मोबाईल का आर्डर‌

सुबह ‘चार’ पर मुर्गे उठकर,

हर दिन बाँग लगाते थे|

सोने वाले इंसानों को,

“उठो उठो “चिल्लाते थे|

 

किंतु आजकल भोर हुये,

आवाज़ नहीं ये आती है|

लगता है कि अब मुर्गों की,

नींद नहीं खुल पाती है|

 

 

मुर्गों के घर चलकर उनको,

हम मोबाईल दे आयें|

और अलार्म है, कैसे भरना,

उनको समझाकर आयें|

 

चार बजे का लगा अलार्म,

मुर्गे जब उठ जायेंगे|

कुकड़ूं कूं की बांग लगेगी,

तो हम भी जग जायेंगे|

 

मुन्नूजी ने इसी बात पर,

पी. ए.को बुल‌वाया है|

द‌स‌ ह‌ज़ार‌ मोबाईल‌ लेने,

का आर्ड‌र‌ क‌र‌वाया है|

 

 

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प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

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