वोट आरक्षण का कांग्रेसी पैंतरा

सिद्धार्थ शंकर गौतम

अभी पिछले दिनों सरकार ने पिछड़ा वर्ग के लिए निर्धारित २७ प्रतिशत कोटे में से ४.५ प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यक समाज के पिछड़े वर्ग को आरक्षित कर दिया| हालांकि पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनाव के मद्देनज़र चुनाव आयोग ने चुनाव संपन्न होने तक सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी है| मगर सवाल यह है कि यह रेखांकित क्या करता है? तमाम विपक्षी पार्टियों को सरकार का यह पैंतरा सीधे-सीधे कांग्रेस को चुनावी फायदा पहुंचाता नज़र आ रहा है, पर इस बारे में अभी कुछ कहना ज़ल्दबाजी होगा| सबसे बड़ा सवाल; इससे मुस्लिम समाज को क्या फायदा होगा जिसकी सबसे अधिक चर्चा है? यदि मंडल आयोग की संस्तुतियों को देखा जाए तो पिछड़ी जातियों की कुल संख्या सम्पूर्ण आबादी का ५२ प्रतिशत हैं| इसमें हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन सभी वर्गों की पिछड़ी जातियां शामिल हैं| इन सभी वर्गों के पिछड़ों को आरक्षण की परिधि में लाकर २७ प्रतिशत आरक्षण देने की बात कही गई थी| अब उसी आरक्षण में से ४.५ प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यक समाज को दे देना समझ से परे है| इस आरक्षण का लाभ अत्यधिक पिछड़े मुस्लिम समाज के लोग कैसे उठा पायेंगे? इसका अधिकाँश लाभ तो ईसाईयों और बौद्धों को मिलता नज़र आ रहा है|

दरअसल सरकार ने बड़ी ही चालाकी से विधानसभा चुनाव पूर्व मुस्लिम समाज को ठगने का काम किया है ताकि मुस्लिम समाज का एकमुश्त वोट-बैंक कांग्रेस की झोली में आ गिरे| जबकि हकीकत यह है कि पंजाब में सिख समुदाय पर आरक्षण का लाभ मिलने का वादा किया गया तो गोवा में ईसाईयों पर दांव लगाया जाएगा| वहीं उत्तरप्रदेश में इसका केंद्र मुस्लिम बन गए हैं| हमेशा की ही तरह इस बार भी कांग्रेस की बाजीगरी मुस्लिमों को ठगने का काम कर रही है| ऐसे में मुस्लिमों के बीच यह सवाल प्रमुखता से उठ रहा है कि क्या उन्हें मात्र आरक्षण का झुनझुना चाहिए या वास्तव में उनके हितों तथा उनके सर्वांगीण विकास हेतु ठोस व कारगर कदम उठाने होंगे? फिर देश में यह बहस भी शुरू हो गई है कि आरक्षण जब आजादी के ६५ वर्षों बाद भी मुस्लिमों का भला नहीं कर पाया तो राजनीतिक शून्यता के इस दौर में आरक्षण से किसे और क्या फायदा होगा? एक और बड़ा मुद्दा; क्या मजहब के आधार पर आरक्षण देना सही है?

आज़ाद भारत में संविधान निर्माताओं ने हाशिये पर खड़े समाज के संरक्षण एवं उत्थान हेतु प्रावधान बनाए मगर संविधान सभा में जब मजहब के आधार पर आरक्षण की मांग उठी तो सात में से पांच मुस्लिम सदस्यों- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद, मौलाना हिफजुर रहमान, बेगम एजाज रसूल, हुसैन भाई लालजी तथा तजामुल हुसैन ने इसका कड़ा विरोध करते हुए इसे राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता के लिए खतरा बताया था| वहीं २६ मई १९४९ को संविधान सभा में जवाहरलाल नेहरु ने कहा था, “यदि आप अल्पसंख्यकों को ढाल देना चाहते हैं तो वास्तव में आप उन्हें अलग-थलग करते हैं….हो सकता है कि आप उनकी रक्षा कर रहे हों; पर किस कीमत पर? ऐसा आप उन्हें मुख्यधारा से काटने की कीमत पर करेंगे|” २७ जून १९६१ को एक बार फिर नेहरूजी ने मजहबी आरक्षण का विरोध करते हुए राज्य सरकारों को भेजे पत्र में लिखा था; “मैं किसी भी तरह के आरक्षण को नापसंद करता हूँ| यदि हम मजहब या जाति आधारित आरक्षण की व्यवस्था करते हैं तो हम सक्षम और प्रतिभावान लोगों से वंचित हो दूसरे या तीसरे दर्जे के रह जायेंगे| यह न केवल मूर्खतापूर्ण है, बल्कि विपदा को आमंत्रण देना है|”

आज जब राहुल गाँधी उत्तरप्रदेश में मुस्लिम आरक्षण की मांग उठाते हैं या सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू कराने की बात करते हैं तो दुःख होता है कि एक ऐसे नेता का प्रपौत्र मजहबी आरक्षण का हिमायती है जो उसका हर स्थिति में विरोध करते थे| नेहरु ही क्यूँ; १९९० में जब वी.पी.सिंह की सरकार ने सरकारी नौकरियों में पिछड़े वर्गों के लिए २७ फीसद आरक्षण का आदेश निकाला था तब राजीव गांधी ने ही इसका ज़ोरदार विरोध किया था| विपक्ष के नेता की हैसियत से ६ सितम्बर १९९० को राजीव गाँधी ने संसद में भाषण देते हुए मंडल आयोग की संस्तुतियों को खत्म करने की मांग की थी| आज जब कांग्रेस सत्ता में है तो उसे अपनी ही पार्टी के नेता का आरक्षण विरोधी रवैया भी याद नहीं रहा| जिस मंडल आयोग की संस्तुतियों को खत्म करने की वकालत राजीव गाँधी ने की थी, कांग्रेसी नेता आज उसी मंडल आयोग की संस्तुतियों का इस्तेमाल अल्पसंख्यक समाज; खासकर मुस्लिम समाज को ठगने के लिए कररहे हैं|

वैसे भी मजहब के नाम पर आरक्षण का दुष्परिणाम यह रहा है कि आरक्षण का लाभ मुस्लिम समुदाय का क्रीमीलेयर ही उठा ले गए| वास्तव में आरक्षण जिनके लिए था, उन्हें तो उसका फायदा ही नहीं मिला| यदि कांग्रेस पार्टी वास्तव में मुस्लिम समाज की बेहतरी चाहती है तो सच्चर कमेटी तथा मिश्र कमीशन की संस्तुतियों को पूर्णतः लागू करे तथा उनके प्रावधानों के अनुकूल मुस्लिमों को उसका उचित लाभ दिलवाए| मंडल आयोग तो वैसे भी पिछड़े वर्ग के लिए था| ऐसे में मुस्लिमों के उत्थान के लिए कुछ ठोस उपाय होना चाहिए|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

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