मीडिया का भविष्य मीडियाकर्मी के हाथ में रहे : बृजकिशोर कुठियाला

सुप्रसिद्ध मीडिया विशेषज्ञ एवं माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. बृजकिशोर कुठियाला ने मी‍डिया की वर्तमान दशा एवं दिशा पर विचार व्‍यक्‍त करते हुए एक महत्‍वपूर्ण सवाल उठाया कि जब मेडिकल काउंसिल का अध्यक्ष डॉक्टर होता है, बार काउंसिल का प्रमुख उसी प्रोफेशन से होता है तो फिर प्रेस काउंसिल का अध्यक्ष जस्टिस क्यों ? अपने प्रोफेशन का काम करते हुए प्रोफेशनल सैटिशफैक्शन मिले, इसके लिए यह आवश्यक है कि हम यह तय करें कि हमारा मीडिया कैसा हो और किस तरह का हो? एक आदर्श चैनल कैसा होना चाहिए? न्यूज रूम कैसा होना चाहिए? हम आप तय नहीं करेंगे तो यह काम कोई और करेगा। और जब कोई और तय करेगा तो वह निश्चित रूप से मीडियाकर्मी की चिंता करने के बजाय वह स्वयं का हित पहले देखेगा।

प्रो. कुठियाला गत 23 जुलाई को नई दिल्ली में पत्रकारों और पत्रकारिता के छात्रों के साथ बातचीत कर रहे थे। इस बैठक में प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के 40 पत्रकारों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।

उन्होंने मीडियाकर्मियों के भविष्य के बारे में विचार रखते हुए कहा कि आज मीडियाकर्मी दिन-रात काम करता है। चुनौतियों से जूझता है। मेहनत करता है। उसको अपनी बात सुनाने की आवश्यकता है। मीडियाकर्मियों का आपस में संवाद व सम्पर्क जरूरी है। मीडियाकर्मियों का अपने संस्थान से ऑरगेनाइजेशनल रिलेशनशिप नहीं है। जिनको यह काम करना चाहिए, वो नहीं कर पाए। कोई भी मीडिया संस्थान ऐसा नहीं कर पाया। लेकिन किसी से अपेक्षा की बजाय स्थापित व्यक्ति और नए लोग आपस में मिलकर अपना भविष्य स्वयं निर्माण कर सकते हैं। वह तय करें कि मीडिया में क्या करना है? क्योंकि उसका भविष्य मीडिया से जुड़ा है।

उन्होंने कहा कि गत दस वर्षों में मीडिया का चमत्कारिक रूप से विस्तार हुआ है। आईटी के ग्रोथ रेट से भी ज्यादा मीडिया अधिक तेजी से ग्रोथ कर रहा है। लेकिन मीडियाकर्मियों का उस गति से प्रशिक्षण नहीं हुआ। मीडिया में अच्छी संख्या में नए लोग आ रहे हैं। दस-पन्द्रह वर्षों से लोग काम कर रहे हैं। लेकिन इससे आगे क्या? हमें इस दिशा में सोचना प्रारंभ करना चाहिए।

उन्‍होंने चिंता प्रकट करते हुए कहा कि आज देश में मीडिया की जो स्थिति बनी है, उसे समाज अधिक दिनों तक सहन करनेवाला नहीं है। मीडिया के बारे में लोग चिंता करने लगे हैं। इसलिए यह जरूरी हो गया है कि मीडियाकर्मी अपने प्रोफेशन का मान-मर्यादा बढ़ाने, आचारसंहिता बनाने और एक आदर्श रूपरेखा बनाने की दिशा में पहल करें। इसके लिए एक मंच की आवश्यकता महसूस हो रही है, जिसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व हो।

5 COMMENTS

  1. आदरणीय
    ये बात तो तब लागू होती है जब मीडिया “नामक” हो चुके इस क्षेत्र को दोबारा पत्रकारिता की ओर लाया जा सके….यहां तो मालिक ही बिजनेसमैन है फिर संभावनाओं के द्वार कहां ढूंढे जाये……।कासे कहूं जा दुखड़ा

  2. प्रो. बृजकिशोर कुठियाला जी स्वयं एक आदर्श जीवन के विद्वान् हैं. मीडिया के बदनाम और विकृत होते स्वरूप और उसके सुधार व समाधान के प्रती उनके सन्देश पर व्यापक परिचर्चा के ज़रूरत है जिससे समाधान की दिशा में एक वातावरण बने.

  3. आदरणीय
    बृजकिशोर जी आपका प्रश्न गंभीर है .मीडिया से जुड़े अधिकांस लड़के लड़कियां ;पत्रकार .लेखक ;बुद्धिजीवी technician kemramen evm साहित्यकार
    सभी का बेहद शोषण हो रहा है .इन सबकी जिदगी उन मालिकों के रहमो करम पर है जो आवारा पूँजी के दम पर राजनीत की ताकत से पानी भरवाते हैं .
    कतिपय विदेशी पूँजी निवेशकों ने तो भारत के चेनल ऑपरेटरों को अपना अनुषंगी ही बना डाला है .नियामक आयोग तो देशी विदेशी सरमायेदारों के हितों का पक्षधर पहले से ही है .अब मीडिया के आदमी को प्रेस कोंसिल का महामहिम बनाओ या अद्ध्यक्ष कुछ खास उम्मीद नहीं करना चाहिए .
    मीडिया के लोग पहले तो अपना श्रम संगठन बनाये .अपने आपको मीडिया श्रमिक घोषित करें ;अपने चार्टर ऑफ़ डिमांड के अंतर्गत काम के घंटे कम करने ;पी ऍफ़ . सेवा निवृत्ति लाभों की सुनिश्चित कानूनी पात्रता ;तथा सेवाकाल इत्यादि महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार और संसद का ध्यानाकर्षण करें .
    वर्गीय राजनेतिक -सामाजिक व्यवस्था में मीडिया कर्मियों को तय करना होगा की वे अपनी संगठित शक्ति से ही संघर्ष के दम पर अपने हितों की रक्षा कर सकते हैं .यदि जल्दी नहीं चेते तो प्रतिस्पर्धी दौर में शोषण का शिकार होते रहेंगे .

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