श्री महान …………. जी

मनीष अरजरिया

सूत्रधार :- तो भाइयों और बहिनों , हमारे प्रधानमंत्री ने अफ़सोस जताया है कि वे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से लड़ने और उन्हें चित्त करने में अक्षम है. यानि कि वे उतने ही मजबूत है जितना कि भ्रष्टाचारी उन्हें मजबूत रखना चाहते है . और उतने ही कमजोर है जितना कमजोर उन्हें भ्रष्टाचारी रखना चाहते है .हमारे मजबूत लोकतंत्र की सच्चाई यही है कि सत्ता कमजोर करती है ज्यादा सत्ता ज्यादा कमजोर करती है . कल तक जनता की खातिर जान कि बाज़ी पर खेल जाने की बात कहने वाले सारे धुरंधर भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना सर अपनी टांगो में घुसाए नजर आ रहे है .

विदूषक :- तो क्या हुआ जो हमारे प्रधानमंत्री ने अफ़सोस जता दिया कि वे भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियो से लड़ने और उन्हें चित्त करने में अक्षम है. आखिर सक्षम कौन रहा है? वे बिचारे तो अपनी नालायक संतानों से इतने परेशान है कि उनके किये पर सफाई देते नही कि नया कांड सामने आ जाता है .अब तो कांड ढांकने के लिए चादरे भी छोटी पड़ने लगी है .

हिन्दुस्तानी :- काश ! ऐसा बाप सबको मिले जो अपनी औलादों खातिर इतना कुछ कर सकता है . अब तो लगता है कि उनका पूरा बुढ़ापा अपनी औलादों के महान प्रदर्शन पर सफाई देते बीतना है .

हिंदुस्तान :- यदि संप्रग सरकार आम आदमी कि सरकार है तो यकीनन प्रधानमन्त्री ने वही काम किया है जो देश कि सुविधाभोगी राजनीति और सुविधाभोगी मीडिया को जमता है ,काम कि बजाये काम का दिखावा ही हमारी शैली है . प्रधानमन्त्री और उनके चारण-गवैये पत्रकारों ने

तो आम आदमी को यही संदेश दिया है कि – सीधे सादे प्रधानमन्त्री से इससे ज्यादा की उम्मीद न करे .

विदूषक :- लेकिन हुजूर कुछ लोगो ने थोडा बहुत खा लिया तो क्या गजब हो गया ? आखिर खाने वाला भी आदमी है और खिलने वाला भी तो आदमी है .

हिंदुस्तान :- मगर खाया जाने माल भी तो आदमी है .लोग क्यों भूलते है कि अगर कोई एक जरूरत से ज्यादा खता है तो किसी न किसी को अपना पेट काटना पड़ता है . बेहिसाब खर्च करना अय्याशी नहीं अपराध है , ये समाज के आखिरी छोर पर खड़े आदमी के प्रति अपराध

है.

सूत्रधार :मगर जिन्होंने खा पचा कर हल्ला गुल्ला मचाना शुरू किया है उन्हें चुप कराने के वास्ते थोड़ी बहुत करवाई तो उन्हें करनी ही चाहिए .

विदूषक :- करवाई तो उन्होंने कर तो दी है . कुछ जेल जाकर कसमसा रहे है तो कुछ जेल जाने के लिए कसमसा रहे है . जेलयात्रा का रिकॉर्ड राजनीति में हर हाल में अच्छा ही समझा जाता है . न हो तो लालूजी से पूछ लीजिये .

हिन्दुस्तानी :- मुझे समझ में नही आता कि जब भ्रष्टाचार सामूहिक साझेदारी है तो फिर क्यों अलग अलग होकर एक दूसरे पर कीचड़ उछालते है .प्रधानमन्त्री ने तो लगभग अपील कर ही दी है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता ज्यादा बड़ी करवाई की उम्मीद न करे.

हिंदुस्तान :- जब मनमोहन सिंह पहली बार प्रधानमन्त्री बने थे तो आम मध्यमवर्गीय लोगों के प्रतीक पुरुष के रूप में देखे गये थे . नैतिक तौर पर मजबूत छवि वाले ऐसे व्यक्ति जो आगे बढ़ते भारत के लिए सबसे बेहतर मुखिया साबित होते . पिछले कार्यकाल अमेरिका से परमाणु संधि करके उन्होंने ये साबित भी किया था . पर अब जिस तरह भ्रष्टाचार के सामने नतमस्तक हो रहे है उससे क्या साबित हो रहा है ? जिस तरह परमाणु सौदे के मसले पर उन्होंने शहीदाना अन्दाज में अपने पद को दांव पर लगाया था क्या अब वे भ्रष्टाचार के मुद्दे पर अपना पद दांव पर लगाएँगे ? ईमानदार और मजबूत प्रधानमन्त्री से यह नैतिक प्रश्न कोई ठोस उत्तर मांग रहा है .

1 COMMENT

  1. प्रधानमंत्री से कोई भी प्रश्न करने का नैतिक आधार केवल राजमाता सोनिया जी के पास सुरक्षित है किसी आम हिन्दुस्तानी को नहीं

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