प्रभुदयाल श्रीवास्तव
कांग्रेसनीत मनमोहन सरकार स्वतंत्र भारत की सबसे निकृष्ट और निकम्मी सरकार साबित हो रही है|आठ से ऊपर विकास दर का ढिढोरा और आर्थिक रूप से दुनियाँ के दूसरे बड़े देशों से बराबरी का दावा करने वाली यह सरकार भीतर से कितनी खोखली और नकारा है यह तथ्य अन्ना को मिले अपार जन समर्थन ने सिद्ध कर दिया है|ऐसा लगता है कि देश की सारी जनता एक तरफ है और सरकार के भ्रष्ट मंत्री और सांसद एक तरफ हैं| देश के कोने कोने से उठे विरोध के स्वर क्या यह बताने के लिये काफी नहीं है कि देह्स का बच्चा बच्चा युवा वर्ग और वृद्ध सभी सरकार के गैर जुम्मेवाराना व्यवहार से कितने नाखुश हैं|पूरा का पूरा देश भ्रष्टाचार और मंहगाई से त्रस्त है|बिना रिश्वत दिये कहीं काम नहीं होता,अधिकारी कर्मचारी वर्ग निष्ठुर और् स्वच्छंद हो चुके है,नेता मंत्री सांसद और विधायक करोड़ों अरबों पर हाथ साफ कर रहे हैं,कोई दर नहीं कोई रोक टोक नहीं और यदि कोई इसके विरुद्ध आवाज़ उठाता है तो ये सत्ता के भूखे उस आवाज़ को कठोरता से कुचल देते हैं|आज़ादी के बाद कांग्रेस लगभग पचास साल तक सत्ता में रही|प्रारंभ के दो दशकों तक जिसमें स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाली पीढ़ी के नेता सत्ता में शामिल थे सरकार में नैतिकता ईमानदारी एवं मानवीयता बाकी थी किंतु उसके बाद की सरकारों में राजनीति का अपराधीकरण आरंभ हो गया और संसद चोरों और डाकुओं से भरने लगी|राजनीति का व्यवसाईकरण हो गया|बीस पच्चीस करोड़ रुपये खर्च कर चुनाव जीतना और संसद अथवा विधान सभा में बैठकर अरबों रुपये कमा डालने की ख्वाहिश ने देश का बेड़ा गर्क कर दिया| इसी अनीति के चलते आज मन मोहन सरकार में डेढ़ सौ से ज्यादा सांसद भ्रष्ट और अपराधी प्रवृत्त्ति के हैं|संसद में गुंडों का राज हैं प्राय: प्राय: सभी मंत्री भ्रष्ट हो चुके हैं|ऊपर से तुर्रा ये है कि भ्रष्टाचार की पोल खुलने पर सरकार ऐसे मंत्रियों का बचाव करती नज़र आती है|आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? कहा जा रहा है की प्रधान मंत्री भ्रष्ट नहीं हैं किंतु जब वह अपने अधीनस्थ भ्रष्ट मंत्रियों का खुलकर बचाव करते हैं तो यह मानने के पर्याप्त कारण समझ में आते हैं कि कहीं कुछ गड़बड़ तो है|उन्होंने ए राजा और कलमाड़ी का जब तक बचाव किया जबतक उच्चतम न्यायालय ने उन्हें लताड़ नहीं पिलाई|विगत दो वर्षों से ज्यादा समय से विपक्ष और मीडिया राजा और कलमाड़ी पर हमला बोल रहे थे किंतु मनमोहन उन्हें निर्दोष बताते रहे|आखिर क्यों? जहाँ कलमाड़ी और राजा जैसे भ्रष्टों को जैल भेजने में सरकार को दो साल से ज्यादा का समय लग गया वहीं भ्रष्टाचार के विरोध मे स्वर मुखरित करने वाले अन्ना हज़ारे को अरेस्ट करने में सरकार को पांच मिनिट भी नहीं लगे|यह कैसी सरकार है भ्रष्टाचारियों का तो खुलकर बचाव करती है जो भ्रष्टाचार के विरॊध करे उसे कुचल देती है|अन्ना हज़ारे का क्या दोष था यही न की वह भ्रष्टाचार के विरोध मे एक मज़बूत लॊकपाल बिल पास कराना चाहते हैं जो भ्रष्टाचार समाप्त करने के लिये आज की अति आवश्यक आवश्यक्ता है|इसके लिये अन्ना पहले ही एक बार अनशन कर चुके थेऔर्र केंद्रीय मंत्रीमंडल के चार चार मंत्री अन्ना की टीम से मिलकर सिविल सोसाइटी के सदस्यों के साथ एक कामन मसौदा तैयार कर चुके थे तो फिर अन्ना के अनशन से उठते ही सरकार ने जन लोकपाल के बदले में अपनी मर्जी से अपनी सुविधानुसार ऐसा बिल संसद में पेश क्यों कर दिया जो भ्रष्टाचारियों को पूरा पूरा संरक्षण देता है|यह लोकतंत्र की पीठ पर छुरा भोंकने जैसा है|जब अन्ना ने इस विश्वासघात का विरोध किया और 16 अगस्त से पुन: अनशन की चेतावनी दी तो सरकारी पिट्ठू नुमांइदों और प्रवक्ताओं ने अन्ना के विरुद्ध अपशब्दों