‘मनरेगा’ : रोजगार और भत्ते की गारंटी

महेश दत्त शर्मा

भारत सरकार की राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना ‘मनरेगा’ का लाभ ऐसे खेतिहर मजदूरों और लघु एवं मध्यम जोतवाले किसानों को हो रहा है, जो केवल कृषि की सीमित आय के सहारे अपनी आजीविका चला रहे हैं। इस योजना के बारे में केंद्र सरकार की भावी नीति क्या रहेगी, इसे जानने के लिए हमने केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री प्रदीप जैन ‘आदित्य’ से एक खास भेंट की। पेश है इस बातचीत के मुख्य अंश:-

श्री जैन का कहना है कि यह योजना एक अधिनियम है, जो लाभार्थियों को रोजगार और भत्ते की गारंटी देती है। हमारी सरकार की प्राथमिकता ग्रामीण स्थायी विकास की है। इसी बात को ध्यान में रखकर हमने ममनरेगा जैसी महत्त्वपूर्ण योजना आरंभ की है। इस योजना को लागू करने में जहाँ कुछ राज्य काफी अग्रणी हैं, वही केछ राज्यों में अभी भी सुधार की गुंजाइश है। मेरी ऐसे राज्यों से अपील है कि वे प्राथमिकता के आधार पर इस योजना को लें, ताकि जरूरतमंद ग्रामीणजन तक इस योजना का लाभ पहुँच सके।

श्री प्रदीप जैन का कहना है कि मजदूरों के जॉब कार्ड समय पर मिलें, गाँव में ही कार्य मिले, कार्य की ऐसी प्रकृति जिसमें मशीनों का उपयोग न हो तथा मजदूरी का भुगतान समय पर उन्हें उचित और पारदर्शी तरीके से हो, जहाँ बिचौलिए शोषण न कर सकें, अधिनियम में ऐसी व्यवस्था की गई है और हम इन सब बातों की अच्छी तरह से मॉनिटरिंग कर रहे हैं।

श्री जैन का कहना है कि इस योजना को और कारगर बनाने के लिए हम न केवल किसानों बल्कि गैरसरकारी संगठनों के सुझावों पर भी गंभीरता से विचार कर उनका समावेश ममनरेगा में करना चाहते हैं, ताकि ज्यादासे-ज्यादा लोगों को इस योजना का लाभ मिले।

उनका कहना है कि हम ग्रामीणजन और लाभार्थियों से प्रत्यक्ष संवाद स्थापित कर इस योजना की खामियों को दूर करने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं। ग्रामीण पलायन रोकना भी हमारे लिए कठिन चुनौती साबित हो रहा है। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम में एक वित्तीय वर्ष में ऐसे ग्रामीण परिवारों को मजदूरी के 100 दिनों की गारंटी दी जाती है। अभी हमारा प्रयास है कि अधिकसे-अधिक लाभार्थियों को इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार उपलब्ध कराया जाए। इसके प्रचारप्रसार के लिए हम आधुनिक के साथसाथ परंपरागत साधनों का भी उपयोग कर रहे हैं।

कृषि, पर्यावरण और जल संसाधनों जैसे अन्य सामाजिक क्षेत्रों से संबद्ध कार्यक्रमों के साथ भी तालमेल करने के बारे में विचार किया जा रहा है।

श्री जैन ने बताया कि ममनरेगा का लगभग 8 प्रतिशत कार्य सूखा दूर करने से संबंधित है, जो वानकीकरण के अंतर्गत पर्यावरण और वन मंत्रालय द्वारा शुरू किए जानेवाले कायोरं, जैसी कि वन नीति, 1988 में परिकल्पना की गई है, को पूरा करने में सहायक हो सकता है। उन्होंने बताया कि मनरेगा के कायोर्ं की उचित योजना बनाने के लिए केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए हैं। उनका कहना है कि यह योजना जाति, वर्ग व क्षेत्र, समुदाय से ऊपर उठकर पूरे देश के लिए बनी है।

