भोपाल में अटकी इंदौर की मेट्रो

विनोद उपाध्याय

देवी अहिल्या की नगरी इंदौर का नाम देश के चुनिंदा 18 पर्यटन स्थलों में शुमार हो गया है। शहरवासियों के साथ-साथ प्रदेशवासियों के लिए भी यह खुश-खबर अवश्य है, जिससे नगर को सँवारने वाली संस्थाओं पर जवाबदारी और बढ़ गई है। इंदौर को प्रारंभिक विकास के दौर में जिन कपड़ा उद्योगों व हस्तशिल्प ने पहचान दिलाई थी, आज भी उसी हस्तशिल्प ने इस शहर को पर्यटन स्थलों में शुमार होने का गौरव दिलाया है लेकिन प्रदेश की भाजपा सरकार को शायद इसकी सुध ही नहीं है। यही कारण है कि यहां आने वाली मेट्रो रेल सेवा की फाईल भोपाल में अटक गई है।

मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व वर्तमान नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर भोपाल को पेरिस बनाने की घोषणा कई बार कर चुके हैं लेकिन आज तक भोपाल एक व्यवस्थित शहर भी नहीं बन पाया है। ऐसे में दूसरे शहरों की स्थिति क्या होगी इसका सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। बाबूलाल गौर का भोपाल प्रेम जग जाहिर है। जब वे प्रदेश के मुख्यमंत्री थे तब उन्हें भोपाल के मुख्यमंत्री की संज्ञा दी जाती थी। आखिर यह गलत भी नहीं था क्योंकि गौर साहब भोपाल के आगे कुछ सोच भी नहीं पाते हैं। मंत्री की इसी सोच का नतीजा है कि प्रदेश की व्यावसायिक राजधानी इंदौर में शुरू होने वाली मेट्रो रेल योजना लटकी हुई है।

उल्लेखनीय है कि नई दिल्ली के तजऱ् पर केन्द्र और राज्य सरकार भोपाल और इंदौर में मेट्रो रेल सेवा शुरू करने की तैयारी कर रही है ऐसे में इंदौर की मेट्रो ट्रेन की योजना भोपाल में नगरीय प्रशासन विभाग में ही अटक कर रह गई है। यह खुलासा किया है दिल्ली से भोपाल पहुंचे एक पत्र ने, जिसमें केंद्रीय शहरी विकास मंत्रालय ने राज्य सरकार की तरफ से ऐसा कोई प्रोजेक्ट मिलने से साफ इनकार किया है। सांसद व भाजपा प्रदेशाध्यक्ष प्रभात झा को दिए जवाब में मंत्रालय ने कहा कि हमें न तो कोई प्रस्ताव मिला है, न किसी तरह की वित्तीय मदद ही मांगी गई है। केंद्रीय शहरी विकास सचिव नवीन कुमार ने पत्र में स्पष्ट किया है कि मेट्रो रेल के लिए राज्य के नगरीय प्रशासन विभाग की ओर से विस्तृत आवाजाही की योजना प्रस्तुत करना प्राथमिक अनिवार्यता है, जो आज तक प्रस्तुत नहीं की गई है। इस मामले में नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं कि वे होते कौन हैं। हम दिल्ली मे मेट्रो का काम करने वाली कंपनी से यह काम करवाना चाहते हैं और उन्हें प्रस्ताव भेज चुके हैं। शहरी विकास मंत्रालय को प्रस्ताव क्यों भेजें। वर्षो से इंदौर में मेट्रो ट्रेन के लिए संघर्षरत एक वरिष्ठ पत्रकार द्वारा यह मुद्दा ध्यान में लाने के बाद झा ने शहरी विकास मंत्रालय को पत्र लिखकर इंदौर में मेट्रो के बारे में जानकारी मांगी थी।

राज्य को योजना की जरूरत, कुल लागत तथा उपयोग में लाई जाने वाली टेक्नोलॉजी को एक साथ रखकर प्रस्ताव बनाना चाहिए। इसके बिना, मंत्रालय की ओर से वित्तीय मदद तो दूर, योजना पर विचार तक संभव नहीं है। मेट्रो रेल विशेषज्ञ ईश्रीधरन सहित इस क्षेत्र से जुड़े कई लोगों ने भोपाल की तुलना में इंदौर को मेट्रो रेल के लिए ज्यादा बेहतर माना है। यह भी कहा गया है कि इंदौर में मेट्रो की लागत भी भोपाल की तुलना में कम रहेगी क्योंकि यहां भूमिगत के बजाय ओवर ग्राउंड लाइट मेट्रो से ही काम चल सकेगा। नागरिकों सहित संबंधितों का कहना है कि मामले में मुख्यमंत्री के स्तर पर मानीटरिंग होना चाहिए। इसके लिए पृथक विभाग गठित कर उसे मेट्रो सहित लोक परिवहन के विकास व विस्तार को अंजाम देने का काम सौंपा जाना चाहिए।

केंद्र सरकार ने मेट्रो रेल के लिए गेज चयन, निर्माण, संचालन, प्रबंधन व प्रशासन के अधिकार राज्य सरकारों को पांच साल पहले ही सौंप दिए थे। राजस्थान सहित कई राज्यों ने इस दिशा में पहल की और उसके नतीजे भी सामने आने लगे, लेकिन मध्यप्रदेश की ओर से कोई सकारात्मक पहल नहीं हो पाई। इंदौर की बजाय भोपाल को इस योजना का लाभ पहले दिलाने की नगरीय प्रशासन मंत्री बाबूलाल गौर की जिद के चलते भी इस मामले में राज्य को पिछडऩा पड़ा।