का प्रयॊग कर उन्हें भ्रष्टाचारी बताने का कुत्सित प्रयास किया|कांग्रेसी प्रवक्ता मनीष तिवारी ने जिस ओछी भाषा का प्रयोग किया उसे दुनियाँ ने देखा और कांग्रेस की इस हरकत ने देश की जनता में उबाल ला दिया|कपिल सिब्बल के ब्यानों नॆ तो जैसे आग में पेट्रोल डालने का काम कर दिया|जे पी मैदान में 144 धारा लगाकर पुलिस ने 16 अगस्त को अन्ना को अनशन करने की अनुमती नहीं दी और सुबह सुबह ही उनको उनके निवास से ग्रफ्तार कर लिया और तिहाड़ जेल का रस्ता दिखा दिया| दिल्ली पुलिस की आड़ लेकर मनमोहन सरकार के कुटिल धूर्त मंत्री लुका छिपी का खेल खेलते रहे| तानाशाही की सारी हदें सरकार ने पार कर दीं|अन्ना की इस घोषणा के बाद भी कि सारे आंदोलन अहिँसक और शाँति पूर्ण होंगे पुलिस की आड़ लेकर सरकार ने न केवल उन्हें अरेस्ट किया बल्कि उन्हें तिहाड़ जैसी कुख्यात जेल में भेजा|हालाकि सरकार को यह हिटलर शाही तुरंत ही मँहगी पड़ गई जब सारा देश अन्ना के पक्ष में उठकर खड़ा हो गया|हज़ारों की संख्या में लोग सड़कों पर आ गये |क्या शहर क्या कस्बे और क्या गांवं सभी अन्नामय हो गये| सरकार को जब अपनी भूल का अहसास हुआ जब तक बहुत देर हो चुकी थी|उन्हें आनन फानन जेल से रिहाई के आदेश देना पड़े|पहले थूका फिर चाटा सरकार की भारी किरकिरी हुई|अन्ना की सब शर्तें मानते हुए उन्हें अनशन करने की इजाजत देना पड़ी|उधर अन्ना ने जेल में अनशन प्रारंभ कर देश भर की जनता से सहानुभूति बटोर ली|सारा देश अन्ना के नारों से गूंज उठा|नेतृत्व विहीन और दिशाहीन यह सरकार कितनी निरीह और निकम्मी सिद्ध हुई जब अन्ना को उनके मन मफिक माहौल तैयार करके अनशन की इजाजत देना पड़ी|एक निरीह प्रधान मंत्री जिसका खुद का कोई विवेक न हो निर्णय लेने की क्षमता न हो जो अपने धूर्त एवं मक्कार सलाहकार वकीलों पर निर्भर हो और् कर भी क्या सकता है|जिसके कपिल सिब्बल और दिग्विजयसिंह जैसे गुमराह करने वाले सहयोगी हों उस प्रधान मंत्री का भगवान भी सहायक नहीं हो सकता| ताज्जुब इस बात का है की अनशन स्थगित करने का आदेश नहीं मानने जैसे छोटे से करण के लिये अन्ना को तिहाड़ जैसी कुख्यात जेल में रखा गया|यह बात क्या सरकार की नियत पर शक पैदा नहीं करती|क्या यह लोकतंत्र की हत्या का प्रयास नहीं है?हमारे गृह मंत्री कहते हैं कि यह सब दिल्ली पुलिस ने किया है उन्हें इस बावत कुछ नहीं मालूम|क्या गृह मंत्री महोदय सभी देशवासियों को मूर्ख समझते हैं? क्या इतना बड़ा फैसला दिल्ली पुलिस अकेले ले सकती है?क्या यह बताने का प्रयास नहीं है कि अन्ना जैसे आम आदमी को सरकार कोई तवज्जो नहीं देती| मुझे लगता है कि कपिल सिब्बल ,चिदंबरम और अंबिका सोनी जैसे नेता अन्ना को उसी तरह कुचल देने के प्रयास में थे जैसा की उन्होंने चार जून को बाबा रामदेव के साथ किया था|आजकल सरकार का एक ही नारा है कि जो सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ बोलेगा उसे कुचल दिया जायेगा|भ्रष्ट सांसदों और मंत्रियों वाली सरकार के विरुद्ध कौन बोल सकता है|निरीह जनता जिसे अपने पेट भरने से ही फुरसत नहीं है क्या बोलेगी| किंतु अन्ना नामक आँधी सत्य के तूफान लेकर चल पड़ी है जिसमे बड़े से बड़े भ्रष्टाचार के किलों को ढहाने की क्षमता है|जन समूह चेतन हो रहा है युवक जाग गये हैं,अन्ना को मिला जन समर्थन तो यही ब्यान कर रहा है|जनता के लिये जन लॊकपाल पास होकर रहेगा| यहां जनता द्वारा जनता के लिये जनता की सरकार है,सांसदों द्वारा सांसदों के लिये भ्रष्ट सांसदों की सरकार नहीं है|संसद की पवित्रता एवं सर्वोच्चता बनाये रखने के लिये वहां ईमानदार और देश भक्त सांसद ही भेजे जायें यह समय की मांग है|
ये सरकार निकाम्मी है|इसके विरुद्ध जितना लिखो थोड़ा है| लिखे जाओ मुन्ना भाई
गोवर्धन यादव