मिसेज बेरी

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मिसेज बेरी को आज फिर घर से निकलने में देर हो गयी थी.उनकी कोशिश तो यही रहती थी कि वह इसके पहले वाली बस पकड लें.उसके दो लाभ थे.एक तो वे समय पर आफिस पहुँच जाती थी,दूसरे उस बस में उनके मनपसंद की जगह मिल जाती थी,क्योंकि वह बस उनके घर से कुछ ही पहले शुरु होती थी,पर अक्सर ऐसा हो जाता था कि चलते समय ही किसी काफोन आ जाता और वे बस मिस कर जातीं. पर आज ऐसा कुछ नहीं हुआ था. आज तो उन्हें जगने में हीं देर हो गयी थी.तैयार होने में जो समय लगना था,वह तो लगा हीं.फिर तो देर होना हीं था. कभी कभी ऐसा भी हो जाता था कि वे घर से जैसे बाहर निकलती उन्हें किसी कार में लिफ्ट मिल जाता.उस दिन आफिस तक पहुँचने में उन्हें बहुत आराम महसूस होता.ऐसे भी मिसेज बेरी जैसी सुंदर महिला को लिफ्ट देने में बहुत लोग फक्र महसूस करते थे.

मिसेज बेरी आज भी जब घर से निकली,तो वे पूरे सजधज में थीं.उनका मेक अप करने का तरीका भी विलक्षण था.पैंतीस वर्षीया मिसेज बेरी मेक अप के बाद आज भी बीस वर्षीया रितु भाटिया लगती थी.लोगों की निगाहें बरवस उनकी ओर उठ जाती थीं.सौंदर्य के साथ साथ उनके चेहरे की ताजगी अक्सर लोगों का मन मोह लेती थी.लेकिन आज उनके चेहरे की ताजगी पर चिंता का परत पडा हुआ था. वे बस की ओर बढते हुए भी थोडी चिंतित नजर आरही थीं.उनके स्टाप पर पहुँचते ही बस आ गयी.बस ऐसे तो करीब करीब भरी हुई थी,पर उनको एक सज्जन के बगल में जगह मिल गयी.सहयात्री की ओर मिसेज बेरी की नजर उठती या सहयात्री उनको देख पाता, उनकी नजर सहयात्री के हाथ की पुस्तक पर पडी.लगता था कि वह भी बस में जल्दी ही चढा था और अभी उसने पुस्तक निकाली ही थी.पुस्तक था,नेकेड एमांग वूल्व्स (Naked among Wolves)यानि भेडियों के बीच नंगा.मिसेज बेरी को लगा कि यह पुस्तक तो उनकी अपनी कहानी है.वे भी तो भेडियों के बीच नंगी हैं और न जाने कब से नंगी हैं.वे बस में बैठ चुकी थी और आफिस जा रही थीं,उनके अंतर पटल पर एक एक करके उनके जीवन के द्ऋष्य चलचित्र की भाँति आते जा रहे थे.

उस दिन वे आधी रात के बाद घर लौटीं थी.दीपक बेरी अभी भी जगा हुआ था.उन लोगों का फ्लैट दो कमरो का था.दोनो कमरे आधुनिक ढंग से सजे हुए थे.फ्लैट को देख कर आभास भी नहीं होता था कि इसमें सहायक युगल रहते हैं. उनके रहन सहन में भी भव्यता दिखती थी.सुंदर तो दोनो थे ही.कमरे में आते ही रितु,जो अब मिसेज बेरी थी,सोने का उपक्रम करने लगी.वे थकी हुई थीं,मुँह से शराब की हल्की गंध भी आा रही थी,पर दीपक का मन तो उनकी सन्निघ्ता के लिेए छटपटा रहा था. आज शाम सेही वह चाह रहा था कि उसकी पत्नी जल्द आा जाए तो वे पति-पत्नी की तरह एक दूसरे के एक दूसरे के अंक में रात गुजारें.इस तरह के अवसर कम ही आते थे कि वे एक दूसरे के बाहों में में समा जाएं.दीपक की महत्वाकांक्षा,जिसकी सहभागी अब रितु भी थी,इस तरह के अवसर आने का मौका ही नहीं देती थी. आज जब रितु कपडे बदल कर सोने लगी तो दीपक ने उसे अपनी ओर खींचना चाहा.कुछ तो थकावट,कुछ शराब का नशा.

