तकनीकी दिक्कतों और संसाधनों के अभावों के बाद भी प्रवक्‍ता का परचम लहरता रहा

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मित्रवर नीरज दूबे राष्‍ट्रवादी पत्रकार हैं। अच्‍छे राजनीतिक विश्‍लेषक हैं। लेकिन आतंकवाद के विरोध में जितनी प्रहारक इनकी लेखनी चली है, मुझे ध्‍यान नहीं आता किसी और के बारे में। आप प्रवक्‍ता के प्रारंभ से ही हमसफर हैं। (सं.)

प्रिय श्री संजीव सिन्हा जी, 

pravaktaप्रवक्ता.कॉम के पांच वर्ष पूरे होने पर मेरी ओर से बहुत-बहुत बधाई। इस शुभ अवसर पर विचारों की गंगा को अविरल प्रवाहित करते इस ऑनलाइन मंच और इससे जुड़े सभी महानुभावों के उज्ज्वल भविष्य की कामना भी करता हूं।

मेरा सौभाग्य है कि मैं उन लोगों में शुमार हूं जिन्हें प्रवक्ता.कॉम नामक यूआरएल बुक कराए जाने का समाचार भाई संजीव कुमार सिन्हा जी ने सबसे पहले दिया।

प्रवक्ता की शुरुआत से इसके पांच वर्ष तक के अब तक का सफर कई प्रकार की सीख देता है। शुरुआत के समय सामने आई कुछ तकनीकी दिक्कतों और संसाधनों के अभाव में भी श्री सिन्हा और उनके सहयोगियों ने हार नहीं मानी और मैदान में डटे रहकर इसे सफल बनाया। यहां परम श्रद्धेय श्री अटल जी की एक प्रसिद्ध कविता की यह पंक्ति याद आती है, ”हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा।” 

बिना किसी सरकारी मदद या अन्य प्रोत्साहन के किसी भी निजी हिन्दी वेबसाइट अथवा पोर्टल का संचालन कितना मुश्किल है यह भलीभांति जानता हूं।

हिन्दी को जन-जन तक पहुंचाने और सभी वर्गों के विचारों को प्रोत्साहन देने की बात तो सभी करते हैं लेकिन ऐसे विरले ही लोग हैं जोकि अपने संसाधनों के बलबूते ही हिन्दी का अलख जगाए हुए हैं।

आज लोगों में ज्वलंत मुद्दों, अपने अधिकारों और कर्तव्यों को लेकर जागरूकता बढ़ी है, ऐसे में अपने मन में उमड़ते-घुमड़ते विचारों को अपनी मातृभाषा में बिना शुल्क के अन्य लोगों तक तीव्र गति से पहुंचा पाने की सुविधा मिलना बहुत बड़ी बात है। 

प्रवक्ता की यह भी बड़ी खूबी मानी जा सकती है कि यहां हर पंथ, हर पक्ष की विचारधारा वाले लेखकों को समान स्थान मिलता है। प्रवक्ता की बढ़ती रेटिंग, पाठक संख्या में वृद्धि आदि बातें श्री सिन्हा और उनके सहयोगियों के मन को कितना सुकून और प्रसन्नता पहुंचाती होंगी इसका बखूबी अहसास कर सकता हूं।

इस शुभ अवसर पर पुनः अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रकट करता हूं। 

नीरज कुमार दुबे

सहयोगी संपादक

प्रभासाक्षी.कॉम 

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