संदेश ले०उमर फ़ैयाज़ की शहादत के?

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तनवीर जाफ़री
वैसे तो भारत का जम्मू-कश्मीर राज्य पाकिस्तानी शासकों तथा जम्मू-कश्मीर में स्थित कुछ अलगाववादियों के संयुक्त नेटवर्क के चलते गत् चार दशकों से अस्त-व्यस्त है। परंतु गत् चार वर्षों में विशेषकर कश्मीर घाटी के हालात बद से बद्तर होते जा रहे हैं। आम कश्मीरी क्षेत्र के इन हालात से दु:खी हो चुके हैं। क्षेत्रीय लोग कश्मीर में अमन-शांति चाहते हैं, अपने बच्चों के लिए अच्छी एवं सुचारू शिक्षा की तमन्ना रखते हैं,अपने रोज़गार में तरक़्क़ी तथा निरंतरता की ख़्वाहिश रखते हैं, राज्य में पर्यट्न को पुन: पटरी पर लाना चाहते हैं। ज़ाहिर है भारत सरकार तथा राज्य सरकार इन जनहितकारी कार्यों के लिए अनेक योजनाएं चला रही है और भविष्य में भी चलाना चाहती है। इतने अस्त-वयस्त रहने के बावजूद जम्मू-कश्मीर में रेल,सडक़,संचार जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में काफ़ी तरक़्क़ी हुई है। धारा 370 के तहत कश्मीरी अवाम को अनेक ऐसी सुविधाएं प्राप्त हो रही हैं जो कश्मीरियों के विकास तथा उनकी उन्नति व संस्कृति के लिए काफ़ी लाभदायक हैं। परंतु इन सब बातों के बावजूद गत् कुछ वर्षों में ऐसा प्रतीत होने लगा है गोया कश्मीरी नौजवान कश्मीर की आज़ादी के लिए मर-मिटने के लिए तैयार हों। उनके हाथो में लहराते पाकिस्तान व आईएआईएस के झंडे यह बता रहे हों कि वे भारत के साथ रहना ही न चाहते हों। भारतीय सेना पर कश्मीरी युवाओं व युवतियों द्वारा आए दिन की जाने वाली पत्थरबाज़ी तथा उनके अपने ही समाज के भारतीय सेना के युवा होनहार अधिकारी लेिफ्टनेंट उमर फैय्याज़ की गत् 10 मई को कश्मीर के शोपियां में आतंकियों द्वारा की गई हत्या तो कम से कम कुछ ऐसे ही संदेश दे रही है। तो क्या वास्तव में समग्र कश्मीर घाटी भारत व भारतीय सेना के विरुद्ध हो चुकी है या कश्मीर जैसा विवाद जो कल तक स्थानीय कश्मीरी अलगाववादियों व भारत सरकार के बीच का एक राजनैतिक मसला समझा जाता था वह अब धार्मिक विषय बन चुका है?
जब भी कश्मीर विवाद का नाम आता है उस समय अलगाववाद अथवा कश्मीरियत के स्वयंभू पैरोकारों के रूप में हुर्रियत कांर्फेंस जैसे स्थानीय व क्षेत्रीय अलगाववादी संगठन का नाम ज़ेहन में उभरकर सामने आता है। परंतु लेिफ्टनेंट उमर फ़ैयाज़ की हिज़बुल मुजाहिदीन के आतंकियों द्वारा की गई हत्या के बाद आतंकवादियों के एक धड़े की ओर से इन्हीं हुर्रियत नेताओं को साफतौर से यह धमकी दी गई कि-‘कश्मीर मसले को राजनैतिक मसला समझने की कोशिश न की जाए बल्कि कश्मीर की जंग उनकी नज़रों में इस्लाम के लिए लड़ी जाने वाली जंग है, कश्मीर में वे जेहाद कर रहे हैं और वे यहां शरिया क़ानून स्थापित करना चाहते हैं’। हालांकि गुपचुप तरीक़े से कश्मीरी आंदोलन में जेहादी तत्वों की घुसपैठ की चर्चा तो पहले भी होती रही है परंतु पहले ये नौबत कभी नहीं आई थी कि कोई आतंकी कमांडर हुर्रियत नेताओं को कश्मीर मसले को राजनैतिक मसला बताने के लिए इस हद तक खबरदार करे कि वह हुर्रियत नेताओं के सिर काटकर लाल चौक पर लटकाने की धमकी तक दे दे। बहरहाल इस धमकी के बाद तथा लेिफ्टनेंट उमर फ़ैयाज़ की हत्या व उस हत्या के बाद आए आतंकियों के संदेश के बाद तो यह बात साफ़ हो चुकी है कि कश्मीर को सीमापार से हो रहे हस्तक्षेप की मदद से कथित जेहाद की आग में झोंकने की तैयारी भी हो चुकी है।
