चारित्रिक सदाचार बनाम व्यक्तित्व सदाचार

लालकृष्ण आडवाणी

पुस्तकों के प्रति मेरे लगाव को जानने वाले मित्र और परिचित अक्सर मुझसे पूछते हैं कि क्या पुस्तकों की ऐसी कोई श्रेणी है जिसे मैं विशेष रूप से पसंद करता हूं। एक समय था जब मैं हल्की-फुल्की पुस्तकें पढ़ना पसंद करता था। उपरोक्त सम्बन्ध में मेरा उत्तर हुआ करता था: थ्रीलर (रोमांचक पुस्तकें)।

लेकिन यदि आज मुझसे यही प्रश्न पूछा जाता है तो मेरा उत्तर है: सेल्फ-हेल्प बुक्स (स्वयं-सहायक पुस्तकें)।

कराची के अपने शुरूआती वर्षों के बारे में बात करते हुए मैं अक्सर अपनी युवावस्था में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक श्री राजपाल पुरी से हुई पहली मुलाकात का स्मरण करता हूं – उन्होंने मुझे डेल कारनेगी की पुस्तक ”हाऊ टू विन फ्रेण्ड्स एण्ड इन्फ्लूअन्स पीपल” भेंट दी थी। वास्तव में वह मेरी सबसे पहली सेल्फ-हेल्प पुस्तक थी। अपनी उस अवस्था में, मैं इससे इतना अधिक प्रभावित हुआ कि इसमें दिए गए उदाहरणों को मैं अनेक बार उदृत करता था। डेल कारनेगी मेरे पसंदीदा लेखक बन गए थे।

पिछले कुछ वर्षों में उसी श्रेणी के एक अन्य लेखक स्टीफन आर. कोव का भी मैं प्रशंसक बना हूं। एक पखवाड़े पूर्व उनका निधन हो गया। उनकी प्रसिध्द पुस्तक ”दि सेवन हैबिट्स ऑफ हाईली इफेक्टिव पीपल” की 38 भाषाओं में 25 मिलियन से ज्यादा प्रतियां बिक चुकी हैं।

स्टीफन कोव की इस विशेष पुस्तक की असाधारण लोकप्रियता उनके द्वारा चारित्रिक सदाचार और व्यक्तित्व सदाचार में किए गए भेद पर आधारित है। आश्चर्यजनक रूप से पुस्तक का उप-शीर्षक है: रिस्टॉरिंग दि करेक्टर एथिक्स।

पुस्तक के पहले भाग में वह उल्लेख करते हैं कि उन्होंने अमेरिका में प्रकाशित, सन् 1776 से लेकर सफल साहित्य का गहराई से अध्ययन किया। उनके अनुसार इस अध्ययन के दौरान उन्हें सफलता सम्बन्धी लेखन का 200 वर्षों का इतिहास जानने को मिला, और उनके ध्यान में ”एक चौंकाने वाला आयाम” उभरता नजर आया कि पिछले 50 वर्षों में लिखा गया सफलता सम्बन्धी साहित्य ‘सतही‘ है।

”इसकी तुलना में पहले 150 वर्षों के लगभग सभी साहित्य का फोकस जिस पर है उसे ‘चारित्रिक सदाचार‘ कहा जा सकता है और जो सफलता, ईमानदारी, विनम्रता, सच्चाई, संयम, साहस, न्याय, धैर्य, उद्यम और विनय जैसी चीजों का आधार है।

”चारित्रिक सदाचार सिखाता है कि प्रभावी जीवन के कुछ आधारभूत सिध्दान्त हैं और लोग सच्ची सफलता तथा स्थायी प्रसन्नता का अनुभव तभी कर सकते हैं जब वे इन सिध्दान्तों को समझकर अपने मूल चरित्र में एकाग्र करना सीख लेते हैं।”