उधर केन्द्रीय शहरी विकास मंत्रालय की सत्ता संभालते ही अपने गृह राज्य के प्रति दिलचस्पी दिखाते हुए कमलनाथ ने घोषणा की कि मध्यप्रदेश को हर क्षेत्र में प्राथमिकता दी जाएगी। उन्होंने कहा कि राज्य की राजधानी भोपाल समेत इंदौर, उज्जैन, सागर, जबलपुर और ग्वालियर को वल्र्ड क्लास शहर बनाया जाएगा। उन्होंने कहा कि देशभर में मेट्रो नेटवर्क का विस्तार किया जाएगा, साथ ही मेट्रो से जुड़ी जो भी परियोजनाएं मंत्रालय के समक्ष लंबित हैं उनका शीघ्रता से निपटारा किया जाएगा। मंत्री की इस मंशा से भोपाल और इंदौर में मेट्रो परियोजना के परवान चढऩे के आसार बढ़ गए हैं।

उधर नगरीय प्रशासन एवं विकास मंत्री बाबूलाल गौर कहते हैं किाभोपाल में पहले मेट्रो का कार्य शुरू होने की वजह वहां मेट्रो का विस्तार केवल 35 किलोमीटर में है वहीं इंदौर में जनसंख्या, क्षेत्रफल और बजट के हिसाब से यह बडा प्रोजेक्ट है। इंदौर में मेट्रो ट्रेने अंडरग्राउंड होगी, जिसके लिये 230 करोड रूपए प्रति किलोमीटर पर खर्च होगा। वहीं भोपाल में ट्रेने सडक से उपर चलेगी जिस पर 120 करोड रूपए प्रति किलोमीटर का खर्च संभावित है।ल गौरतलब है कि कोच्ची और लुधियाना जैसे शहरों में मेट्रो रेल परियोजना प्रारंभ हो चुकी है। जिसको देखते हुए भोपाल और इंदौर में भी मेट्रो रेल चलाने की तैयारी की जा रही हैं। वैसे मेट्रो रेल उन स्थानों पर सफल मानी जाती हैं जहाँ की आबादी लगभग 30 लाख के आसपास होती है एक अनुमान के मुताबिक भोपाल की आबादी 18 से 20 लाख के बीच वहीं इंदौर की आबादी 30 लाख के आसपास है। मेट्रो रेल परियोजना का काम शुरू होने के बाद इसे पूर्ण होने में 6-7 साल का समय लगता है लिहाजा तब तक भोपाल की बाडी भी तीस लाख के आसपास पहुँचने का अनुमान है दूसरी और इंदौर की आबादी 30 लाख होने से मेट्रो रेल पहले इंदौर में शुरू होने की संभावना व्यक्त की जा रही है। परियोजना प्रारंभ होने के बाद 12000 करोड़ का खर्चा आएगा और परियोजना लगभग 6-7 सालों में पूरी हो जायेगी। बहरहाल मेट्रो परियोजना के प्रारंभ हो जाने पर जहाँ एक और भोपाल और इंदौर अंतर्राष्ट्रीय परिदृश्य में नई पहचान मिलेगी तो दूसरी और प्रदेश में औधोगिक निवेश की संभावनाएं बढेंगी लेकिन अब देखना यह होगा कि 1200 करोड़ की इस परियोजना को कब मजूरी मिलेगी और कब इसका काम शुरू हो पायेगा

उल्लेखनीय है कि इन इंदौर हमेशा से पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र रहा है। यह शहर हस्तकला वस्तुओं की बिक्री के केंद्र हैं। पर्यटक इन स्थानों पर घूमने के साथ-साथ लुभावने व कलात्मक हस्तशिल्प की वस्तुओं को खरीदने के लिए भी बेताब रहते हैं। इन वस्तुओं पर की जाने वाली सूक्ष्म कारीगरी पर्यटकों का मुख्य आकर्षण होती है।

इंदौर में होलकर रियासत की पहचान बनीं महेश्वरी साडिय़ाँ पूरी दुनिया में इस क्षेत्र की याद दिलाती हैं। महेश्वर देवी अहिल्याबाई के जमाने से श्रेष्ठ बुनकरों का स्थान रहा है। शिल्प क्षेत्र के साथ आधुनिक वस्त्र व्यवसाय में भी इंदौर की ख्याति दूर-दूर तक है। शिल्प के पाँच चुनिंदा विषयों में सुई कार्य, जनजातीय कार्य, फायबर, पर्यावरण के अनुकूल (आर्गेनिक) शिल्प, उत्सव के सजावटी उत्पाद शामिल हैं। इंदौर शहर सरस्वती और खान नदियों के किनारे बसा शहर है। इन नदियों की दशा किसी से छिपी नहीं है। यहां की यातायात व्यवस्था प्रदेश में सबसे खराब है। ऐसे में अगर मेट्रो रेल के कार्य में बाधा उत्पन्न होती है तो इस शहर का भगवान ही मालिक होगा।लेकिन देखना यह है कि पेरिस के नाम पर भोपाल को गड्ढो का शहर बनाने वाले बाबूलाल गौर और उनका विभाग इंदौर पर कब मेहरबान होता है।

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