गरम तवे पर रोटी जैसी, हर दिन सिकती रहती मां|
फिर भी मटके के जल जैसी ,शीतल दिखती रहती मां|
चेहरे पर मुस्कान बिखेरे ,खिल खिल हँस भी लेती है,
बिना कोई दुख दर्द बताये ,सब कुछ सहती रहती मां|
सर्कस के तंबू में जैसे, इस झूले से उस झूले,
घर में किसी फिरकनी जैसी, हर पल फिरती रहती मां|
रात गये तक सबकी चिंता, दिन ऊगा तो बस सेवा,
बिना थके घर के नौकर सी, दिन भर खटती रहती मां|
चट्टानों सी खड़ी मुसीबत ,भले सामने दिखती हो,
फिर भी ठंडी बूंद बूंद सी ,पल पल झरती रहती मां|