मर्यादा की पटरी से उतर गया पोस्टर वार

सिद्धार्थ शंकर गौतम 

संजय जोशी-नरेन्द्र मोदी रार से शुरू हुआ पोस्टरवार अब मर्यादा की पटरी से उतर गया है| अभी तक जोशी समर्थकों द्वारा मोदी के विरुद्ध लगाए जा रहे पोस्टरों में उनपर यह इल्जाम लगाया जा रहा था कि उन्होंने पार्टी को हाइजैक कर लिया है| पोस्टरों से यह भी निहितार्थ निकाले जा रहे थे कि जोशी की पार्टी से विदाई में मोदी की महती भूमिका है| किन्तु गुरूवार को गुजरात के विभिन्न शहरों में मोदी को स्त्री रूप में जिस तरह जुल्मी सास के रूप में दिखाया गया उससे यह साबित होता है कि मोदी की आगामी राह कितनी कठिन होने जा रही है फिर चाहे वह वर्ष के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव हों या २०१४ के लोकसभा चुनाव में उनकी महती भूमिका का प्रश्न, मोदी की छवि को जमकर नुकसान पहुँचाया जा रहा है| और फिर मोदी ही क्यों, इस पूरे पोस्टरवार प्रकरण से भाजपा की छवि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है जिससे कहीं न कहीं घर की फूट पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ रही है| वर्तमान परिपेक्ष्य में ऐसा प्रतीत होता है मानो पार्टी की वैचारिक समृद्धता को घुन लग गया हो| वे सभी जो इस पोस्टरवार को स्तरहीन बना रहे हैं, चाहे वे जोशी समर्थक हों या मोदी समर्थक, पहले वे भाजपा के समर्पित कार्यकर्ता हैं और पार्टी किसी एक व्यक्ति की जागीर नहीं होती| हालांकि ताजा विवादित पोस्टर किसने लगाया इसका पता नहीं चल पाया है फिर भी अंदेशा है कि ये पोस्टर भी जोशी समर्थकों की ही कारस्तानी है| वैसे देखा जाए तो यदि मोदी ने आपसी अदावत की वजह से संजय जोशी को पार्टी के बाहर का रास्ता दिखा भी दिया था तो भी जोशी समर्थकों को धैर्यता से अपनी बात रखनी चाहिए थी| अब जिस तरह के पोस्टर लगने लगे हैं उससे तो यह जान पड़ता है कि वे सभी जोशी की वापसी से ज्यादा मोदी की राजनीतिक बर्बादी चाहते हैं| इसमें समर्थकों का कितना भला हो रहा है ये तो वह ही जाने मगर इससे जोशी ज़रूर नेपथ्य में जा रहे हैं, भले ही इन सब में उनका कोई हाथ न हो| मीडिया सहित संघ तथा भाजपा के एक धड़े की सहानुभूति पा चुके जोशी अब अपने समर्थकों की वजह से विवादित हो रहे हैं| अल्पकालीन लाभ के लिए दूरगामी नुकसान झेलना आखिर कहाँ की बुद्धिमता है? जोशी सार्वजनिक मंच से अपने समर्थकों से भावपूर्ण अपील भी कर चुके हैं कि अब पोस्टर विवाद बंद होना चाहिए मगर उनके समर्थक उनकी अपील ही नहीं सुन रहे|

गुजरात भाजपा में सिर्फ पोस्टर विवाद ही नहीं, केशूभाई पटेल सहित असंतुष्टों का एक धड़ा भी मोदी की मुखालफत कर रहा है| सुनने में आ रहा है कि इन्हें भी परोक्ष रूप से मोदी-विरोधियों की शह मिली हुई है| तो क्या संजय जोशी परदे के पीछे..? वैसे इसकी संभावना कम ही है और यह भी हो सकता है कि जोशी-मोदी अदावत का कोई और ही फायदा उठाना चाहता हो? आखिर कौन हो सकता है वह- शंकर सिंह बाघेला, केशूभाई पटेल, काशीराम राणा, एके पटेल, सुरेश मेहता या फेरहिस्त और भी लम्बी हो सकती है| वैसे इसकी संभावना प्रबल हो गई है कि भाजपा नेतृत्व द्वारा भाव न दिए जाने के बाद केशूभाई पार्टी के असंतुष्ट धड़े को साथ ले पार्टी को ही तोड़ दें| महागुजरात पार्टी के गोवर्धन झड़पिया से उनकी बढ़ती गलबहियां भी इसी ओर इशारा कर रही हैं| फिर पटेल समुदाय के कद्दावर नेता होने का लाभ भी उन्हें मिलता नज़र आ रहा है| हाल ही में गुजरात में आयोजित पटेल महासभा में पटेलों की एकता ने मोदी को असहज कर दिया था| वैसे देखा जाए तो केशूभाई २००१ में हुए अपमान का बदला लेने हेतु ही मोदी का विरोध कर रहे हैं| उन्हें कहा भी था कि भले ही मोदी को प्रधानमंत्री बना दो किन्तु गुजरात से बाहर निकालो| आखिर उनके कथन के निहितार्थ क्या थे? क्या उनकी बात से ऐसा नहीं लगता कि वे मोदी की नहीं उनकी राज्य में मौजूदगी की मुखालफत कर रहे हैं| उनके आरोपों के अनुसार यदि मोदी इतने ही अहंकारी या तानाशाह हैं तो क्या देश उन्हें बर्दाश्त कर पायेगा? दरअसल केशूभाई ने गुजरात में पार्टी के घर के झगडे को राष्ट्रीय राजनीति से जोड़कर मोदी का कद ही ऊँचा किया है|

