एमजे अकबर का भाजपा में आना!

-फखरे आलम- MJ Akbar1
एम.जे अकबर, मोबशीर जावेद अकबर किसी परिचय के मोहताज नहीं है। हाँ यह अलग बात है कि उन्होंने जितनी सफलता पत्रकारिता के माध्यम से प्राप्त की है। उतनी सपफलता उनहें राजनीति में हासिल नहीं हुई। मगर अकबर जैसे बुद्धिजीवी का भाजपा में आना किसी बड़ी घटना से कम नहीं। जिस प्रकार से उनके तथ्य और तर्क को उनकी लेखनी में माना ओर सराहा जाता है उसी प्रकार उनके तर्क जो उनहोंने गुजरात दंगों पर दिए हैं उसे माना जाएगा कि किसी भी दंगों पर आज तक किसी को सजा नहीं हुई, जबकि गुजरात दंगों पर 100 से अध्कि लोगों को सजा मिल चुकी है। एम.जे. अकबर का भाजपा में शामिल होना उन लोगों के लिऐ करारा जबाब है जो सांप्रदायिक और सेकूलर पर भाजपा और मोदी को घेरते आऐ हैं।
एम.जे. कोई सड़क छाप और संघर्षशील पत्रकार नहीं है और न ही उन्हें किसी राजनीति दलों की आवयकता है जो अपने आप को स्थापित करने के लिए करें। यह वही पत्राकार हैं जो सबसे बड़े मीडिया समूह के ग्रुप ऐडिटर और स्तम्भकार पहले भी थे और आज भी है जिनके लेखों को पढ़ने के लिए लोग सप्ताह भर प्रतिक्षा करते हैं।
एम.जे. को पढ़-पढ़कर कइयों ने पत्राकारिता सीखा है और हम जैसे छात्रों ने कलम पकड़ा है। एम.जे कांग्रेस की टिकट से किशनगंज लोकसभा से संसद और राजीव गाधी के मीडिया सलाहकार एवं कांग्रेस के प्रवक्ता की भूमिका सफलतापूर्वक निभा चुके हैं। उनके निष्पक्ष लेखनी के बिना, अंग्रेजी, हिन्दी और उर्दू का समाचारपत्र-पत्रिका सुना सुना लगता है।
बाबरी मस्जिद विध्वंस के दूसरे दिन मैंने उनकी प्रतिक्रिया वी.वी.सी हिन्दी सेवा पर सुनी थी, जिसके बाद उन्होंने कांग्रेस पार्टी से ही अलग नहीं हुए, बल्कि राजनीति और लेखनी से कापफी समय तक अलग रहे। मैंने सुना था कि एम.जे. किसी शोध के सम्बंध में रूस से अलग हुए अनेक मुस्लिम देशों में सालों रहकर शोध कार्य करते रहे। कांग्रेस पार्टी से उनके सम्बंध का तो मुझे पता नहीं। बल्कि उनके अनेक लेखों को पढ़कर मैं यह कह सकता हूं कि उनके पूर्वजों का सम्बंध हमारे प्रदेश से था जो अंग्रेजों के श्रमिकों के रूप में भारत से बाहर गए और उनका जन्म बंगाल में हुआ था। उनकी अनेकों रचनाओं में से नेहरू पर लिखे पुस्तक के बिना पर उन्हें कांग्रेस में पसंद किया जाने लगा होगा। मगर, लगातार उन्होंने मीडिया का घर बदलने का काम किया और आज उन्हें ऐसा लगा होगा कि वह भाजपा और मोदी के संग मिलकर समाज और देश की अधिक सेवा कर सकेंगे। मगर उनका भाजपा में जाना देश के अंदर मुस्लिम और सामान्य लोगों को कोई घटना से कम नहीं दिखाई दे रहा है।

2 COMMENTS

  1. ​जो खुली आँखों से सत्य को देखेगा वो मोदी और भाजपा के आकर्षण से रुक नहीं पाएगा। कुतर्क और असत्य के लिए तो बाकि दूसरे दल पड़े ही हुए हैं. बहुत सुंदर विश्लेषण। धन्यवाद

  2. एम जे अकबर इसमें कोई दो राय नहीं है ि‍क ना केवल बड़े पञकार हैं बल्कि मुस्लिम समाज के जाने माने विव्‍दान भी समझे जाते हैं लेकिन उनके भाजपा में जाने से ना तो भाजपा दूध की धुली हो गयी है और ना ही वे खुद एक हिंदुूवादी पार्टी से जुड़ने को अभी अपने तर्कों से न्‍यायोचित ठहरा सकें हैंा सबसे बड़ी बात यह है कि वे अगर चुनाव लड़ने का टिकट या भाजपा का कोई पद ना लेकर पार्टी में दस पांच साल सेवा करते हैं तो उनका हृदय परिवर्तन और उनकी सोच में समय के हिसाब से बदलाव माना जा सकता है लेकिन वे ऐसा नहीं करेंगे जिससे मुस्लिम समाज उनके इस फैसले को ि‍नजी स्‍वार्थ में लिया गया मानेगा. अब देखना यह है ि‍क भाजपा अगर 2014 का चुनाव जीत जाती है और सरकार बनाने में सफल रहती है तो वह मुसलमानों के प्रति अपना क्‍या रूख़ रखती है और अपने ि‍वकास के दावे पर कितनी खरी उतरती है साथ ही भ्रष्‍टाचार और महंगाई रोक पाती है या नहीं….मुसलमान ही नहीं देश की जनता उसे भविष्‍य में इसी कसौटी पर परखेगी.

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