रितु को यह हरकत बहुत नागवार लगी.ऐसे उसके मन में कुछ अन्य विचार भी उठ रहे थे. आज ही पार्टी में राजेश भंडारी से मुलाकात हुई थी. राजेश भंडारी के व्यक्तित्व से वह बहुत प्रभावित हुई थी.लंबा कद,सांवला रंग.चेहरे पर एक विशेष चमक.वे एक प्रतिष्ठित कंपनी के प्रधान थे.उनकी उम्र छयालीस या सैंतालीस के आसपास होगी,पर शरीर के कसाव और छरहरेपन के कारण उनकी उम्र चालीस वर्षा से ज्यादा नहीं लगती थी.मिसेज बेरी को पता भी नहीं चला था और वे भंडारी साहब के बहुत करीब आ गयी थी.यह भी भंडारी साहब की एक चाल थी.मिसेज बेरी पर उनकी नजर तो बहुत पहले से थी,पर मौका हाथ नहीं लगता था.वे मिसेज बेरी की महत्कांक्षाओं से वाकिफ थे.उन्होने चारा फेंका था और बिछाया था जाल और मिसेज बेरी फँस गयी थी उसमें.उन्होने मिसेज बेरी को जन संपर्क अधिकारी बनाने का प्रलोभन दिया था.सहायक से पदाधिकारी! मिसेज बेरी को लगा कि वे स्वप्न देख रही हैं.उन्हें लगा था,दीपक कभी भी स्वीकार नहीं करेगा.वे दीपक को जानती थीं.दीपक उनको सोने की चिडिया समझता था,पर यह कभी गवारा नहीं कर सकता था कि उसकी पत्नी पदाधिकारी बने और वह सहायक बन कर रहे.राजेश भंडारी को उन्होनें एक आध दिनों में सोच कर उत़तर देने को कहा था और मेजवान द्वारा भेजे हुए कार में घर आ गयी थीं. रास्ते में उन्हें लग रहा था कि भंडारी साहब का प्रस्ताव तुरत स्वीकार कर लेना चाहिए था.पर अब तो कुछ नहीं हो सकता था.उन्हें कल का इंतजार तो करना ही था.ऐसे उन्हें अपनी जिंदगी से भी घ्ऋणा हो रही थी.गिर तो वे चुकी हीं थीं,पर क्या मिला था उन्हें?आज भी वे दीपक बेरी के हाथों का खिलौना थीं.वह जैसे चाहता था,उनका इस्तेमाल करता था.आज तो वे इतनी निर्भिक हो चुकी थीं कि दीपक बेरी का साथ भी उन्हें बोझ लगने लगा था.उन्होने दीपक बेरी को झिडक दिया,”मुझे नींद आ रही है,तंग मत करो.”

“मेरी जान,मेरा भी कुछ हक बनता है तुम पर”. यह दीपक बोला था.

पता नहीं किसी दूसरे दिन वह क्या उत्तर देती,पर आज तो वह बहुत ऊँचा सोच रही थी.भंदारी साहब का प्रस्ताव और उसपर शराब का नशा.वे तो सातवें आसमान पर थी.वे विफर पडी,

“कौन सा हक,किस हक की बात कर रहे हो तुम?”

“मेरी जान, तुम शायद भूल गयी कि मैं तुम्हारा पति हूँ.अग्नि के समक्ष सात फेरे लिये हैं मैने तुम्हारे साथ.”

मिसेज बेरी हँस पडी,”तुम्हारे मुँह से यह सात फेरों वाली बात जँचती नहीं. सच पूछो तो मैं तुम्हे पिंप से ज्यादा कुछ नहीं समझती”.

दीपक के वदन में तो जैसे आग लग गयी,”मैं,मैं अगर पिंप हूँ तो तुम वेश्या हो.”