श्री जैन का कहना है कि अभी राजस्थान और आंध्र प्रदेश में अच्छा काम हो रहा है। अन्य राज्यों को भी अपनी कार्यशैली पहले से ज्यादा गतिशील करनी होगी, तभी अपेक्षित लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी। ग्रामीण विकास राज्य मंत्री ने स्वीकारा कि अभी भी कुछ ऐसी दिक्कतें हैं, जो योजना के समग्र कार्यान्वयन के लिए बाधक बनी हुई हैं; लेकिन इन्हें दूर करने के लिए हर संभव प्रयास जारी हैं और हमें आशा ही नहीं, दृ़ विश्वास है कि हम अपने लक्ष्य को पा लेंगे।श्री जैन का कहना है कि नेहरूजी ने ठोस आर्थिक विकास पर बल दिया था। इंदिराजी ने उसी राह पर चलकर देश को विकास के मार्ग पर अग्रसर किया और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और महासचिव राहुल गांधी मनरेगा जैसी स्विण्रम योजनाओं को सक्षम ंग से कार्यान्वित करके हाशिए पर जीवनयापन करनेवाले लोगों को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ना चाहते हैं। मनरेगा ऐसी स्विण्रम योजना है, जिसके प्रकाश में हर परिवार को काम मिलने की गारंटी दी गई है।

श्री जैन ने बताया कि मनरेगा को अन्य योजनाओं के साथ मिलाकर 115 जिलों में प्रायोगिक परियोजनाएँ शुरू की जाएँगी। उन्होंने इस योजना पर व्यापक प्रकाश डालते हुए बताया कि राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अध्नियम की शुरुआत से पहले संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना; एस.जी.आर.वाई. तथा काम के बदले अनाज का राष्ट्रीय कार्यक्रम (एन.एपफ.डब्ल्यू.पी.) के माध्यम से देश के ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरी रोजगार कार्यक्रम चलाया जा रहा था। 2 फरवरी, 2006 को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम; (मनरेगा) को शुरू करने से समूचे ,काम के बदले अनाज’ के राष्ट्रीय कार्यक्रम को इसमें मिला दिया गया। जिलों में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना को भी 200607 में प्रथम चरण में मनरेगा में मिला दिया गया था। अतिरिक्त 130 जिलों में संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना कार्यक्रमों को भी 200708 में दूसरे चरण में मनरेगा में मिला दिया गया था। 1 अपै्रल, 2008 से समूचे संपूर्ण ग्रामीण रोजगार योजना कार्यक्रम को मनरेगा में मिला दिया गया। राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 7 सितंबर, 2005 को अधिसूचित किया गया, जिसका उद्देश्य प्रत्येक परिवार के ऐसे वयस्क सदस्य, जो अकुशल शारीरिक कार्य करना चाहते हैं, को एक वित्तीय वर्ष में 100 दिनों के लिए मजदूरी रोजगार गारंटी देना है।

एक प्रश्न के जवाब में उन्होंने बताया कि मई 2007 से मनरेगा में उपयुक्त संशोधन करके अधिनियम को जम्मू व कश्मीर में कार्यान्वयन के लिए लागू किया गया। अधिनियम के अंतर्गत अब देश के सभी ग्रामीण क्षेत्रों को कवर कर लिया गया है। शुरू में कार्यक्रम में यह व्यवस्था थी कि योजना के अंतर्गत कार्य केवल तभी शुरू किए जाएँगे जब 50 श्रमिक उपलब्ध हों तथा इस आवश्यकता को 10 श्रमिक करके अब इस धारा को मार्च 2007 से संशोधित कर दिया गया है।

श्री जैन ने बताया कि पहले इस अधिनियम में भूस्वामित्व वाली अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के परिवारों और भूमि सुधार/इंदिरा आवास योजना के मकानों के अंतर्गत पफालतू भूमि के लाभार्थियों को सिंचाई सुविधा देने का प्रावधान किया गया था। भूस्वामित्व वाली अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति, गरीबी रेखा के नीचे के परिवारों, भूसुधारों के लाभार्थियों तथा इंदिरा विकास योजना के आवंटियों को सिंचाई, बागबानी तथा भूमिविकास सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए अधिनियम को 12 मार्च, 2007 को संशोधित किया गया।

