देश का अगला पीएम फिर मोदी ??

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संजय सक्सेना
उत्तर प्रदेश में ताजमहल के बाद सबसे अधिक चर्चा सुबह-ए-बनारस और शाम-ए-अवध की होती है। बाबा भोलेनाथ की नगरी में प्रातःकाल जब सूर्य की लालिमा मॉ गंगा की अविरल धारा को चुमती हुई बनारस के घाटों को अपने आलिंगन में लेती है तो ऐसा लगता है कि जैसे पूरा का पूरा बनारस सूर्य की लालिमा से प्रकाशमान हो गया हो। मॉ गंगा के घाटों से कुछ कदम दूरी पर ही विराजमान हैं त्रिलोक के स्वामी बाबा भोलेनाथ। भोर की बेला में बाबा भोलेनाथ के भक्त जब उनके नाम का जयकारा लगाते हुए बाबा विश्वनाथ मंदिर पहुंचते हैं तो सुबह-ए-बनारस में ‘चार चांद’ लग जाते हैं। आज भले ही उस्ताद बिस्मिल्लाह खान हमारे बीच नहीं हों लेकिन उनकी शहनाई की मधुर धुन और बनारस की सुबह का रिश्ता कौन भूल सकता है। बनारस के कण-कण में भक्ति का पुट दिखता है तो लखनऊ जो कभी भगवान लक्ष्मण के की शाम को लेकर भी कई कसीदे पढ़े गए हैं। रामायण में वर्णित कथन के अनुसार अवध के राजा राम ने, लंका से लौटने के बाद अपने अनुज भाई लक्ष्मण को अवध से करीब 40 मील दूर स्थित एक स्थान उपहार स्वरुप दिया था, जिसका नाम लक्ष्मणपुर पड़ा। रामायण में ही लिखित साक्ष्यों से यह पता चलता है कि लक्ष्मणपुर एक समृद्धशाली शहर था। वहां पर व्यापार अपनी पराकाष्ठा पर था तथा वहाँ के रास्ते सदैव हाथी घोड़ों के आवागमन से भरे रहते थे। लक्ष्मणपुर एक संस्कृत नाम है जिसका संधिविच्छेद इस प्रकार से है- लक्ष्मण़पुर। पुर का अर्थ है ‘स्थान’ तो यह दोनों शब्द मिलकर यह बताते हैं कि लक्ष्मण से जुड़ा स्थान। 11वीं शताब्दी तक लखनपुर (या लक्ष्मणपुर) के नाम से यह शहर जाना जाता था जो कि बाद में लखनऊ के रूप में जाना जाने लगा।