”लेकिन पहले विश्वयुध्द के तुरंत बाद सफलता का मूल विचार चारित्रिक सदाचार से बदलकर, जिसे हम ‘व्यक्तित्व सदाचार‘ कह सकते हैं, हो गया। सफलता व्यक्तित्व के कार्य-कलाप लोक छवि, व्यवहार, प्रवृत्ति, कुशलता और तकनीक जो मानव की पारस्परिक क्रिया को सहज बनाती हैं, से ज्यादा हो गई। इस व्यक्तित्व सदाचार ने मुख्य रूप से दो मार्ग अपनाए: पहला मानवीय और जनसम्पर्क तकनीक वाला, दूसरा सकारात्मक मानसिक प्रवृत्ति। इसका कुछ दर्शन प्रेरक और कभी-कभी वैध उक्तियों जैसे ”आपकी प्रवृत्ति आपकी प्रतिष्ठा को निर्धारित करती है” के रूप में अभिव्यक्त होने लगी। ”भौं चढ़ाने के बजाय मुस्कराहट ज्यादा मित्र बनाती है”, और ”मनुष्य का दिमाग जो भी ग्रहण और विश्वास करता है वह हासिल कर सकता है।”

व्यक्तित्व के अन्य भाग स्पष्ट रूप से चालाकी भरे, यहां तक कि भ्रामक होते हैं, जो लोगों को इसका उपयोग अन्य लोगों पर करने को प्रोत्साहित करते हैं ताकि लोग उन्हें पसंदकर सकें या दूसरों की रूचि में झूठी दिलचस्पी दिखाकर उनसे वे निकाल सकें जो वे चाहते हैं, या ‘पावर लुक‘ का उपयोग जीवन के उनके मार्ग की नकल करें।

इसमें से कुछ साहित्य, चरित्र को सफलता का एक अंग मानता है लेकिन इसे बुनियादी और उत्प्रेरक मानने के बजाय इसको खण्डों में देखना पसंद करते हैं। चारित्रिक सदाचार का संदर्भ अधिकांशतया दिखावटी प्रेम, मूल जोर तुरंत होने वाले प्रभाव की तकनीक, शक्ति, रणनीतियां, सम्प्रेषण कुशलता और सकारात्मक व्यवहार बन जाता है।”

पुस्तक के इस पहले भाग की शुरूआत में दिए गए उध्दरण एक विख्यात शिक्षाविद् और स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के संस्थापक अध्यक्ष डेविड स्टर्र जॉर्डन के हैं, जो इस प्रकार सार रूप में हैं: इस दुनिया में ऐसी कोई असली उत्कृष्टता नहीं है जिसे सही जीवन से पृथक किया जा सके।

सैल्फ-हेल्प पुस्तकों की चर्चा करते समय मैं यह बताना चाहूंगा कि मेरे संस्मरणों की पुस्तक प्रकाशित करने वाले रूपा पब्लिकेशन्स की ओर से मुझे इस श्रेणी में एक विशिष्ट पुस्तक प्राप्त हुई है जो आश्चर्यजनक रूप से एक अग्रणी तमिल फिल्मी अभिनेता के नाम पर है।

124 पृष्ठीय पुस्तक का शीर्षक है RAJNI’S PUNCHTANTRA (रजनी का पन्चतन्त्र)। इस शीर्षक के पिछले वाले शब्द को गलत ढंग से नहीं लिखा गया है, बल्कि ‘यू‘ के बजाय ‘ए‘ जानबूझकर उपयोग में लाया गया है। यह रजनीकांत की फिल्मों से तीस पंचलाइनों (संवादों) का संकलन है जिसे इस पुस्तक के दो लेखकों (दोनों प्रबन्धन क्षेत्र से हैं) ने तैयार किया है।

