मोतीलाल – आपने नाम सुना है न मोतीलाल का ? किसी ज़माने में वह हिन्दी फि़ल्मों के सर्वाधिक लोकप्रिय कलाकार थे, और वैसे भी लोगों का ख़याल है कि अभिनय-कला के जिस सर्वोच्च शिखर को अनजाने ही उन्होंने छू लिया था वहां तक पहुंच पाना आज भी किसी के लिये सहज-संभव नहीं. मिस्टर सम्पत … देवदास … जागते रहो … परख … ये रास्ते हैं प्यार के जैसे चित्रों को याद कीजिए. आप भी इस मत के हैं न कि उन भूमिकाओं में मोती के अलावा कोर्इ भी दूसरा अभिनेता उपयुक्त नहीं हो सकता था — भरपूर कोशिशों के बाद भी.
कहा जाता है कि मोती अभिनय नहीं करते थे, अभिनय की भूमिका को अपने में आत्मसात कर जाते थे वह. इसी से आप उनकी किसी भी फि़ल्म को याद कीजिए, आपको ऐसा लगेगा जैसे उस कहानी का जीवित पात्र आपकी आंखों के सम्मुख उपसिथत हो गया हो आकर. मोती स्वयं इसका कारण नहीं समझ पाते थे – या शायद यह फिर उनकी विनम्रता रही हो.
लेकिन अपने अभिनय जीवन के प्रारंभ की उस घटना को आजीवन विस्मृत नहीं कर पाये थे वह. फि़ल्म का नाम भी नहीं याद रह पाया था उनको, न उसके निर्माता-निर्देशक का अतापता, लेकिन उस फि़ल्म के निर्माण के मध्य जिस छोटी सी घटना के माध्यम से उन्हें जीवन के सबसे बड़े सन्तोष की प्रापित हुर्इ थी वह जीवन के अंत तक उनकी आंखों में तैरती रही. कोशिश करने पर भी उसे भूल सकना शायद उनके लिये संभव ही नहीं हो पाया कभी.
बम्बर्इ के बोरीबन्दर के सम्मुख वह उस चित्र की शूटिंग कर रहे थे. भूमिका थी जूतों पर पालिश करने वाले एक आदमी की. फटे-पुराने कपड़े, बढ़ी हुर्इ डाढ़ी-मूंछें, धूलधूसरित हाथ-पैर और आंखों में एक दारूण दैन्य – पालिश करने वाले उस पात्र का जैसे पूरा रूप उजागर हो गया हो उनके माध्यम से. तभी उनको एक परिचित वृद्ध दिखायी दे गये – और यह जानते हुए भी कि वह मात्र अभिनय है, मोती के लिये उनकी आंखों से आंख मिला पाना मुमकिन नहीं हो पाया उस वक्त.
लेकिन वह सज्जन मोती के पास पहुंच चुके थे तब तक और मोती को उनकी ओर मुखातिब ही होना पड़ा. देखा – उन बुज़ुर्ग की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे. और अपने उन्हीं आंसुओं के मध्य वह मोती से कहते जा रहे थे — अभी तो मैं जि़ंदा हू बेटा. मेरे पास तुम क्यों नहीं आये आखि़र – जैसे भी होता हम लोग मिलजुल कर अपना पेट पाल लेते. यह नौबत आने ही क्यों दी तुमने? ……
और मोती कुछ भी नहीं बोल पाये थे उस वक्त – अपनी सफ़ार्इ दे पाना भी संभव नहीं लग पा रहा था उनको. लेकिन उस घटना को मोती आजीवन अपनी अभिनय-प्रतिभा का सबसे बड़ा प्रमाणपत्र मानते रहे, और जब कभी उसकी याद उनको आती थी उनकी आंखों से झरझर आंसू बहने लगते थे.