प्रधान मंत्री का सन्देश/मन की बात

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man ki baatबी एन गोयल

प्रधान मंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी हर महीने मन की बात शीर्षक के अंतर्गत रेडियो के माध्यम से सम-सामयिक विषयों पर जनता से सीधे बात करते हैं. इस बार के कार्यक्रम में उन्होंने मनुष्य जीवन की सब से छोटी लेकिन सबसे अधिक महत्वपूर्ण ‘पानी’ की समस्या पर बात की. कार्यक्रम के दौरान प्रधान मंत्री जनता के प्रश्नों के उत्तर भी देते हैं. यह वास्तव में रेडियो से प्रसारित होने वाला एक अत्यंत सुन्दर, सराहनीय, अनूठा और आकर्षक कार्यक्रम है. इसे सुनने के लिए गाँव,कस्बों और शहरों में रेडियो के चारों तरफ बैठे श्रोताओं का उत्साह देख कर हम जैसे पुराने रेडियोकर्मियों का रेडियो के प्रति एक अहम् भाव जागृत हो जाता है. जब एक श्रोता को अपने घर से सीधे प्रधान मंत्री से बात करने का अवसर मिलता है तो उसे कितनी प्रसन्नता होती है – यह वही जानता है.

कौशिक जी का प्रश्न है क्या पहले भी इस तरह का कोई कार्यक्रम हुआ है तो इसका सीधा स्पष्ट उत्तर महेंद्र मोदी जी ने दिया है “नहीं” इस तरह serial के रूप में नहीं. आगे मैं महेंद्र मोदी जी से क्षमा मांगते हुए उन्हीं की बात को अलग ढंग से कहूँगा. मोटे तौर पर इसे प्रधान मंत्री का जनता के नाम सन्देश कहा जायेगा. इसे मैं तीन भागों में बाँट कर देखता हूँ –

1.प्रधान मंत्री का जनता के नाम नियमित सन्देश – जैसा कि प्रधान मंत्री हर वर्ष 15 अगस्त के दिन लाल किले की प्राचीर से भाषण देते हैं. इस का प्रारम्भ स्वतंत्रता प्राप्ति के दिन से हुआ. प्रधान मंत्री का लाल किले की प्राचीर से बोलना एक गौरव की बात है. एक समय था जब टीवी नहीं था और लोगों में प्रधान मंत्री को सुनने की तीव्र उत्कंठा होती थी. इस कारण लाल किले के सामने के खुले मैदान में भीड़ जुटती थी. इस में प्रधान मंत्री सामान्यतः जनता के सामने वर्ष भर की गतिविधियों और आगामी वर्ष की योजनाओं का लेखा जोखा रखते हैं. यह भाषण प्रायः अलिखित होता है और इस की अवधि सामान्यतः 40-45 मिनिट की होती है. कभी कभी भाषण लम्बा भी हुआ है.

2.विशेष परिस्थितियों में – विशेष परिस्थितियां जैसे अक्तूबर 1962 में चीन ने अचानक धावा बोल दिया. पूरा देश सकते में आ गया. उस समय तत्कालीन प्रधान मंत्री पंडित नेहरु की बौखलाहट को जनता ने महसूस किया था. बदहवासी में कहे गए ये शब्द किसी लिखित भाषण के अंश नहीं थे वरन प्रधान मंत्री के ह्रदय के घाव थे …. ”एक .. .पडोसी. ने….दोस्त बन ….कर ..हमारी पीठ….में छुरा…. घोंपा है.

-अगस्त 1965 में पाकिस्तान के उस समय के मिलिट्री शासक अय्यूब खान को भ्रम हो गया कि वे लाल किले तक टहल कर आसानी से जा सकते हैं और धोती पहनने वाला प्रधान मंत्री कुछ नहीं कर सकता. इसी भ्रम में उन्होंने अगस्त 1965 में भारत पर आक्रमण कर दिया. वे भूल गए कि धोती पहनने वाला लाल बहादुर शास्त्री नाम का प्रधान मंत्री फौलादी जिगर का आदमी था. युद्ध के समय शास्त्री जी दिल्ली के राम लीला मैदान से देश की जनता को संबोधित करते थे. उन का एक एक भाषण मुझे अच्छी तरह से याद है. उन दिनों ऑफिस में काम करने का एक अलग ही जनून था.

-इसी तरह 3 दिसंबर 1971 की रात जब पाकिस्तान के शासक याहया खान ने उत्तरी भारत के फ्रंट पर युद्ध छेड़ दिया तो तत्कालीन प्रधान मंत्री श्रीमती इंदिरा गाँधी ने देश के नाम ‘उत्तिष्ठ जागृत” के अपने सन्देश के साथ जवाबी कार्यवाही भी शुरू कर दी. सन्देश प्रसारण की सूचना आकाशवाणी के सभी केन्द्रों को पहले से दी जा चुकी थी. सन्देश का प्रसारण उसी समय हुआ जब सभी तैय्यारियाँ मुकम्मल हो चुकी थी. इन तीनों भाषणों की विस्तृत चर्चा मैंने अपनी पुस्तक में की है.

– इसी प्रकार आपातकाल का समय भी विशेष परिस्थिति का समय था .
3. तीसरी श्रेणी – यह अब जो मन की बात के रूप में प्रधान मंत्री जी कर रहे हैं. इस में वे जनता से जुडी समस्याओं को उठाते हैं और उन का समाधान खोजते हैं. यह एक निर्विवाद सत्य है कि प्रधान मंत्री श्री मोदी जी की भाषा दिल को छूने वाली होती है.

यहाँ पर दिल्ली केंद्र के स्टूडियो नम्बर 8 की चर्चा करना भी प्रासंगिक होगा. लाल रंग यह स्टूडियो VIP स्टूडियो कहलाता था और इस की देख रेख भी उसी स्तर के होती थी. पंडित नेहरु तक की रिकॉर्डिंग इस स्टूडियो में होती रही. पंडित नेहरु ने एक बार बच्चों के सद्य (Live) कार्यक्रम में बड़े स्टूडियो में भी भाग लिया था.

1988 से 1994 तक दिल्ली केंद्र पर मैं VVIP कोष्ठ का इंचार्ज रहा हूँ जिस में प्रधान मंत्री (ऑफिस और निवास), राष्ट्रपति भवन, संसद भवन, लाल किला (15 अगस्त) और जनपथ (26 जनवरी) की रेकार्डिंग और प्रसारण की ज़िम्मेदारी थी. यद्यपि इन स्थानों के हमारे पास स्थाई किस्म के विशेष पास होते थे. उस के बाद भी हर बार जांच पड़ताल होती थी.

इस टीम में मेरे साथ इंजिनियर श्री रोबिन दासगुप्ता और आइज़क जॉन थे. जॉन हम तीनों की एक सुगठित टीम थी. जॉन मेरे साथ रोहतक में भी रह चुके थे. हमारे वरिष्ठ अधिकारी थे सर्वश्री उमेश दीक्षित (के नि), जी सी त्यागी (अधि अभि) और पी एम बंसल (के अभि). इस दौरान हमें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह और तीन प्रधान मंत्री सर्वश्री वी पी सिंह, चन्द्र शेखर और पी वी नरसिंह राव से समीप से मिलने, बात करने और रिकॉर्ड करने के अनेक अवसर मिले.

अंत में प्रधान मंत्री जी के सन्दर्भ में पानी चर्चा –

रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून –
पानी गए ना उबरे, मोती मानुस चून ||०||

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

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