम्मू के मतदाताओं ने तो राज्य में अपनी सरकार बनाने के लिए भाजपा को अपनी पहली पसंद के रूप में चुना है।

ऐसे में यहां की राजनीतिक पार्टियों पीडीपी और भाजपा के पास एक ही विकल्प बचता है कि एक-दूसरे की धुर विरोधी होने के बाद भी ये दोनों प्रदेश की जनता की इच्छा को स्वीकार्य करते हुए गठबंधन करें। यह दोनों ऐसा इसीलिए भी करें क्यों कि उन्हें यहां की जनता ने पहले और दूसरे नंबर पर चुनकर यह बताने का प्रयास किया है कि राजनीति में विचारधारा अपनी जगह है लेकिन जनता जनार्दन के बीच स्थायी और स्वीकार्य विकास अपनी जगह। भले ही फिर विचारधारा के लिए यह दोनों दल एक साथ कभी न आएं पर विकास के लिए इन्हें मिलजुल कर सरकार बनानी चाहिए। वैसे भी जम्मू-कश्मीर देश के अन्य राज्यों की तुलना में बहुत पीछे हो गया है और यहां की परिस्थि‍तियों की तुलना अन्य राज्यों से नहीं की जा सकती है। अत: आज यहां ऐसी सरकार की जरूरत है जो हिन्दू बहुल्य क्षेत्र जम्मू और मुस्लिम जनसंख्या वाले घाटी क्षेत्र के साथ बौद्ध बहुलतावादी लद्दाख क्षेत्र का एक साथ परस्पर समानता के साथ ध्यान रख सके। फिर प्रयोग करने में कोई हर्ज नहीं है। क्योंकि स्वतंत्र भारत की राजनीति में प्रयोग करना कोई नई बात भी नहीं है जो पीडीपी और भाजपा एक-दूसरे के साथ आकर गठजोड़ कर लेंगी तो कोई आश्चर्य होगा।

वास्तव में इस राज्य के समग्र विकास के लिए जरूरी है कि यह दोनों पार्टियां अपने बुनियादी आग्रहों से पीछे हटें जिससे कि यहां के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में रहने वाली जनता का समान फायदा हो। जम्मू-कश्मीर में भाजपा समर्थि‍त सरकार होने का अर्थ होगा प्रत्येक वर्ष बाबा अमरनाथ की यात्रा होने पर जो अलगाववादियों द्वारा उत्पात मचाने के प्रयास किए जाते हैं, वह समाप्त हो जाएं या ना के बराबर हों। भाजपा के सरकार में होने से हिंदू-बहुल जम्मू के हितों की रक्षा होगी ऐसा भी माना जा सकता है। वहीं जम्मू की जो शि‍कायते हैं कि वहां के लोगों को सरकारी नौकरियों से लेकर राज्य में लाभ के पदों से बहुतायत में दूर रखा जाता है, फिर ऐसा कहने के पीछे कोई कारण नहीं होगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के वि‍कास के दृष्टिकोण से घाटी के लोग सीधे रूबरू हो पायेंगे। घाटी के मतदाताओं को भाजपा को नजदीक से जानने का मौका मिलेगा और उस पर जो साम्प्रदायिक पार्टी होने का तमगा तमाम राजनैतिक पार्टियां लगाती आ रही हैं, घाटी की आवाम सीधे देख सकेगी कि भाजपा कैसी पार्टी है वि‍कास की पक्षधर या अन्य प्रकार की। जिससे की भविष्य में आशा की जा सकती है कि जिस तरह घाटी में इस बार भाजपा को एक भी सीट नहीं मिल सकी, हो सकता है यह इतिहास आगे ना दोहराया जाए और भाजपा की विकास संबंधी कार्यप्रणाली को देखकर कश्मीरी जनता स्वत: कमल को अपने हाथों में थाम ले।

भाजपा को सत्ता में इसीलिए भी रहना चाहिए जिससे कि उसके सत्ता में होने से क्षेत्रीय स्वायत्तता के विचार को दूसरे दल भी समान रूप से अपना सके, जिसके तहत जम्मू, कश्मीर और लद्दाख में स्वशासी परिषदों की स्थापना किए जाने का रास्ता खुलेगा। इस गठबंधन से एक संभावना यह भी है कि पीडीपी की जो अलगाववादियों के समर्थ‍ित होने की छवि है उसमें बदलाव आ जाए, वह भी भाजपा के साथ विकास की मुख्यधारा में शामिल हो जाए और सिर्फ घाटी का विकास नहीं संपूर्ण राज्य के विकास को अपने कार्य का आधार बनाकर भविष्य में सशक्त जम्मू-कश्मीर राज्य बनाने की दिशा में कार्य करने में लगी हुई दिखाई देने लगे। अंतत: भाजपा-पीडीपी गठबंधन से पूरे राज्य को लाभ होने वाला है, वर्तमान परिस्थि‍तियों को देखते हुए ऐसा कहा जाए तो कोई हर्ज नहीं है।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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  1. kisi bhi dal ko bahumat na milna is bat ka sanket hai ki sabhi rajnaitik dal deshdrohiyo-bhrastachariyo, go hatyare, rakshaso-papiyo, asuro-avidwano ka sangthan hai. jab tak chunav prakriya se namankan, jamanat rashi, chunav chinh tatha e.v.m. nahi hataya jayega. tab tak desh me sukh, shanti, samriddhi sambhav nahi hai. vartman samay me chunav ki galat prakriya ke karan ‘bharat nirvachan ayog ko ”Bharat Vinashak Ayog” kahna hi sarvadhik uchit hai. jab chunav pranali thik ho jayega tab yahi ‘bharat nirvachan ayog’, ”Bharan Nirman Ayog” kahlayega.

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