चाल, चेहरा और चरित्र का दंभ भरती पार्टी के नेता जब स्वयं ही अनुशासन से इतर सत्ता को धेय्य मानने लगे हों तो विवादों का उभारना स्वाभाविक ही है| चाहे मोदी का मौखिक विरोध हो या पोस्टर द्वारा उनकी छवि को नुकसान पहुंचाने की कवायद; भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अवश्य पशोपेश में नज़र आ रहा है| उसे समझ नहीं आ रहा कि वह किस पर नकेल केस? हाँ, इस विरोध की राजनीति तथा पोस्टरवार से मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के नेताओं की बांछें जरूर खिल गई होंगी| आखिर मोदी की जिस लोकप्रियता की धार को पूरी पार्टी मिलकर कुंद नहीं कर पाई उसे मोदी के विरोधियों ने कुंद करना शुरू कर दिया है| कुल मिलाकर भाजपा में चल रहा पोस्टर वार किसी के हित में नहीं है| इससे मोदी को तो नुकसान हो ही रहा है, पार्टी में मौजूद विरोधी भी अपनी नकारात्मक छवि बनाते जा रहे हैं|

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सिद्धार्थ शंकर गौतम
ललितपुर(उत्तरप्रदेश) में जन्‍मे सिद्धार्थजी ने स्कूली शिक्षा जामनगर (गुजरात) से प्राप्त की, ज़िन्दगी क्या है इसे पुणे (महाराष्ट्र) में जाना और जीना इंदौर/उज्जैन (मध्यप्रदेश) में सीखा। पढ़ाई-लिखाई से उन्‍हें छुटकारा मिला तो घुमक्कड़ी जीवन व्यतीत कर भारत को करीब से देखा। वर्तमान में उनका केन्‍द्र भोपाल (मध्यप्रदेश) है। पेशे से पत्रकार हैं, सो अपने आसपास जो भी घटित महसूसते हैं उसे कागज़ की कतरनों पर लेखन के माध्यम से उड़ेल देते हैं। राजनीति पसंदीदा विषय है किन्तु जब समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारियों का भान होता है तो सामाजिक विषयों पर भी जमकर लिखते हैं। वर्तमान में दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हरिभूमि, पत्रिका, नवभारत, राज एक्सप्रेस, प्रदेश टुडे, राष्ट्रीय सहारा, जनसंदेश टाइम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, सन्मार्ग, दैनिक दबंग दुनिया, स्वदेश, आचरण (सभी समाचार पत्र), हमसमवेत, एक्सप्रेस न्यूज़ (हिंदी भाषी न्यूज़ एजेंसी) सहित कई वेबसाइटों के लिए लेखन कार्य कर रहे हैं और आज भी उन्‍हें अपनी लेखनी में धार का इंतज़ार है।

2 COMMENTS

  1. जब जोशी जी सभी से अपील भी कर चुके हैं; तो महाराज, अंध्रेरे में पोस्टर लगाने वाले चाल बाज़ कांग्रेसी के सिवा और कौन हो सकते हैं?
    यह कांग्रेस की करतूत होने की ही शत प्रतिशत संभावना है।
    केशु भाई को भी आगे कर कर कांग्रेस ही खेल खेलती होगी। भा ज पा के नेताओ में, मानवीय दुर्बलता वश ईर्षा भी काम कर रही हो सकती है।
    इसका अनधिकृत उपयोग भी कांग्रेस और प्रचार माध्यम कर सकते हैं।
    पर चुनाव में चयन दो कम या ज्यादा अच्छे, लोगों के बीच नहीं होता।
    चुनना होता है, दो में से कम बुरा। यह कोई आध्यात्मिक प्रक्रिया नहीं होती। देशके हित में
    चाणक्य को भी कूट नीति अपनानी पडी थी। कृष्ण भगवान ने भी राजनीति खेली थी।
    नरेन्द्र मोदी भारत का स्वर्ण अवसर है।
    इस अवसर को चूकना मूर्खता है।
    राज नीति में कूटनीति भी समझकर चलना पडता है।
    यह स्वर्ण अवसर ना गँवाया जाए।
    गुजरात की उपलब्धियों का बयान ही नहीं, उसका सजीव चित्रण परदे पर दिखाया जाए।
    मैं ने देखा, अहमदाबाद में २४ घंटे पानी मिलता है।जो चाहे देखके आए।
    ऐसी अनेकों उपलब्धियां है। इसी पर लेख लिखा जाए।—परदे पर दिखाया जाए।
    विषय: “गुजरात की उपलब्धियां”

  2. संजय जोशी को अगर मोदी से दिक्कत नही है तो उन्हें स्वयं मीडिया में आकर बात साफ करनी चाहिए

    अगर है तो गडकरी , अडवाणी और सुषमा स्वराज को दखल देना चाहिए … क्युकी जोशी की विदाई कथित तौर पर मोदी की हठधर्मिता या द्वेष हो पर उस पर भाजपा की अग्रणी लोगो की मुहर तो लगी ही है …. कही न कही, भले मन मार के ही सही ये मोदी को प्रधान मंत्री के तौर पर आगे ला रहे है तो उसके राह में आने वाली दिक्कतों का समाधान फ़र्ज़ बनता है ….
    वरना कांग्रेस बिना किसी परिश्रम के भाजपा की इस लड़ाई की मलाई खा लेगी

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