चलती फिरती जेल या अँधा-इंसाफ़ ?

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डॉ. मधुसूदन

चार चार बेगमों का, हक  मर्दों को.
और चलती-फिरती जेल,*बेगम को .

मूँद कर आँख  इक रोज़ बेगम बन जा.
पहन कर बुरका ज़रा संसद* हो आ.

अण्डे* से  बाहर निकल कर देख.
आँखों से, हरा चष्मा उतार कर देख.
(अण्डा= दकियानूसी रुढियाँ)

बुरका नहीं, है ये,  चलती फिरती जेल है;

हिम्मत  है,  चंद  रोज़  पहन के देख!

माँ बहनों को, इतना  भी क्यों सताया?
मर्द, तेरा  इन्साफ़ है, अधूरा देख.

किसे कहें? किस  कठ पुतली से  कहें?
वो, ही जो नीलाम करती है वोटों को ?
{ मुल्ला मौलवी और सुधार के विरोधी )

कब की  पहुँच चुकी  है, चाँद तक ये दुनिया .
तू इक्किसवी सदी में ,  झाँक कर तो देख.

कब तक रहें कुढते ?छठवी सदीमें सडते?
दुनिया से  ले के पंगा, कब तक रहेंगे  लडते?

कानून की  हे देवी, सचमुच  तू अंधी होगी;
पट्टी  गर खोल  दोगी  तो ? त्यागपत्र  दोगी.

—————————— —————-
( चलती-फिरती-जेल*= बुरका. )
(संसद* = राजनीतिज्ञों का अड्डा)

(अण्डा= दकियानूसी रुढियाँ)
खाडी देशों से आयी एक महिला के
अनुरोध पर कविता.
उस ने यहाँ बुरका त्यज दिया.
सूचना:किसी के द्वेष से प्रेरित नहीं यह कविता.

6 COMMENTS

  1. Very good poem!
    Here is a Roman transliteration that restores the beauty of Devanagari script.

    Chalatī Phiratī Jel Yā a̐dhā-ïsāf̣ ?

    Chār chār begamȯ kā, hak mardȯ ko.
    aur chalatī-phiratī jel,*begam ko .
    mū̐d kar ā̐kh ik roj̣ begam ban jā.
    pahan kar burakā j̣arā sȧsada* ho ā.
    aṇḍe* se bāhar nikal kar dekha.
    ā̐khȯ se, harā chaṣmā utār kar dekha.

    Burakā nahī̇ , hai ye, chalatī phiratī jel hai;
    himmat hai, chȧd roj̣ pahan ke dekh!
    mā̐ bahanȯ ko, itanā bhī kyȯ satāyā?
    mard, terā insāf̣ hai, adhūrā dekha.
    kise kahė ? kis kaṭh putalī se kahė ?
    vo, hī jo nīlām karatī hai voṭȯ ko ?

    Kab kī pahu̐chukī hai, chā̐d tak ye duniyā .
    tū ikkisavī sadī mė , jhā̐k kar to dekha.
    kab tak rahė kuḍhate ?chhaṭhavī sadīmė saḍate?
    duniyā se le ke pȧgā, kab tak rahėge laḍate?
    kānūn kī he devī, sachamuch tū ȧdhī hogī;
    paṭṭī gar khol dogī to ? tyāgapatr dogī.

    https://www.youtube.com/results?search_query=hinduphobia+rajiv+malhotra

  2. बुर्के में इस्त्रीया चलती फिरती तम्बू जैसी लगती हैं.
    नारी एक बहन माँ बेटी भी होती हैं लेकिन इस्लाम में नारी को तो केवल एक भोग की बस्तु समझा जाता हैं इस्लाम में माँ बहन और बेटी का भी कोई सम्मान नहीं हैं। इस्लाम में लोग अपनी सौतेली माँ बहन से भी विवाह कर लेते हैं।
    इस्लाम में इस्त्रीयो को पढ़ाई करने का अधिकार नहीं हैं। हिन्दू धर्म में नारियो का बहुत सम्मान हैं। और उन्हें देविओ का दर्जा प्राप्त हैं.
    हिन्दू लड़कियों को मुसलमानो से कभी विवाह नहीं करना चाहिए। इस्लाम में महिलाओं को किसी किसी प्रकार की कोई सोचने और कार्यवाही करने की स्वंतंत्रता नहीं है
    डॉ. मधुसूदन जी ने अपनी कविता द्वारा मुस्लिम महिलाओ की स्थति का अच्छा चित्रण किया हैं.

