भारत में बढ़ती बाघ आबादी के मायने

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

दुनिया में विलुप्त प्राय: स्थिति में पहुंचने के बाद पुन: अपने अस्तित्व को बनाने की दिशा में आगे आए बाघों ने जिस प्रकार प्रकृति के साथ तालमेल बनाते हुए अपनी जीवसंरचना के विकास में प्रगति की है, खासकर यह भारत के लिए आज खुशी की बात अवश्य है, क्योंकि पिछले कुछ सालों में दुनिया में बाघों की आबादी जिस तरह से घट रही है, उससे नाउम्मीदी पैदा होने के साथ संशय की स्थिति निर्मित होने लगी थी कि आने वाले समय में यह दोबारा अपने अस्तित्व को बचा भी पायेंगे अथवा नहीं। दुनिया के अन्य देशों से उलट भारत की बाघों को लेकर स्थिति कुछ और ही बात कह रही है। भारत में इनकी बढ़ती आबादी ने उन सभी संशयों को पूर्णविराम लगा दिया है, जिसमें कहा जा रहा था कि इस सदी के अंत तक बाघ भी विलुप्त हो जायेंगे।

 

निश्चित ही यह हमारे देश के लिए गर्व की बात है कि पिछले 4 साल में बाघों की संख्या को हम 30 फीसद बढ़ाने में कामयाब हुए हैं। देशभर में अब इनकी आबादी 2 हजार 226 तक पहुंच गई है।आज बाघों की जनसंख्या को लेकर चिंता इसीलिए भी की जा रही है, क्योंकि अभी पूर्ण विश्व में हर सप्ताह औसतन दो बाघों का शिकार किया जा रहा है। पिछले “विश्व बाघ दिवस” पर पर्यावरण संरक्षण संगठन डब्ल्यूडब्ल्यूएफ (वर्ल्ड वाइल्ड फंड) ने जो जानकारी दी, उससे पता चलता है कि दुनियाभर में बाघों का अवैध शिकार कितनी तेजी के साथ किया जा रहा है। डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के आंकड़े बताते हैं कि पिछले सौ वर्षों में बाघों की संख्या में तकरीबन 97 फीसद की कमी आई है। जनवरी, 2000 से अप्रैल, 2014 के बीच कम से कम 1590 बाघों का शिकार किया गया।

वस्तुत: बाघों के शिकार का एक महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पूरे एशिया में हाथी दांत और गैंडे के सींग के बाद बाघ के अंगों की भारी मांग है। एशिया क्षेत्र में चीन ऐसा देश है, जहां बाघ अंगों के प्रयोग को मानव पौरूष से जोड़ दिया गया है। यही कारण है कि निरंतर इस देश के लोग बाघ के अंगों की मुंहमांगी कीमत देने को तैयार रहते हैं। चीन के बाद म्यांमार और थाइलैंड वह देश हैं, जहां बाघ के अंगों को लेकर एक प्रकार की दीवानगी तक लोगों में जुनून है। बाघ के पंजों, खोपड़ी व नुकीले दांतों और खाल की मांग इन देशों के लोगों को सबसे ज्यादा रहती है। विश्वभर में अभी तीन देश भारत, नेपाल और रूस ही ऐसे हैं, जहां पर बाघों का नियमित सर्वेक्षण किया जाता है। भारत सहित पूरे विश्व में इसकी संख्या 32 सौ होने का अनुमान लगाया गया है।

 

वर्ल्ड वाइल्ड फंड की साफ शब्दों में चेतावनी है कि जिन देशों में बाघों का राष्ट्रीय स्तर पर सर्वेक्षण नहीं कराया जाता, वहां बाघ विलुप्त हो सकते हैं। मलेशिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड, म्यांमार, लाओस, कंबोडिया और वियतनाम में बाघों का सर्वेक्षण नहीं किया जा रहा है।मगर, इसे हम केंद्र और राज्य सरकारों की बाघ संरक्षण दिशा में पिछले कुछ सालों में की गई मेहनत और सकारात्मक प्रयासों का परिणाम मान सकते हैं, जो बाघों की संख्या भारत में बीते चार सालों के दौरान 520 की बढ़ोतरी के साथ दर्ज की जा सकी है।

 

