श्री जे. पी. शर्मा जी सेवानिवृत्त आइपीएस अधिकारी हैं। आप ‘भारत स्पीक्स’ नामक विचारोत्तेजक पत्रिका का संपादन करते हैं, जिसमें अंग्रेजी और हिंदी, दोनों भाषाओं में लेख प्रकाशित होते हैं। आप प्रारंभ से ही ‘प्रवक्ता डॉट कॉम’ से जुड़े हुए हैं। एक सक्रिय टिप्पणीकार के रूप में। समय-समय पर आप हमें कॉल कर हमारा उत्साह बढ़ाते रहते हैं। (सं.)
जे. पी. शर्मा
प्रवक्ता डॉट कॉम से कब और कैसे संपर्क हुआ, कुछ ठीक से याद नहीं आ रहा है। लगता है कि जब प्रवक्ता ने इन्टरनेट के संसार में पदार्पण किया तभी किसी प्रकार प्रवक्ता का एक अंक मेरे कंप्यूटर पर आ गया।
सारी उम्र सरकारी नौकरी करते करते अंग्रेजी में ही पढ़ने-लिखने की ऐसी आदत पड़ी कि सेवानिवृत्ति के पश्चात् भी अधिकतर लिखना-पढ़ना अंग्रेजी में ही होता रहा। हिंदी में भी रूचि होने के बावजूद भी हिंदी साहित्य से लगभग अपरिचित ही रहा। बिलकुल अपरिचित कहना शायद ठीक नहीं होगा क्योंकि प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास कहीं न कहीं से प्राप्त कर पढ़ लेता था। सबसे अधिक कष्ट अच्छी हिंदी पत्रिकाओं के प्राप्त न होने के कारण होता था। प्रवक्ता के आने से वह कष्ट काफी कुछ दूर हो गया। आरम्भ में पत्रिका का स्तर साधारण सा लगा। कभी कभी डाक्टर पुरुषोत्तम मीणा ” निरंकुश” के लेख असंतुलित तथा द्वेषपूर्ण लगे। एक समय ऐसा लगा कि संपादक महोदय शायद पत्रिका को श्री जगदीश्वर चतुर्वेदी जी का भोंपू बना देना चाहते हैं। बाद में सब ठीक हो गया।
मेरे विचार से प्रवक्ता को इसके वर्तमान स्तर तक उठाने का श्रेय कुछ उच्चतम श्रेणी के लेखकों को जाता है, जो नियमित रूप से पत्रिका में अपने लेख भेजते रहते हैं। हो सकता है कि अन्य पाठक मुझ से सहमत न हों पर मेरे विचार से श्री शंकर शरण, श्री बिपिन किशोर सिन्हा, श्री राकेश कुमार आर्य तथा प्रोफेसर मधुसुदन झवेरी इस पंक्ति में अग्रगण्य हैं।
मैं विशेष रूप से प्रोफ मधुसुदन झवेरी की चर्चा करना चाहूँगा। मातृभाषा गुजराती तथा व्यवसाय से अमेरिका में इंजीनियर होते हुए भी वे जिस प्रकार भारतीय संस्कृति, संस्कृत तथा हिंदी की सेवा कर रहे हैं उसकी जितनी प्रशंसा की जाय कम है। उनका प्रत्येक लेख संग्रहणीय होता है और हम संस्कृति से अज्ञान अंग्रेजी पढों के ह्रदय को आत्म गौरव तथा स्वाभिमान से भर देता है।
“कहो कौन्तेय ” “शेष कथित राम कथा ” इत्यादि के रचयिता बिपिन किशोर सिन्हा जी के लेख विद्वत्तापूर्ण तथा सटीक होते हैं.
मैं हृदय से सम्पादकजी तथा उनके सहयोगियों के प्रति आभार प्रकट करता हूँ जिनकी कृपा से घर बैठे इतनी उत्तम पठनीय सामग्री प्राप्त हो जाती है।
भगवान से प्रार्थना है कि प्रवक्ता उत्तरोत्तर प्रगति करती रहे तथा देश और देशवासियों की सेवा करती रहे ।
आदरणीय लेखक जे. पी. शर्माजी,
आपके सराहना के शब्दों के अनुरूप अवश्य प्रयास करता रहूँगा।
परम सत्ता से यही मेरी प्रार्थना है, कि विनम्र बना रहूँ।
मैं मानव हूँ, गलतियाँ कर सकता हूँ, तो दर्शाते भी रहें।
वास्तव में, जो काम मैं करना चाहता था, जिन विचारोंको मैं सभी को बताना चाहता था; उसके लिए “प्रवक्ता” एक सर्वथा उचित माध्यम मुझे मिला, आप जैसे अनेकों, प्रबुद्ध पाठक मिले।
अनेकों नाम लिए जा सकते हैं, जिन्हों ने समय लेकर टिप्पणियाँ की, प्रोत्साहित भी किया।
विशेष मैं, नि. ह्वाइस एयर मार्शल विश्वमोहन तिवारी और डॉ. राजेश कपूर जी के प्रबल प्रोत्साहन का ऋण व्यक्त करता हूँ। टिप्पणीकारों का भी प्रोत्साहन रहा।उनके प्रश्नों के, विस्तृत उत्तर आपही नए आलेख बन गए।
विनय सहित –
मधुसूदन