मानसिक अवसाद – मनस्थिति या रोग

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हाल के दिनों में बहुचर्चित सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या ने पुनः इस मुद्दे को एक बार फिर से आंदोलित किया है। उनके जीवन के अंतिम दिनों की रिपोर्टों के अनुसार यह तथ्य उजागर हुएं हैं कि वो इन दिनों लंबे समय से मानसिक अवसाद से ग्रस्त थे और मनोचिकित्सक से अपना इलाज करा रहे थे।

अब सवाल यह उत्पन्न होता है कि ये जो मानसिक अवसाद की स्थिति है उसका कारण क्या है, कौन से लोग इसका शिकार होते हैं और कैसे यह मनस्थिति इंसान पर इस कदर हावी हो जाती है कि किसी मनुष्य को अपना जीवन समाप्त करने के लिए दुष्प्रेरित कर देती है?

मानसिक अवसाद की स्थिति वास्तव में किसी एक आकस्मिक घटना का परिणाम ना होकर जीवन की घटित घटनाओं की एक पूरी श्रृंखला होती है, जो समय के साथ इंसान को भीतर से इतना शोकाकुल एवं भयग्रस्त कर देती है कि कोई इंसान आत्महत्या जैसा गलत कदम उठाने में क्षण भर की देरी नहीं लगाता।

आत्महत्या के कारणों पर अगर चर्चा की जाए तो शायद हम इसका आदि मध्य अंत ज्ञात ना कर पाएं, ना जाने कितने किसान फसलों के बर्बाद हो जाने से, कर्ज के बोझ के तले, बच्चों के भविष्य की चिंता, बेटी का ब्याह और ना जाने कितने कारण से हर साल किसान फांसी लगा लेते हैं, कितने ही छात्र अंक परिणामों के दबाव में जीवन लीला का अंत कर लेते हैं, और ना जाने कितने ही कारण होते हैं जो आत्महत्या को प्रेरित करने के लिए।

किन्तु यह बात तब मन को अधिक उद्वेलित करती है जब कोई ऐसा इंसान जो सफलता की पराकाष्ठा को छू चुका हो, अनेक संघर्षों को झेल चुका हो, अत्यंत हंसमुख प्रकृति वाला इंसान हो जो अपने होने की स्तिथि का स्वयंमेव परिचायक बन जाता है।

उसके पीछे क्या कारण उत्तरदाई रहे जिसने ऐसे इंसान को मानसिक अवसाद की गहराई में धकेल दिया, कौन सी परिस्थितियां दोषी रहीं हैं पता लगाने के लिए अनवरत पूछताछ जारी है जो इस रहस्य को गहराई को उजागर कर सकें।

यथास्थिति तक केवल एक ही कारण उभर कर आया है वो है चमकती दमकती बॉलीवुड की दुनिया के पीछे की काली सच्चाई जहां कला के नाम पर रह गई है ग्लैमर की भद्दी चमक और विशिष्ट समुदाय के चर्चित नामों के लोगों का आधिपत्य।

जो किसी सच्चे कलाकार की कला की कीमत और महत्व को नहीं जानते जिनकी राजनीति बस इसी बात पर केन्द्रित रहती है कि किसी भी बाहरी व्यक्ति को जो इस संकीर्ण क्षेत्र में अपनी कला का प्रदर्शन करने आया है उसकी कला को महत्वहीन दिखाना, चरित्र को दुष्कृत जताना।

एक कलाकार जो अपनी मेहनत के बलबूते पर अपनी समाज में  एक उत्कृष्ट छवि बनाता है और अपने दर्शकों पर गहरा प्रभाव छोड़ता है, कैसे भी करके उसकी छवि को समाज की नजरों में गिराना, चाहे इसके लिए उन्हें अपना पैसा भी बर्बाद करना पड़े,

बॉलीवुड महोत्सवों में ऐसे इंसान को जानबूझकर ना बुलाना उसे अलग – थलग किसी बाहरी जगह का साबित करना और केवल अपने टट्टुओं की नाकारी फौज से घिरा रहना।

बड़े बड़े प्रोडक्शन हाउस जो एक के बाद एक फिल्म का प्रस्ताव देते हैं और लगातार उसको वापस भी ले लेते हैं जबकि उस इंसान की प्रतिभा पर कतई संदेह नहीं किया जा सकता, सब कुछ मूवीज की तरह स्क्रिप्टेड जो उसको अवसाद में धकेल देती हैं, वो ऐसे में एलकोहलिक हो जाए और लोगों से कतराने लगे तो जानकर उसको घमंडी होने या नशेबाजी का ठप्पा लगा देना, शायद ये सब बहुत था जिसने सुशांत को हजारों लाखों की भीड़ में अलग थलग कर दिया और उन्होंने मौत को गले लगा लिया।

मामला संगीन था और स्थिति गंभीर बहुचर्चित विषय बना, आम जनता के साथ साथ बॉलीवुड के लोगों ने भी मोर्चा खोला।

कानून द्वारा भी मनोरोग को एक गंभीर रोग की तरह ही माना गया है जिसके संबंध में कानून 2017 में ही पास किया गया था किन्तु दुर्भाग्यवश उसका पालन अभी तक बीमा कंपनियां नहीं कर रही हैं जिसके संदर्भ में हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने बीमा नियामक प्राधिकरण को मनोरोग कानून 2017 धारा 21 (4) के लिए नोटिस भेजा है जिसमें बीमा कम्पनियों को आदेश दिया गया था कि मनोरोग को अन्य रोगों की तरह ही अपनी नियमावली के सम्मिलित किया जाए।

इस प्रकार यह अध्ययन पूर्ण रूप से सिद्ध करता है कि आधुनिक भौतिकतावादी युग में मानसिक अवसाद एक गंभीर रोग है जिसमें पीड़ित होने पर मृत्यु हो जाना किसी भी प्रकार से अतिश्योक्ति ना होगी।

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