देश की दस लाख से ज्यादा आशा वर्कर हडताल पर,चरमराई स्वास्थ्य सेवाएं-

0
170

17 अगस्त तक का है हडताल का नोटिस, मांगे पूरी नहीं हुई तो लंबी चलेगी हडताल –

दो हजार के मासिक मानदेय पर कार्य कर रही है देश की कोरोना योद्धाएं–
कोविड-19 की जांच व टीकाकरण हो रहा है प्रभावित

भगवत कौशिक । आज पूरा विश्व जहाँ कोरोना महामारी की चपेट हैं है,पूरे विश्व मे तराही तराही मची हुई है।ईटली जैसे अत्याधुनिक स्वास्थ्य सेवाओं से लैश देश ने भी जहां कोरोना महामारी के आगे घुटने टेक दिए।उसी कोरोना काल मे स्वास्थ्य सेवाओं के मामले मे हमेशा से पिछडापन का शिकार हमारे देश की यदि 10 लाख से ज्यादा स्वास्थ्य कर्मी यदि हडताल पर चली जाए तो उस देश का क्या हाल होगा यह बताने की जरूरत नहीं पडेंगी।हम बात कर रहे है देश कि देश की दस लाख ‘पैदल सेना’ जो कोरोना के विरुद्ध युद्ध लड़ रही है। कोरोना महामारी में जब हर तरफ लॉकडाउन था, लोग घरों में थे तब कुछ गुमनाम वॉरियर गली, मोहल्ले से लेकर गांव-शहर में दिन के धूप में कोरोना के संक्रमित को ट्रैक कर रहे थे, नाम है ,” एक्रेडिटेड सोशल हेल्थ एक्टिविस्ट” मतलब “आशा वर्कर”।
माहमारी से लड़ती इस गुमनाम “कोरोना वॉरियर्स” को अबतक न तो सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिला है, न ही निर्धारित मानदेय। इन्हें कोविड-19 से जंग में बेहतर सुरक्षा के उपकरण भी नहीं मिले हैं। अपनी मांगो की ओर ध्यान दिलाने के लिए देश की अग्रिम पंक्ति कि ये कोरोना यौद्धा 7 अगस्त से हडताल पर है,जो 17 अगस्त तक प्रस्तावित है।यदि सरकार ने इन आशा वर्करो की मांगो को नहीं माना तो हडताल लंबी खींच सकती है।जिसके कारण देशभर मे स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई है।कोविड 19 की जांच की प्रक्रिया बाधित है तो    कही टीकाकरण प्रभावित है,तो कही डेंगू मलेरिया अभियान ।
■ कौन है आशा वर्कर —
आशा वर्कर्स को 2005 में लॉन्च किए गए, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनएचआरएम) के तहत भर्ती किया गया था। वो जन स्वास्थ्य सेवा और लोगों के बीच एक पुल का काम करती हैं, और आमतौर पर उनका काम होता है- जन्म से पहले और बाद में नवजात की देखभाल, टीकाकरण के लिए लोगों का प्रोत्साहन, परिवार नियोजन और बुनियादी बीमारियों का इलाज।
■ कोविड-19 मे निभा रही है योद्धा की भूमिका —
स्वास्थ्य विभाग की पहली सुरक्षा घेरा रही ये आशाएं कोविड-19 के दौरान  ये आशाए गाँव में कितने लोग दूसरे राज्यों से आये हैं, किसे खांसी-जुखाम, बुखार है, कितने लोगों की कोविड-19 की जांचे हुई हैं या होनी हैं? क्वारेंटाइन हुए लोगों का 14 दिनों तक फालोअप करना, सर्वे करना जैसे कई काम कर रही हैं। ये घर-घर जाकर लोगों को सही तरीके से हाथ धुलने, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करवाने और मास्क लगाने के फायदे भी बताती हैं।गली, मोहल्ले से लेकर गांव-शहर में, भरी दोपहरी में कोरोना के संक्रमितों को ट्रैक करने में मे भी आशा वर्करो का अहम योगदान है।
■ आशा वर्करों का वेतन व कार्य समयावधि —
आशा वर्कर सुबह 7 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक कार्य करती है ,वहीं डिलीवरी व अन्य महत्वपूर्ण अभियानों मे तो आधी रात तक इनको कार्य करना पडता है। इसके बावजूद इन आशा वर्करो को वेतन के नाम पर केवल 2 हजार रूपये का मासिक मानदेय दिया जा रहा है।कही जगह तो वो भी कई महिनो से नहीं मिला है।
■आशा वर्करों की मुख्य मांगे–
 ● गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सुविधाएं  प्रदान करने के लिए सरकारी स्वास्थ्य के ढांचे को मजबूत किया जाए।
 ●एनएचएम को स्थायी किया जाए।
 ● आठ एक्टिविटी का काटा गया 50 फीसद भी तुरंत वापस लागू किया।
 ●कोविड-19 में काम कर रही आशाओं को जोखिम भत्ते के तौर पर 4 हजार रुपये दिए जाए।
● गंभीर रूप से बीमार एवं दुर्घटना की शिकार आशाओं को सरकार के पैनल अस्पतालों में इलाज की सुविधा दी जाए।
● आशाओं को सामुदायिक स्तरीय स्थाई कर्मचारी बनाया जाए।
● जब तक उन्हें पक्का कर्मचारी नहीं बनाया जाता तब तक सरकार द्वारा न्यूनतम वेतन दिया जाए।
● आशा वर्करों को ईएसआइ एवं पीएफ की भी सुविधा देने हेल्थ वर्कर का दर्जा दिया जाए।
 ●21 जुलाई 2018 को जारी किए गए नोटिफिकेशन के सभी बचे हुए निर्णय को लागू करने की भी मांग की गई है।
■आशा वर्करों की संख्या – 
यदि हरियाणा प्रदेश की बात करे तो बीस हजार से ज्यादा की संख्या मे आशा वर्कर कार्यरत है ।जिनमे शहरों मे इनकी संख्या 2586 तथा ग्रामीण क्षेत्रों मे इनकी संख्या 17682 है। वहीं दिल्ली मे 6000 ,पंजाब मे 21500 तथा कर्नाटक मे आशा वर्करो की संख्या 40000 के करीब है। पूरे देश मे लगभग दस लाख आशा वर्कर कार्य कर रही है।

 देश के अलग-अलग राज्यों में इन आशा कार्यकर्ताओं को अपनी मांगों के लिए एक बार फिर हड़ताल करने के लिए मजबूर होना पड़ा। पूरे देश मे स्वास्थ्य विभाग की ये अगुवा कोरोना योद्धा अपनी मांगों को लेकर अलग-अलग तरीके से प्रदर्शन कर सरकार के रवैए पर रोष जता रही हैं।देश में चल रहे आशा कार्यकर्ताओं का धरना प्रदर्शन कोई नई बात नहीं है। ये अपनी मांगों को लेकर हमेशा से रोष जताती आयी हैं, पर हर बार सरकार ने इन्हें अनदेखा किया है। ये आशाएं हर आपदा में स्वास्थ्य विभाग के लिए अहम कड़ी रही हैं पर राज्य सरकारें हमेशा इन आशा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा में असफल रही हैं। चाहें इनके मानदेय की बात हो या फिर काम करने के घंटों की, या फिर सरकारी कर्मचारी का दर्जा मिलने की, इसे हमेशा से अनदेखा किया गया है।सरकार को जल्द से जल्द आशा वर्करो की की मांगो को पूरा करना चाहिए।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here