व्यक्तित्व को ढालना है हमारे हाथ

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डॉ. दीपक आचार्य

व्यक्तित्व को ढालना है हमारे हाथ

रचनात्मक बनायें या विध्वंसात्मक

व्यक्तित्व का निर्माण व्यक्ति के अपने हाथ में होता है। इसे वह चाहे जिस साँचे में ढालने को स्वतंत्र है। वंशानुगत संस्कारों, पारिवारिक माहौल, मित्रों के संसार और परिवेश तथा परिस्थितियों आदि सभी प्रकार के कारकों का व्यक्तित्व पर प्रभाव पड़ता है।

इनके मिश्रित और घनीभूत तत्वों का समावेश अपने व्यक्तित्व में होता है जिसका असर हमारे जीवन और व्यवहार के प्रत्येक पहलू पर पड़ता है। हमारे व्यक्तित्व के लिए यही विषय अहम हैं जिनके आधार पर समुदाय, समाज या हमारे सम्पर्क में आने वाले लोग हमारा मूल्यांकन करते हैं और कद नापने की कोशिश करते हैं।

आज लोगों में नकारात्मक भावना बढ़ती जा रही है, जहां देखें वहां विघ्नसंतोषी और असंतोषी लोगों की भारी भीड़ बाढ़ की तरह कूदने-फूदकने और उछाले मारने लगी है। इनका मूल कारण यह है कि व्यक्ति के जीवन का पैमाना और लक्ष्य बदलता जा रहा है।

लोगों में मानवी शुचिता और शुद्धता का अभाव हो गया है और बीज संस्कारों में मिलावट का महारोग लगातार पसरता चला जा रहा है। इस मिलावट और मिश्रण का गहरा असर समाज पर ये हो रहा है कि असली माल समाप्त होता जा रहा है और मिक्स कल्चर और मिक्स आदमी का प्रचलन होने लगा है।

आदमियों की जात में ढेरों आदमी ऎसे देखने को मिलने लगे हैं जिनमें मिक्स्चर कल्चर का प्रभाव है। जहां-जहां मिक्चर कल्चर है वहां-वहां मानवता का कबाड़ा होता जा रहा है। इसी कारण समाज में नैतिक मूल्यों का पतन होता जा रहा है और मानवीय मूल्यों तथा मानवता का ह्रास होता जा रहा है।

आज हमारे आस-पास तथा परिवेश में हर जगह ऎसे-ऎसे लोगों की भरमार है जो नकारात्मक प्रवृत्तियों और विध्वंसात्मक मनोवृत्तियों से भरे हुए हैं। ये लोग मानवता को छोड़ कर शेष सारी वृत्तियों में माहिर हैं, ऎसे ही असंतोषी, विघ्नसंतोषी और नकारात्मक चिंतन वाले लोगों के कारण समाज और देश की तरक्की बाधित हो रही है।

ऎसी बात नहीं है कि ये लोग हाशिये पर हों, बल्कि हकीकत तो यह है कि ये लोग मुख्य धारा में रहकर यह सब कुछ कर रहे हैं। आजकल ऎसे विघ्नसंतोषियों की भरमार हर स्थान पर है और ये लोग हर कहीं अपने-अपने अखाड़ों के साथ वह सब कुछ कर गुजर रहे हैं जिन्हें करना मनुष्य को शोभा नहीं देता।

इस किस्म के लोग एक-दूसरे की स्वार्थ पूत्रि्त में मददगार होते हैं और इस वजह से ‘परस्परोपग्रहोपजीवानाम’ की तर्ज पर काम करने वाले इन लोगों के ऎसे मजबूत संगठन बने हुए होते हैं कि हजार किलो फेविकोल भी इनके आगे फीका पड़ जाए।

ये विध्वंसी मनोवृत्ति वाले लोग भले ही अपने जीवन में कभी शांति और सुकून का अहसास नहीं कर पाएं, मगर इनके जीवन की सबसे बड़ी ख़ासियत यह होती है कि ये दूसरों को भी कभी न सुखी और शांत देखना पसन्द करते हैं, न उन्हें ऎसा रहने देते हैं। इनका हर क्षण इन्हीं षड़यंत्रों में बीतता है कि समाज के अच्छे लोगों को कैसे परेशान किया जाए।

इस विध्वंसी मानसिकता के दो-चार लोग भी किसी बाड़े में मिल जाएं तो फिर उस बाड़े का तभी उद्धार हो सकता है जब बाढ़ में बह जाए या भूकंप में जमींदोज हो जाए। ऎसे विध्वंसात्मक और विघ्नसंतोषी लोगों की जहां मौजूदगी होती है वहां शांति और सुकून का प्रवेश कभी हो ही नहीं सकता बल्कि इनकी मौजूदगी वाले परिसरों और दीवारों तथा कक्षों तक में नकारात्मक माहौल पसरने लगता है जहां किसी को भी अहसास नहीं होता कि यहां मनुष्य रहते हैं।

इसके विपरीत काफी लोग ऎसे होते हैं जिनका हर क्षण रचनात्मक चिन्तन और सकारात्मक मनन में लगा रहता है और यह सब इनके व्यवहार से झलकता भी है। जो लोग नकारात्मक और विध्वंसात्मक या विघ्नसंतोषी हैं उन्हें विघ्नों से भले ही संतोष प्राप्त होने का सुकून प्राप्त हो लेकिन उनकी पूरी जिन्दगी औरों का चिन्तन करते-करते गुजर जाती है और जीवन में क्षणिक शांति या सुकून प्राप्त कर पाते हैं, ऎसे लोगों को दीर्घकालीन शांति और शाश्वत सुख कभी प्राप्त नहीं हो सकती। इनका हर दिन मिथ्या सुख और परायी ईष्र्या से आरंभ होता है और कभी शांति तो कभी उद्विग्नता के साथ समाप्त होता है।

जीवन के लक्ष्य को जानने और आगे बढ़ने के लिए जरूरी है कि सकारात्मक चिंतन किया जाए और उसी के अनुरूप आगे बढ़ा जाए ताकि जीवन में स्थायी, शाश्वत शांति और आत्मीय सुकून प्राप्त हो तथा यह जीवन और आने वाला जीवन भी सुधर सके। वरना तो वह सब होना ही है जो होने वाला है।

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