‘मिसेज सिंह और मिस्टर मेहता’ में सेक्स का तड़का

– डॉ. मनोज चतुर्वेदी

‘मिसेज सिंह और मिस्टर मेहता’ में सेक्स दृश्यों को देखकर ऐसा लगता है कि विवाहेत्तर यौन संबंधों पर केंद्रित फिल्मों के प्रदर्शन में निर्देशक प्रवेश भारद्वाज को महारत हासिल है। मसाला फिल्मों का एकमात्र लक्ष्य युवा पीढ़ी में यौन उत्कंठा को जागृत करके फिल्म का व्यावसायिक इस्तेमाल करना होता है क्योंकि सिनेमा हॉल में फिल्मों का आनंद लेने वाले 80 से 85 प्रतिशत युवा ही होते हैं। समाज में महिलाओं के प्रति क्रूरता, छेड़खानी, छीटाकशी तथा अभद्रता के जड़ में इन्हीं की प्रमुख भूमिका है। इस वक्त भारतीय समाज में फैली हुई कुरीतियों के उन्मूलन को सार्थक सिनेमा की आवश्यकता है पर यह माहौल कम ही दिखाई पड़ता है। कारण यह है कि हर क्षेत्र में व्यवसायीकरण का होना।

करण सिंह (नावेद असलम) तथा नीना सिंह (अरुणा शील्ड) लंदन में रह रहे हैं। करण सिंह (नावेद असलम) अपनी खूबसूरत पत्नी नीना सिंह (अरुणा शील्ड) पर पहले तो सबकुछ न्यौछावर करने को तैयार रहता है लेकिन जब उसके जीवन में सखी मेहता (लकी हसन) जो उसी की कंपनी में काम करती है, के साथ चक्कर चलता है तो वह झूठ बोलकर बार-बार विदेश में जाता है तथा वहां रंगरेलियां मनाता है। सखी मेहता (लकी हसन) तथा अश्विन मेहता (प्रशांत नारायण) जो एक पेंटर है लेकिन उसे अपनी पत्नी से विवाहेत्तर संबंधों पर आपत्ति नहीं है। इस बीच अश्विन मेहता (प्रशांत नारायण) तथा नीना सिंह (अरुणा शील्ड) भी विवाहेत्तर यौन संबंध स्थापित करने लगते हैं। क्या हम फिल्मों में सेक्स का तड़का लगाकर ही सफलता प्राप्त कर सकते हैं? या और भी कुछ करके। यह ठीक है कि अरुणा शील्ड ने कहानी की मांग को दृष्टिगत रखते हुए ‘मर्डर'(मल्लिका शेरावत), ‘जिस्म'(विपासा बसु) ‘जूली'(नेहा धुपिया), ‘चमेली बाई’। 90 के दशक से अबतक के फिल्मों को देखने पर लगता है कि सेक्स, रहस्य-रोमांस तथा अपराध ही इनके मुख्य विषय है। इस दृष्टि से फिल्म कोई विशेष प्रभाव तो नहीं छोड़ पाएगी।

फिल्म का संगीत तथा निर्देशन मध्यम कोटि का है तथा कहानी भी विशेष रूप से दर्शकों को बांध नही पाएगी। कुल मिलाकर यह फिल्म दर्शकों को बांधने में विफल ही साबित होगी। हां, कुछ भ्रमित युवा जरूर यौन आनंद हेतु देखने आ सकते हैं।

कलाकार ः नावेद असलम, प्रशांत नारायण, अरुणा शील्ड और लक्की हसन। संगीत ः सुजात हुसैन खान। निर्माता ः मनु कुमारन। निर्देशक ः प्रवेश भारद्वाज

* लेखक पत्रकार, फिल्म समीक्षक, कॅरियर लेखक, समाजसेवी तथा नवोत्थान लेख सेवा, हिन्दुस्थान समाचार में कार्यकारी संपादक तथा ‘आधुनिक’ सभ्यता और महात्मा गांधी ‘ पर डी. लिट्. कर रहे हैं।

3 COMMENTS

  1. डी.शर्माजी ,आपने सही लिखा की क्या केवल कोर्ट ही सब कुछ करेगा क्या ! प्रशासन क्यों नहीं ! आप कल्पना कीजिये जिस देश की सर्कार ही रास्ट्र मंडल खेलो में हजारो सेक्स वोर्केर देश में बुला रही है या जुटा रही है , जिस देश का मानव संसाधन मंत्री स्कुलो में योन शिक्षा लागु करने की जिद पर अड़ा हो उस देश का sdo या adm लेवल का अफसर कोई कारवाही करेगा कोई उम्मीद नहीं ! अफसरों की तो रूचि उस कम में है जिसमे या तो पैसा मिले या बोस खुश रहे या सम्बंधित मंत्री खुश रहे या कभी कभी जनता या मीडया का बहुत प्रेसर पड़े! देश का दुर्भाग्य है जहा दुर्योग से अभारतीय मानस के लोग राज कर रहे है और अभी भविष्य किसने देख रखा है कही ऐसा अंग्रेजी मानसिकता का इन्सान सत्ता मे आजाये जिसकी अभीसे दर्जनों विदेशी गर्ल फ्रेंड्स है ,जिसके जीवन में कोई भारतीय संस्कार नहीं है , जो भारत को इंडिया बनाने की तम्मना रखता है !देखो और इंतजार करो

  2. Aadarniy manoj ji.
    Hum aaj ek bure daur se guzar rahe he. Sensar board to he lekin kitna upyogi he hum dekh hi rahe he. Wo film sensor karte he. Poster nahi. Aaj yadi hum kisi bhi city me nikal jaye to videshi filmo ke kitne kamuk poster public place par lage hote he. Isko kehne ki zarurat bhi nahi. Bhale is se adhik umar ke logo par galat prbhav na pade lekin kishor umar ke boys or girls par iska kya pirbhav padta he ye dekha ja sakta he. Sex apradh badh rahe hain. Iske lye administration kuch kyn nahi karta. Bachon me youn apradho ko badhane me ye bahut sahayak sidh ho raha he.
    Is par cr.p.c aur i.p.c me provison he. S.D.M ko power h. Lekin kuch nahi hota. Kya sirf har mamle me court hi hal reh gaya hai.

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