आज भारत सरकार व जम्मू-कश्मीर राज्य के लगभग सभी विभागों में,यहां तक कि प्रशासनिक व्यवस्था,न्यायिक व्यवस्था,सेना,अर्धसैनिक बलों व राज्य की सुरक्षा सेवाओं में सभी जगह कश्मीरी अवाम अपनी सेवाएं देते आ रहे हैं। कश्मीर में भय व आतंक का माहौल पैदा करने वाले तथा कश्मीरी अवाम को धर्मयुद्ध या जेहाद की आग में झोंकने की कोशिश करने वाले लोग चाहे जितनी कोशिशें क्यों न कर लें परंतु अपने भडक़ऊ,उकसाऊ व जज़्बाती भाषणों से वे कश्मीरी युवाओं को रोज़गार नहीं दे सकते न ही उन्हें तरक़्क़ी की राह दिखा सकते हैं। उनके शरीया क़ानून कायम करने के सपने कश्मीरी युवाओं का पेट नहीं भर सकते न ही उनके जीवन को किसी बड़े लक्ष्य तक पहुंचा सकते हैं। आज कश्मीर की इज़्ज़त का कारण तथा राज्य के युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत के रूप में शाह फैसल,अतहर आमिर,मोहम्मद शमी,नबील अहमद वानी तथा उमर फ़ैयाज़ जैसे युवा हैं न कि पाकिस्तान की शह पर कश्मीर की स्वर्ग रूपी धरती को नर्क बनाने वाले हाथों में एके-47 लेकर चलने वाले आतंकी प्रवृति के हिंसा फैलाने वाले लोग। यहां एक बात और भी गौरतलब है कि लेिफ्टनेंट उमर फैय्याज़ की हत्या के बाद उनके जनाज़े पर पथराव करवाकर स्थानीय लोगों को डरा-धमका कर यह संदेश देने की पूरी कोशिश की गई कि कश्मीरी नवयुवक सुरक्षा बलों में नौकरी करने का साहस न जुटा सकें। परंतु ठीक इसके विपरीत उमर फ़ैयाज़ की हत्या के चार दिन बाद ही श्रीनगर के बख्शी स्टेडियम में जम्मू-कश्मीर पुलिस में सब इंस्पेक्टर की भर्ती हेतु कश्मीरी युवक-युवतियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। 698 पदों के लिए 67218 युवक-युवतियों ने आवेदन किया। खुद भारतीय सेना प्रमुख जनरल विपिन रावत भी यह स्वीकार कर चुके हैं कि ‘सभी कश्मीरी आतंकवाद में शामिल नहीं हैं’। परंतु यह भी सच है कि सभी कश्मीरियों को जेहाद,शरीया तथा धार्मिक उग्रवाद का पाठ पढ़ाए जाने की कोशिश ज़रूर की जा रही है।
कश्मीर से आने वाले समाचारों के अनुसार घाटी के विभिन्न क्षेत्रों में कश्मीरियत की पहचान बनी धार्मिक सौहाद्र्र की प्रतीक समझी जाने वाली सूफ़ीवादी विचारधारा का गला घोंटने की एक सोची-समझी साज़िश रची जा रही है। यहां यह बताने की ज़रूरत नहीं कि यह वही वहाबी नेटवर्क है जो सऊदी अरब से चलकर तालिबान, अलकायदा,आईएसआईएस होते हुए कश्मीर में अपने पैर पसारना चाहता है। ख़बरों के मुताबिक इस समय घाटी में अनेक ऐसे मौलवी सक्रिय हैं जो वहां की अवाम को धर्मयुद्ध,जेहाद,शहादत,ग़ाज़ी,जन्नत,शरीया जैसे पाठ पढ़ा रहे हैं। ऐसे लोग अपने मिशन पर खूब पैसे भी खर्च कर रहे हैं। घाटी में वहाबियत और सल्फ़ी विचारधारा का ज़ोर-शोर से प्रचार किया जा रहा है। ज़ाहिर है यह लोग भी भारतीय सेना के हाथों कश्मीरी युवकों पर की जाने वाली जवाबी कार्रवाई के वीडियो व चित्रों का सहारा लेकर कश्मीरी लोगों में भारत सरकार के विरुद्ध ग़ुस्सा भडक़ाने की कोशिश कर रहे हैं। जबकि आज भी कश्मीर के बहुसंख्य लोग चाहे वे मुसलमान हों, हिंदू हों या सिख, ऐसी 70 प्रतिशत से अधिक आबादी का रुझान सूफीवादी विचारधारा के प्रति है।
ऐसे में जहां कश्मीर के मुद्दे को राजनैतिक रूप से हल करने की बड़ी चुनौती भारत सरकार के सामने पहले से ही है वहीं सरकार,सेना तथा राज्य सरकार के सामने एक दूसरी बड़ी चुनौती यह भी आ चुकी है कि कश्मीर घाटी के लोगों को घाटी में फैल रही वहाबी विचारधारा के चंगुल में फंसने से कैसे रोका जाए? इस ज़हरीली विचारधारा से मुकाबला करने के लिए सूफ़ीवादी विचारधारा के लोगों को किस प्रकार सुरक्षा,संरक्षण व बढ़ावा दिया जाए? भारत सरकार,जम्मू-कश्मीर की राज्य सरकार तथा भारतीय सेना को भारतीय सैनिकों की कश्मीर में हुई शहादत तथा लेफ़्टिनेंट उमर फ़ैयाज़ जैसे देशभक्त कश्मीरी युवक की शहादत का सम्मान करते हुए कश्मीर व कश्मीयित की रक्षा की खातिर कश्मीर विरोधी सभी मंसूबों को विफल करने के पूरे प्रयास करने चाहिए।

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