चुहिया रानी

बिल से निकली चुहिया रानी,

लगी चाल चलने मस्तानी|

बोली मैं हूँ घर की मुखिया,

दुनिया है मेरी दीवानी|

मेरी मर्जी से ही मिलता,

सबको घर का राशन पानी|

मुझसे आकर कोई न उलझे,

पहलवान है मेरी नानी|

तभी अचानक खिड़की में से,

आ धमकी बिल्ली महारानी|

डर के मारे बिल में घुस गई<

वीर बहादुर चुहिया रानी|

 

Previous articleचांद पे बुढ़िया रहती क्यों है
Next articleकुशल वैद्य होते हैं बच्चे
प्रभुदयाल श्रीवास्तव
लेखन विगत दो दशकों से अधिक समय से कहानी,कवितायें व्यंग्य ,लघु कथाएं लेख, बुंदेली लोकगीत,बुंदेली लघु कथाए,बुंदेली गज़लों का लेखन प्रकाशन लोकमत समाचार नागपुर में तीन वर्षों तक व्यंग्य स्तंभ तीर तुक्का, रंग बेरंग में प्रकाशन,दैनिक भास्कर ,नवभारत,अमृत संदेश, जबलपुर एक्सप्रेस,पंजाब केसरी,एवं देश के लगभग सभी हिंदी समाचार पत्रों में व्यंग्योँ का प्रकाशन, कविताएं बालगीतों क्षणिकांओं का भी प्रकाशन हुआ|पत्रिकाओं हम सब साथ साथ दिल्ली,शुभ तारिका अंबाला,न्यामती फरीदाबाद ,कादंबिनी दिल्ली बाईसा उज्जैन मसी कागद इत्यादि में कई रचनाएं प्रकाशित|

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here