मिस हिडंबा और हिंदी

पंडित सुरेश नीरव

पता नहीं किस एंग्रीमैन दुर्वासा के शाप से सौभाग्यभक्षिणी कर्कशा कुमारी हिडंबा को कविता लिखने का दंड मिला था। यह पता तो नहीं चला मगर उनके इस गोपनीय दंड के कारण सार्वजनिकरूप से शहर का संपूर्ण साहित्य-जगत दंडकारण्य जरूर बन गया था। कविता के आर्यजनों ने इस कवयित्री के कोप से भयभीत होकर गोष्ठियों में आना-जाना ही बंद कर दिया था। गोष्ठी की ख़बर सूंघकर ही कुमारी हिडंबा गोष्ठी में धमक जातीं जहां उनके रौद्ररूप और खार प्रतिभा को देखर शहर के शब्दऋषि या तो ऑन द स्पॉट बेहोश हो जाते या फिर भागकर ऐसे भूमिगत हो जाते जैसे रेडएलर्ट की घोषणा के बाद आतंकवादी हो जाते हैं। कर्कशा देवी की एक अदद गोष्ठी की हाजिरी ही सिटी को गोसिटी बना देती। पता नहीं किस पाप लग्न में कर्कशा देवी ने कवयित्री होने का क्रूर निर्णय लिया था। भेदियों की विश्वस्त सूचनाओं के मुताबिक इश्क की दुनिया के किन्हीं तीन राजकुमारों के सामने मिस हिडंबा ने जब अपना नृशंस प्रणय प्रस्ताव रखा तो क्रमशः तीनों ही अबला राजकुमार पुरुषों ने इस खूंखार हादसे से बचने के लिए प्रसन्नतापूर्वक, हंसते-हंसते आत्महत्याएं कर लीं। कुछ लोगों का यह भी मत है कि इन इश्क-बांकुरों ने आत्महत्याएं नहीं की थीं बल्कि प्रेम-प्रेतनी के चरण-कटहल में इन तीनों की बलि चढ़ाने का परम-पुनीत कृत्य इनके इकलौते परम अपूज्य पिताजी के शाइनिंग शूटरों ने कर के बॉस की रमणीक प्रॉपर्टी को अतिक्रमण से बचाया था। अब इस विवादित भूमि पर प्रॉपर्टी डीलर और बिल्डर तो क्या नगर विकास प्राधिकरणों ने भी देखने की हिम्मत नहीं जुटाई तो मुहब्बत में चोट खाई इस रक्ष-सुंदरी के हृदय की भग्न बीहड़ों में घायल जजबातों का हिसाब चुकाने कविता की चंबल कब खतरे के निशान से ऊपर आकर उछाल मारने लगी इसका पता मिस हिडंबा को तब लगा जब खयालों के चंबल में तुकबंदियों के ढोर-मवेशी बहते हुए मुंह के मुहाने तक तेज़ी से पहुंचने लगे। तब मिस हिडंबा को बोध हुआ कि वो तो बैठे-बिठाए एक दुर्दांत कवयित्री बन चुकी हैं। और अपनी प्रचंड प्रतिभा के बल पर राष्ट्र भाषा हिंदी के हाथों अंग्रेजी की इतनी पिटाई करेगी कि डर के मारे अंग्रेजी ख़ुद हिंदी को विश्वभाषा डिक्लेयर कर देगी। जोश के जुनून में थरथराती मिस हिडंबा ने जब यह ऐलान पूरी दबंगई के साथ रंगदारी के रॉबिन हूड अपने बप्पा के सामने किया तो डर के मारे वो फूट-फूटकर हंसने लगे। और अपनी होनहार बिटिया के अभद्र सम्मान में नाना प्रकार की मौलिक- अमौलिक मंगलकारी गालियों से लैस स्वस्तिवाचन कर वातावरण को धार्मिक बनाने लगे। इस मंगल अवसर पर बप्पा के गुर्गे शहर के विख्यात-कुख्यात साहित्यकारों को हांककर रंगदारी के दबंग महल में ले आए। कसाई के सामने बंधे बकरों की तरह नगर के कवि,पत्रकार,और समीक्षक प्रशंसा के कोरस में मिले सुर मेरा तुम्हारावाली डिजायन में मिमयाने लगे। मुगांबो खुश हुआ की तर्ज पर मिस हिडंबा के पिताश्री ने सभी बुद्धिजीवी बकरों को गडांसा दिखाकर अपना निश्छल प्यार जताया और फिर अपनी विचित्र किंतु सत्य पुत्री की दुर्लभ कविताएं सुनने का विनम्र तालिबानी निवेदन किया जिसे सभी बुद्धिजीवी बकरों ने सर्वसम्मति से बहादुरीपूर्वक स्वीकार कर लिया। उस दिन के बाद से ही मिस हिडंबा नगर के प्रबुद्ध मच्छरों के बीच कछुआ छाप अगर बत्ती का दर्जा हासिल करने की हैसियत में आ गईं। अकादमी,अखबार पुरस्कार समितियां सभी भय की प्रीति की पावन सुगंध में सराबोर होकर हिडंबामय हो चुकी हैं। हिंदी मिस हिडंबा के नगर की विश्वभाषा बन चुकी है। हिंदी का भविष्य मिस हिडंबा-जैसी कवयित्री के पराक्रम से ही सुरक्षित है। दुमहिलाऊ बुद्धिजीवियोंयों की चापलूसी का छौंक उसे चटकदार तो बना सकता है मगर धमकदार नहीं।

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