किम की चीन-यात्रा के अर्थ

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

उत्तर कोरिया के राष्ट्रपति किम जोंग उन ने चीन-यात्रा करके सारी दुनिया को चौंका दिया है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और उनके बीच पिछले दिनों जो नोक-झोंक चली थी, उसने सारी दुनिया में सनसनी फैला दी थी। डर यह था कि ट्रंप और किम दोनों ही बड़बोले हैं और दोनों का ही कोई भरोसा नहीं कि वे कब क्या कर बैठें ? वे दोनों सारी दुनिया को परमाणु-युद्ध में झोंक सकते थे लेकिन पिछले दो-तीन हफ्तों में पता नहीं क्या हुआ है कि ये दोनों मनचले नेता आजकल कायदे की बातें करने लगे हैं। सबसे पहले तो यह खबर फूटी कि किम ने दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति से मिलने की पहल की है और फिर अब खबर यह है कि उसके बाद ट्रंप और किम की भेंट होगी। अप्रैल और मई में होनेवाली इन दो भेंटों के पहले इस हफ्ते किम चीन के राष्ट्रपति शी चिन फिंग के मेहमान बनकर पेइचिंग की यात्रा कर आए। किम 2011 में राष्ट्रपति बने थे। सात वर्षों में यह उनकी पहली विदेश यात्रा है। चीन जाकर उन्होंने कहा कि वे कोरियाई प्रायःद्वीप का अपरमाणुकरण करना चाहते हैं याने दक्षिण कोरिया से यदि अमेरिका अपने परमाणु शस्त्रास्त्र हटा ले तो वे भी परमाणु शस्त्रास्त्र बनाना बंद कर देंगे। यह बहुत बड़ा फैसला होगा। जाहिर है कि अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण ईरान की तरह उ. कोरिया का दम घुटने लगा था। चीन ने किम को अपने यहां बुलाकर अमेरिका को यह बता दिया है कि चीन उ.कोरिया के साथ है और उसके बिना इस क्षेत्र में उसे आगे रखे बिना किसी समस्या को सुलझाया नहीं जा सकता। इस पहल का फायदा उठाते हुए चीन अब अमेरिका पर कुछ न कुछ व्यापारिक दबाव भी डाल सकेगा। यदि चीन ने उ. कोरिया पर प्रतिबंध लगाने में संयुक्तराष्ट्र का साथ नहीं दिया होता तो किम की उद्दंडता में कोई कमी शायद ही आती। उ. कोरिया की 90 प्रतिशत दैनंदिन जरुरतों को चीन ही पूरा करता है। यदि चीन का दबाव बराबर बना रहा तो कोई आश्चर्य नहीं कि 68 साल पहले चले कोरियाई युद्ध और बंटवारे की समाप्ति हो सकती है। यदि दो जर्मनी और दो वियतनामों का विलय हो सकता है तो दोनों कोरिया क्यों नहीं मिल सकते ? इस मिलन से परमाणु खतरा तो घटेगा ही, उत्तरी कोरिया के आम आदमी की जिंदगी में भी नई उमंग पैदा होगी। यह मामला चीन और अमेरिका में सद्भाव भी बढ़ाएगा।

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