लखनऊ ने मुगलकाल में भी काफी समृद्धि हासिल की। जब लखनऊ नवाबां की धरती बनी तो तो शेरो-शायरी यहां की तहजीब में रच-बस गई। लखनऊ के नवाबी मिजाज के कारण इसे रंगीन और नृत्य आदि से सराबोर प्रस्तुत किया गया है। यहाँ की गलियों में शाम के समय विभिन्न पकवान, तवायफों के नृत्य और हर जगह खुशी का माहौल ऐसा लगता है मानो दुनिया की सारी उदासी लखनऊ आकर दम तोड़ देती हो।लखनऊ की शाम को शायरों ने बड़ी तल्लीनी के साथ अपनी शायरियों में स्थान दिया है। कई कहावते भी शाम-ए-अवध और सुबह-ए-बनारस पर आधारित हैं जिनमे से एक है शाम-ए-अवध को निकल जाते हो घर से और लौटते सुबह-ए-बनारस हो।
बनारस और अवध की जितना समृद्ध इतिहास है उतना ही यहां का सियासी मिजाज है। दोनों ही जगह सियासत के कई सूरमाओं ने जन्म लिया। आज भी कौन होगा देश का भावी प्रधानमंत्री?की चर्चा होती है तो बनारस और अवध क्षेत्र का नाम सबसे आगे नजर आता है। अवध क्षेत्र की सियासी महत्ता को समझना हो तो सबसे पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, राजीव गांधी और अटल बिहारी वाजपेयी का नाम सामने आता हैं जो अवध की सरजमी से निकल कर पीएम की कुर्सी तक पहुंचे थे। बात वाराणसी की कि जाए तो यहां से पंडित मदनमोहन मालवीय, लाल बहादुर शास्त्री, सम्पूर्णानंद, लक्ष्मण आचार्य, मुकुल बनर्जी,श्याददेव राय चौधरी, पंडित कमलापति त्रिपाठी, अनिल शास्त्री मुरली मनोहर जोशी जैसी तमाम सियासी हस्तियों ने जिले का नाम रोशन कियां मौजूदा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी वाराणसी से ही सांसद हैं।
वाराणसी और अवध(लखनऊ,अमेठी,रायबरेली), दोनों ही क्षेत्रों में इस बार भी सियासी पारा इतना गरम है कि सात समुंदर पार भी इसकी धमक सुनाई दे रही है। चुनाव का बिगुल बजते ही यह चर्चा आम होने लगी है कि अवध का इलाका 2109 में भी देश की राजनीति का मुख्य केंद्र बनेगा। प्रियंका गांधी वाड्रा के सीधे तौर पर सियासत का रूख करने का यहां असर भी दिखाई दे रहा है। वह एक तरफ रायबरेली संसदीय सीट में जाकर अपनी सांसद मां सोनिया गांधी के निर्वाचन की जिम्मेदारी संभाल रही हैं तो चर्चा यह भी है कि प्रियंका के चचेरे भाई वरुण गांधी इस बार पीलीभीत की जगह सुल्तानपुर संसदीय सीट से बीजेपी उम्मीदवार हो सकते है। कांग्रेस आध्यक्ष और पार्टी के भावी प्रधानमंत्री के रूप में राहुल गांधी अपने अमेठी संसदीय सीट में आगामी चुनाव की रिहर्सल पहले से ही प्रारम्भ कर चुके हैं। बीजेपी ने यहां राहुल गांधी की मजबूत घेराबंदी कर रखी है। यहां से बीजेपी केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को चुनाव लड़ाने का मन बना चुकी है। पिछली बार भी ईरानी यहां से चुनाव लड़ी थीं और राहुल गांधी को कड़ी टक्कर दी थी।
लखनऊ एवं अवध के कुछ जिलों का नाम लम्बे समय से देश-विदेश में कई कारणों से रोशन हुआ है। अवध की राजधानी लखनऊ संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाले अटल बिहारी बाजपेयी, रायबरेली संसदीय सीट से चुनाव जीतने वाली इंदिरा गांधी तथा अमेठी से चुनाव जीतने वाले राजीव गांधी देश के पीएम बने थे और इसी वजह से अवध सुर्खियों में बना रहा।
उधर, लखनऊ से जुड़ी संसदीय सीटों में सुल्तानपुर एक बार फिर चर्चित हो सकती है और बीजेपी वहां से अपने राष्ट्रीय महासचिव वरुण गांधी को पीलीभीत के बजाय वहां से अपना प्रत्याशी बनाने का मन बना सकती है। प्रियंका अपनी मां सोनिया की सीट की देखरेख कर रही हैं। तो राहुल अमेठी में यह काम कर रहे हैं। लखनऊ की चर्चा करना भी जरूरी है। केन्द्रीय गृह मंत्री और लखनऊ के सांसद राजनाथ सिंह का रिकार्ड रहा है कि वह कभी एक सीट से दोबार चुनाव नहीं लड़े हैं,लेकिन इस बार लखनऊ से चुनाव लड़कर राजनाथ अपना यह रिकार्ड तोड़ सकते हैं।
बात वाराणसी की कि जाए तो यहां से फिलहाल मोदी के खिलाफ कोई बड़ी चुनौती नजर नहीं आ रही है। मोदी को टक्कर देने के लिए यहां से भाजपा के बागी नेता शत्रुघन सिन्हा, हार्दिक पटेल के बाद हाल फिलहाल में प्रियंका वाड्रा के नाम की भी चर्चा हुई थी,लेकिन अभी तक मोदी के खिलाफ विपक्ष लामबंद नहीं हो पाया है।

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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