प्राकृतिक आपदाओं की वजह से अपने स्थान से विस्थापित मनरेगा श्रमिकों को मजदूरी रोजगार देने का प्रावधान करने के लिए मनरेगा से अनुसूची2 को संशोधित किया गया था। शिकायतों को निबटाने, पूर्व जानकारी देने तथा सामाजिक लेखापरीक्षा कराने की व्यवस्था करने के लिए अनुसूची1 को संशोधित किया गया था।

ग्रामीण विकास राज्य मंत्राी श्री प्रदीप जैन ने बताया कि मनरेगा के फलस्वरूप अधिक वित्तीय समावेशन जहाँ हुआ, वहाँ रोजगार प्राप्त करनेवाले परिवारों के लिए बैंक/डाकघर खाते खोले गए। हमने राज्यों को खातों के जरिए मजदूरी का पूरा भुगतान सुनिश्चित करने की सलाह दी है। लगभग 536 लाख खाते खोले गए हैं।

श्री जैन ने बताया कि व्यापक वेब आधारित निगरानी एवं सूचना प्रणाली कार्यान्वित की गई है, जहाँ सार्वजनिक क्षेत्रों में वित्तीय और वास्तविक कार्यक्रमनिष्पादन संकेतकों संबंधी सभी आँकड़े रखे जाते हैं। वेबसाइट में लगभग 1 करोड़ मस्टर रोल तथा 5.70 करोड़ जॉब कार्ड हैं। कड़ी सतर्कता तथा निगरानी के लिए अधिनियम के अंतर्गत सामाजिक लेखापरीक्षा को अनिवार्य बनाया गया है। लगभग 1.74 लाख ग्राम पंचायतों ने सामाजिक लेखापरीक्षा करा ली है।

श्री जैन ने कहा कि जनभागीदारी सुनिश्चित करने के लिए ग्राम स्तरीय निगरानी समितियाँ गठित की गई हैं तथा इन समितियों के लगभग 6.13 लाख सदस्यों को प्रशिक्षित किया गया है। मनरेगा के प्रभावी कार्यान्वयन को ब़ावा देने के लिए सिविल सोसाइटी संगठनों के उत्कृष्ट कायोर्ं को सम्मानित करने के लिए सरकार ने ॔रोजगार जागरूकता पुरस्कार’ शुरू किया है। जन शिकायतों को दूर करने के लिए लोक अदालतें बनाई गई हैं, लोकपाल की नियुक्ति की गई है।

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महेश दत्त शर्मा
जन्म- 21 अप्रैल 1964 शिक्षा- परास्नातक (हिंदी) अनेक प्रमुख हिंदी पत्र-पत्रिकाओं में महेश दत्त शर्मा की तीन हज़ार से अधिक विविध विषयी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। आपका लेखन कार्य सन १९८३ से आरंभ हुआ जब आप हाईस्कूल में अध्ययनरत थे। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी से आपने 1989 में हिंदी में एम.ए. किया। उसके बाद कुछ वर्षों तक विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के लिए संवाददाता, संपादक और प्रतिनिधि के रूप में कार्य किया। आपने विभिन्न विषयों पर अधिकारपूर्वक कलम चलाई और इस समय आपकी लिखी व संपादित की चार सौ से अधिक पुस्तकें बाज़ार में हैं। हिंदी लेखन के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए आपने अनेक पुरस्कार भी अर्जित किए, जिनमें प्रमुख हैं- नटराज कला संस्थान, झाँसी द्वारा लेखन के क्षेत्र में 'यूथ अवार्ड', अंतर्धारा समाचार व फीचर सेवा, दिल्ली द्वारा 'लेखक रत्न' पुरस्कार आदि। संप्रति- स्वतंत्र पत्रकार, लेखक, संपादक और अनुवादक।

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