पुस्तक का उप शीर्षक है: ”बिजनेस एण्ड लाईफ मैंनेजमेंट दि रजनीकांत वे” (Business and Life Management the Rajinikanth way)। पी.सी. बालसुब्रमण्यम भारत की अग्रणी वेरीफिकेशन कम्पनी मेट्रिक्स बिजनेस सर्विसेज इण्डिया के संस्थापक निदेशक हैं। उनके सहयोगी लेखक राजा कृष्णामूर्ति, चेन्नई स्थित मानव संसाधन सर्विसेज संगठन ‘टेलेंट मेक्सिक्स इण्डिया के एक निदेशक हैं।

पुस्तक की प्रस्तावना में पी.सी. बालासुब्रमण्यम लिखते हैं:

”इतिहास में कभी कभार ऐसा होता है जब किसी का संदेश आशा का संचार करता है, किरण चमकाता है और समूची मानवता को ऊर्जा प्रदान करता है। अकेला संदेश नहीं अपितु किसने कहा, कैसे और कब – यह भी महत्वपूण्र् है। अक्सर वे संदेश सरल और सहज होते हैं; फिर भी जिस व्यक्तित्व द्वारा बोले हैं उससे यह चैतन्य और शक्तिशाली रूप में उदय होते हैं। वे महत्वपूर्ण, बहुस्वीकार्य होने के साथ-साथ लोगों की स्मृति में अंकित हो जाते हैं। ऐसा ही रजनीकांत के साथ है। उनके संवादों ने मुझ पर इतना गहरा असर किया कि उनको पुस्तक रूप में लाना मेरा मिशन बन गया।”

अपनी पीढ़ी के अधिकांश लोगों की तरह ही मैं भी रजनीकांत की फिल्मों – उनमें नया कुछ नहीं है, को देखते हुए बड़ा हुआ हूं। लेकिन परिपक्व होने के साथ ही अनेक किशोरीय जुनूनों की भांति मैं उनकी संवादों के सम्मोहन से ऊपर नहीं उठ पाया हूं। जैसे-जैसे मैं बड़ा हो रहा हूं, और आशा है कि समझदार भी – मैं उनके अर्थों में अपने को गहराई से सिक्त महसूस करता हूं। उन्होंने मुझ पर और बहुत से अन्यों पर भी जो प्रभाव छोड़ा है, वह अनूठा है।

एक कुली से सीईओ, एक छोटे उद्यमी से एक बड़े उद्योगपति, एक अनाथ बच्चे से एक स्नातोकोत्तर, एक नौकर से एक एक्टिविस्ट, प्रेमी से सहोदर, पति से ससुर – मैंने देखा है कि ‘रजनी के संवाद‘ सभी में गहन जीवतंता भर देते हैं, अक्सर आंखों में चमक भर आती है, एक सहमति की हामी और स्वीकृति की एक मुस्कान दिखती है। वक्तव्य उन्हें छू लेते हैं और सदैव उनके भीतर बस जाते हैं।

टेलपीस (पश्च्यलेख) 

रजनी पंचतंत्र से कुछ पंचलाइनें निम्न हैं:

पहला: फिल्म शिवाजी में यह एक पंचलाइन सुनने को मिलती है: ”पेर केटावुडने चुम्मा अधिरूथिलिए”

इसका अर्थ है: ”उनके नाम से ही कंपकंपी छूट जाती है।

लेखकद्वय कहते हैं कि यह प्रभावशाली कीमती वक्तव्य ब्रांड्स और ब्रांड्स इक्विटी की सुरक्षा के महत्व को दर्शाता है।

दूसरा, अन्नामलाइ फिल्म से यह संवाद लिया गया है: नान सोल्राथइलम सेयवेन सोल्लाथाथीलम (मैं जो कहूंगा वह करूंगा भी; जो मैं नहीं भी कहूंगा वह भी करूंगा)

लेखकों की टिप्पणी है:

किसी व्यक्ति के जीवन की सच्ची सफलता, हासिल करने की उसकी प्रतिबध्दता के अनुपात में किए गए वायदों से ज्यादा अपेक्षाओं और शिखरीय उत्कृष्टता होती है।

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