गरमी मई की जून की

summer

आई चिपक पसीने वाली,
गरमी मई की जून की|

चैन नहीं आता है मन को,
दिन बेचेनी वाले |
सल्लू का मन करता कूलर ,
खीसे  में रखवाले  |
बातें तो बस उसकी बातें ,
बातें अफलातून की |

दादी कहतीं सत्तू खाने ,
से जी ठंडा होता |
जिसने बचपन से खाया है,
तन मन चंगा होता |
खुद ले आतीं खुली पास में,
इक दूकान परचून की |

बोले पापा इस गरमी में ,
हम शिमला जाएंगे|
वहीं किसी भाड़े के घर में,
सब  रहकर आयेंगे |
मजे मजे बीतेगी सबकी ,
छुट्टी बड़े सुकून की |

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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