दूध गरम‌

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बैठा लाला भारी भरकम,
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

एक सड़क किनारे पट्टी में,
है रखा कड़ाहा भट्टी में|
भर भर गिलास पिलवाता है,
वह केवल पाँच रुपट्टी में|
देता समान आदर सबको,
थोड़ा ज्यादा न थोड़ा कम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

कई युवक युवतियाँ आते हैं,
वे लंबी लाइन लगाते हैं|
दादा दादी नाना नानी,
नाती पोतों को लाते हैं|
सब सुड़ सुड़ दूध सुड़कते हैं,
क्यों करें यहां पर लाज शरम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

यह दूध बड़ा खुशबू वाला,
मीठा मीठा, केसर डाला|
मन जिसका ललचा जाता है,
पीने को होता मतवाला|
फहराता उसके चेहरे पर,
पल भर को खुशियों का परचम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

नेता अफसर भी आ जाते,
पीकर यह दूध अघा जाते|
यह दूध बहुत है गुणकारी,
पीने वालों को सम‌झाते|
जो भी इस रस्ते से निकला,
पग उसके जाते हैं थम,थम|
चिल्लाता पीलो दूध गरम|

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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