देश में एक समय ऐसा भी आया था कि यही बाघ कुछ सौ की संख्या में सिमट के रह गए थे। वह तो अच्छा हुआ कि बाघों की घटती जनसंख्या को लेकर भारत सरकार जाग उठी और उसने राज्यों और एनजीओ के साथ मिलकर इनके संरक्षण को अपनी प्राथमिकता में शामिल कर लिया तथा उसके बाद से लगातार इस दिशा में प्रयास किए। 2006 में इन्हीं बाघों की संख्या घटकर महज एक हजार 411 बची थी। फिर जो इन्हें बचाने और संरक्षण के लिए विश्व स्तर पर काम हुआ, उसके बाद 2010 में इनकी संख्या में सुधार होना आरंभ हो गया था। चार साल बीतने के बाद अच्छा यह हुआ है कि दोबारा इनकी संख्या में कमी नहीं आई और बाघों की आबादी निरंतर प्रगति की ओर अग्रसर है। भले ही फिर वह 2010 में बढ़कर 295 के आंकड़े पर पहुंचकर एक हजार 706 हो गई हो। अब जो ताजा जनगणना रिपोर्ट बाघों की आई है, वह हमें और इस दिशा में उत्साहित करती है। देश में आज इनकी संख्या 2 हजार 226 पर पहुंच गई है। 2010 से अब तक बाघों की आबादी में तेजी से 30 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है।

पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर यह सही कह रहे हैं कि प्रभावी वन प्रबंधन और सामुदायिक भागीदारी के साथ बाघ संरक्षण के लिए सरकार द्वारा किये गये उपायों से देश में बाघों की संख्या बढ़ी है। श्री जावड़ेकर यदि इसे “सफलतम कहानी” करार दे रहे हैं तो यह वाकई सही है। बाघों की संख्या में बढ़ोत्तरी सरकार द्वारा उठाए गए विभिन्न उपायों की सफलता का परिचायक है। ये उपाय विशेष बाघ बचाव बल, अनाथ बाघ शावक कार्यक्रम, अवैध शिकार पर नियंत्रण के प्रयास, मानव-पशु संघर्ष और अतिक्रमण को कम करने से संबंधित हैं। बाघ रिजर्वों के तीसरे दौर की स्वतंत्र प्रबंधन प्रभावशीलता मूल्यांकन ने सुधार दर्शाया है। यह सुधार 43 बाघ रिजर्वों में 2010-11 के 65 प्रतिशत के स्तर से बढ़कर 2014 में 69 प्रतिशत हो गया है। छह बाघ रिजर्वों में पहली बार किये गये आर्थिक मूल्यांकन ने इन रिजर्वों से होने वाले गुणात्मक और संख्यात्मक लाभों का आंकलन किया गया है। इनमें पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक सेवाएं शामिल हैं।

वस्तुत: भारत अब इस स्थिति में पहुंच गया है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी शावक मुहैया करा कर वैश्विक बाघ संरक्षण के प्रयासों में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाए। वास्तव में इस उपलब्धि के लिए बाघ रिजर्व प्रबंधन और बाघ परियोजना टीम के प्रयासों को आज जितना भी सराहा जाए वह कम ही होगा। सही मायनों में यह इन्हीं के प्रयास हैं जो दुनिया के 70 फीसदी बाघ जनसंख्यात्मक दृष्टि से भारत में हो गए हैं।

बाघ की आबादी वाले 18 राज्यों में 3 लाख 78 हजार 118 वर्ग किमी इलाके में जो सरकार ने अपना सर्वे कराया और बाघों की 1 हजार 540 तस्वीरें ली गईं हैं। उनमें से देश के जिन राज्यों में बाघों की संख्या बढ़ी है वह मध्यप्रदेश, कर्नाटक, उत्तराखंड, तमिलनाडु और केरल मिलाकर कुल पांच राज्य ही हैं। यहां इससे यह भी पता चलता है कि इन राज्यों में वन और पर्यावरण प्रबंधन श्रेष्ठ स्थिति में है, इसके लिए हम आज यहां के शीर्ष राजनैतिक नैतृत्व और प्रशासनिक मशीनरी को उसके किए जा रहे प्रयासों के लिए शुभकामनाएं दे सकते हैं। निश्चित ही बाघ प्रकृति की अन्य कृतियों की तरह एक अनुपम रचना है, इसका संरक्षण पर्यावरण की स्वस्थता के लिए तो जरूरी है ही, हम सभी के लिए भी महत्वपूर्ण है, जिसे किसी भी कीमत पर नजरअंदाज नहीं जा सकता।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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