अनिल अनूप

इलाहाबाद के भीड़-भाड़ और सबसे पुराने बाज़ार चौक के एक कोने में मीरगंज मोहल्ला आबाद है। मीरगंज के इस इलाके में बड़े पैमाने पर ज्वेलरी का कारोबार होता है। यहाँ की पुरानी इमारतों से ढकी हुई बंद गलियों में जैसे ही अन्दर जाएंगे, आपको एक अलग ही दुनिया मिलेगी। हर घर के बाहर सज-धज कर तैयार महिलाएँ हर आने जाने वाले को अपने पास बुलाती हैं। असल में यह एक रेड लाइट मतलब देह व्यापार का बाज़ार है। जिसका इतिहास लगभग डेढ़ सौ साल पुराना है।
स्थानीय निवासी और कारोबारी रामतीर्थ अग्रवाल बताते हैं “आज़ादी के पहले तक यहाँ मुजरा हुआ करता था। उस वक्त जमींदार और रसूखदार लोग यहाँ नृत्य और दूसरी तरह की सुख सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए आते थे। चार पाँच मशहूर कोठे हुआ करते थे। मुझे याद है तबस्सुम बाई का कोठा, वहाँ शहर के बड़े-बड़े लोग आया करते थे। रात को महफ़िल सज़ा करती थी। अब वह परम्परा पूरी तरह से ख़त्म हो गई। जो बच गया वह आपके सामने है।
यहाँ के लोग बताते हैं कि भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू का जन्म इसी मीरगंज मोहल्ले में हुआ था। उसके बाद उनका परिवार यहाँ से आनंद भवन चला गया। लेकिन इसके कोई पुख़्ता प्रमाण नहीं मिलते।

मीरगंज से चंद क़दम दूर नखास कोने में रहने वाले हकीम सादुल्लाह उस्मानी बताते हैं, “देखिए हमने अपना दादा वगैरह से सुना तो था की नेहरू साहब की पैदाइश यहीं हुई थी लेकिन यह सोचने वाली बात है की ऐसा हुआ होता तो सरकार इस जगह पर स्मारक ज़रूर बनवाती, मैं इसे कोरी अफवाह ही मानता हूँ।”
देह व्यापार को भारत में क़ानूनी मान्यता नहीं मिली है इसके बावजूद सामाजिक रूप से इस धंधे को स्वीकारा जाता रहा है। पश्चिम बंगाल के सोनागाछी, दिल्ली के जीबी रोड जैसे ही इलाहाबाद में मीरगंज की पहचान वेश्यावृत्ति के बतौर ही होती है।
ह्यूमन राइट लॉ नेटवर्क से जुड़े मानवाधिकार कार्यकर्ता केके रॉय ने बताया कि काफी समय से कुछ स्वयं सेवी संस्थाएँ मीरगंज में स्वास्थ, सुरक्षा एवं रीहैब्लीटेशन का काम करती रही हैं। लेकिन वर्तमान में वहाँ के हालत पर किसी ने काम किया है या नहीं, इसकी जानकारी नहीं है। पुलिस की मदद से अगवा की हुई लड़कियों का रेस्क्यू पिछले साल किया गया था। जब भी इस तरह का मामला सामने आता है तो स्त्री मुक्ति संगठन के लोगों ने वहाँ काम करते हैं।
लगभग 50 वर्ष की उर्मिला (परिवर्तित नाम) ने इयामीन से बात करते हुए कहा, “हमारी माँ से शुरू हुए इस धंधे में अब मेरी बेटियाँ और बहुयें तक शामिल हैं। इससे हमें कोई परेशानी नहीं होती। अगर यह नहीं करेंगे तो खायेंगे क्या और जियेंगे कैसे? बस परेशानी इस बात की है कि हमारे साथ हुआ वो हम अपने छोटे बच्चों के साथ नहीं होने देना चाहते। हमने तो इस धंधे को चाहते या न चाहते हुए अपना लिया, लेकिन हम अपने बच्चों को इसमें नहीं डालना चाहते। लेकिन हमारी पहचान से आम लोगों को परेशानी होती है। अगर बच्चों का एडमिशन कराने स्कूल ले जाते हैं तो उन्हें मालूम चल जाए कि हम मीरगंज से हैं तो वो बच्चों को नहीं पढ़ाते। अब बताइए फिर क्या करेंगे हमारे बच्चे?

यहाँ नेपाल से आई हुई लड़कियों का अपना अलग अड्डा है। देश के विभिन्न कोने से महिलाएँ यहाँ आई हुई हैं। इनमें से कुछ को ज़बरदस्ती यहाँ रखा जाता है तो कुछ अपनी मर्ज़ी से देह व्यापार करती हैं।इयामीन से बात करती हुयी मुर्शिदाबाद की जोहरा (बदला हुआ नाम) बताती हैं, “हर किसी का यहाँ अपना रेट फिक्स होता है। किसी का 100 रुपए तो किसी का 500 रुपये, इसमें से एक हिस्सा पुलिस को जाता है तो दूसरा कोठे के मालिक को। दलाल भी हर ग्राहक पर अपना हिस्सा ले जाता है। हमारे पास 100 रुपये में से केवल 30 रुपये बचते हैं। खुश होकर ग्राहक ने अगर कुछ अलग से दे दिया तो वह हमारा हो जाता है।
सामाजिक स्वीकार्यता के बावजूद यह ऐसा धंधा है जिसके बारे में बात करना गुनाह समझा जाता है, इसलिए स्वास्थ सम्बन्धी बीमारियों की वजह से दिक्कतें पेश आती हैं। अधिकतर औरतें कम पढ़ी-लिखी या फिर पूरी तरह से अनपढ़ हैं। जिसके कारण सुरक्षित यौन सम्बन्ध का तरीका न मालूम होने की वजह से गंभीर यौन रोग की गिरफ्त में आ जाती हैं। स्वास्थ विभाग की ओर से रेगुलर चेकअप जैसी कोई सुविधा यहाँ की वैश्याओं को नहीं मिलती और न ही कोई लोकल एनजीओ इस ओर ध्यान देता है।
सीआरपीऍफ़ के दो जवानों की कुम्भ मेले के दौरान तैनात दो जवानों की हत्या इस देह व्यापार के इलाके में हो चुकी है। एक स्थानीय दलाल और वर्दी वालों के बीच एक महिला को लेकर तनातनी हो गई। जिसके बाद अपराधियों ने दो जवानों की सरेशाम हत्या कर दी थी। आए दिन यहाँ झगड़े होते रहते हैं।इतने बड़े स्तर पर यहाँ देह व्यापार हो रहा है लेकिन सुरक्षा और जागरूकता की कोई मुहिम इनके बीच नहीं चल रही है जिसका साफ असर आने वाली नई पीढ़ी पर दिख रहा है।