  3. चलता फिरता तम्बु
    बुर्के में इस्त्रीया चलती फिरती तम्बू जैसी लगती हैं.
    नारी एक बहन माँ बेटी भी होती हैं लेकिन इस्लाम में नारी को तो केवल एक भोग की बस्तु समझा जाता हैं इस्लाम में माँ बहन और बेटी का भी कोई सम्मान नहीं हैं। इस्लाम में लोग अपनी सौतेली माँ बहन से भी विवाह कर लेते हैं।
    IT IS NOW COMES OUT THAT ‘ Someone has given example on this topic – AKBAR THE GREAT HAD, AMONG OTHERS HIS MOTHER AS WIFE.”OBVIOUSLY OTHERS TOO. SHAHJAHAN HAD HIS LIFE LONG COMPANION HIS DAUGHTER JAHANARA – From: bhagwat goel -bhagwatgoel2000@yahoo.co.in; January 29, 2018, इस्लाम में इस्त्रीयो को पढ़ाई करने का अधिकार नहीं हैं। हिन्दू धर्म में नारियो का बहुत सम्मान हैं। और उन्हें देविओ का दर्जा प्राप्त हैं.
    डॉ. मधुसूदन जी ने अपनी कविता द्वारा मुस्लिम महिलाओ की स्थति का अच्छा चित्रण किया हैं.

  4. WHEN OUR HINDU WRITER , HINDU LEADERS , HINDU WOMEN WILL FIGHT AND WILL FREE THESE HINDU GIRLS WHO HAVE CONVERTED TO ISLAM AND LIVING LIKE SLAVES OR IN WALKING JAILS . WHERE IS THE DNA OF LAXMI BAI AND DURGA IN THEM .
    WHY HINDUS WATCH THIS INJUSTICE AND DO NOTHING . WHY THESE CONVERTS AFTER FREEDOM STILL LIVE IN JAILS .

    • मै श्री मधुसूदन जी के विचारो से सहमत हूँ,पर लिखने से काम नहीं चलेगा पर इसके साथ साथ समाज में भी परिवर्तन में लाना होगा ओर कानून लाना होगा ओर उसे सख्ती के साथ भी लागू करना होगा| इसके साथ साथ मुस्लिम महिलाओ को भी साथ लेना होगा उनकी पीड़ा ओर कठिनाइयो को समझना होगा ,उनकी हर मुसीबत में इन महिलाओ का साथ देना होगा तभी कुछ सुधार हो सकता है,अन्यथा इस प्रकार की रीति रिवाज ओर बुरका परस्थी चलती रहेगी.मैंने भी इस सम्बन्ध में कुछ लेख व कविताएं लिखी है पर कुछ पत्रिकाओ व अखबारों ने छापने से इन्कार
      कर दिया है ऐसे पारिस्थिति में लेखक लोग भी क्या करे|

      आर के रस्तोगी

      • रस्तोगी जी–धन्यवाद. विषय आलेख का है. टिप्पणी का नहीं. क्या आलेख दे सकते हैं? —->
        मेरी संक्षिप्त सोच:
        निम्न बिन्दुओं को, ठीक ध्यान से पढने और विचारने का अनुरोध है.
        सामान्यतः (१) परम्परा बदलना सारे प्रवाह की दिशा बदलना होता है. एक अकेली कृति से सम्भव नहीं होता. (२) पर कृति से ही प्रारंभ(?) हो सकता है. (३) क्योंकि, परम्परा के सारे घटक परस्पर एक दूजे में अटके होते हैं. (४) इस्लाम में (सुधार ही कुरान(?) के अनुसार मना ही हैं) पर, फिर भी, आज बाह्य कारणों से कुछ छुट पुट जागृति दिखाई (भी) देती है. कुछ आलेख मुस्लिम विद्वानों के इसी प्रवक्ता में आप देख पाएंगे. (५)आज इस्लाम में ही सुधारवादी तत्व जाग रहे हैं. बुरका भी आज कुछ कम ही दिखाई देता है. Islamic Reforms पर गुगल पर खोजिए. पता चलेगा.
        —–> (६) Survival of the fittest ही प्रकृति का स्थूल नियम है.
        समय के साथ बदलने की ज़रुरत इस्लाम को है. ऐसी सर्वाइवल के लिए Adopt and Adapt दोनो अगर इस्लाम करेगा तो दीर्घ काल के लिए टिक जाएगा.
        (७) अद्यतनता, नित्य नूतनता, सनातनता, और चिरन्तनता साथ साथ चलती है. सनातन धर्म इसी लिए सनातन बना रहता है. उत्क्रान्ति शीलता ही प्रकृति का नियम है.(८) सभी के साथ लडनेवाले इस्लाम को ही (अ) या तो बदलना होगा, तो विश्वकी बिरादरी में टिक पाएगा. (आ) और यदि नहीं बदला तो उसके शत्रु ही अधिक हो जाएंगे.आज क्षितिजपर ऐसा दिखाइ दे रहा है.
        ———————————————
        कविता एक अंश है. एक सुनारकी ही कही जा सकती है.
        यह बदलाव लाना बुद्धिमान इस्लामी विद्वानों का काम है.
        जैसे पुणे का सत्य शोधक मण्डल, और तारेक फतेह या तसलिमा नसरीन —
        ये लोग भी प्रहार कर ही रहे हैं. समग्र इस्लाम को टिकने के लिए बदलने की कडी ज़रुरत है.
        ==> कवि (वह भी हिन्दू)मात्र दिशा संकेत कर सकता है.
        लिखने में मोडरेशन होना चाहिए. तो स्वीकार होने की सभावना बढ जाती है.
        सम्पादक की कुर्सी में बैठकर सोचिए —अनुमान हो जाएगा.

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