“सच पूछो तो मैं अपने को वेश्या से अच्छी समझती भी नहीं.यह तुम्हारी महत्वकांक्षा थी जिसने मुझे ऐसा बना दिया है.क्या क़या अभिलाषाएं थी मेरी?मैं सादगी भरे जीवन में भी संतुष्ट रहती,पर तुम्हें संतोष कहाँ?अज जब तुमने वेश्या कह ही दिया है तो इतना और सुन लो,पिंप को वेश्या के शरीर से खेलने का कोई अधिकार नहीं होता”.

दीपक बेरी कुछ और भी कहना चाहता था ,पर आधी रात को झगडा बढाने में उसे मूर्खता नजर आयी और वह चुप हो गया.उसकी चुप्पी ने मिसेज बेरी को भी चुप कर दिया.मिसेज बेरी को नींद नहीं आ रही थी.उन्हें याद आ रही थी,रितु भाटिया,जो एक अल्हड षोडसी के रूप में नयी नयी कालेज में आयी थी.कालेज में कोई नयी लडकी और वह भी सौंदर्य की प्रतिमा,फिर भी छुई मुई सी और लोगों की निगाहें उसपर न पडे,ऐसा तो संभव ही नहीं था. निगाहें तो औरों की भी पडी थी,पर दीपक बेरी तो पहली ही नजर में उसका दीवाना बन गया था.द्वितिय वर्ष का छात्र दीपक उससे एकांत में करने के लिये अपना सर्वस्व न्योछावर कर सकता था उसको तो लगने लगा था कि यह सुंदरी अगर उसकी जीवन संगिनी बन जाये तो वह कुछ भी कर सकता था.रितु भाटिया इन सबसे अनजान नये माहौल में अपने को ढालने में लगी हुई थी. उसको तो पता भी नहीं चला था कि एक लंबे,छरहरे ,गौर वर्ण के युवक की निगाहें हर वक्त उसका पीछा कर रहीं थीं.बहुत दिन लग गये थे दीपको रितु के निकट आते आते,पर उसने हिम्मत नहीं हारी थी.अंत में उसका धैर्या रंग लाया था.उस दिन रितु कालेज कैंटीन के एक टेबल पर अकेली ही चाय का प्याला लिए बैठी थी.दीपक भी एक कप चाय लेकर उसी टबल की ओर बढा और रितु सर बैठने की इजाजत मांगी.रितु ने मुस्कुरा कर उसे बैठने को कहा.दीपक को रितु ने पहले भी देखा था और वह उसके व्यक्तित्व से प्रभावित भी थी,पर उसको तो यह गुमान भी नहीं थाकि दीपक भी उसको पसंद करता है.आज जब दोनो एकसाथ बैठे और थोडी झिझक के बाद बातों का सिलसिला आरंभ हुआ तो थोडी ही देर में वे एक दूसरे के परिचित बन गये.बाद में कुछ दिनों तक फिर मुलाकात नहीं हुई थी. दोनो अपनी अपनी दिनचर्या में लगे हुए थे,पर,लगता है,उस दिन की मुलाकात दोनो ही नहीं भूले थे.दूसरी बार जब उसी कैंटीन में हुई तो ऐसा लगा कि बहुत दिनों के बिछुडे हुए साथी मिले हों.दीपक को लग रहा था कि वह रितु पर अपना प्रभाव जमाने में कामयाब रहा.इसके बाद उनके मुलाकातों का सिलसिला चलता रहा.दीपक तो बी.ए. करने के बाद सहायक के पद पर नियुक्त हो गया था.वह प्रतीक्षा कर रहा था रितु के बी.ए. पास करने का.जब दीपक और रितु के शादी का कार्ड लोगों को मिला तो दीपक के पुराने मित्रों को तो कोई आश्चर्य नहीं हुआ.रिसेप्शन में उसकी पत्नी का सौंदर्य बहुत लोगों के दिल में दर्द उपजा गया.उसके बास की नजर भी रितु पर पडी,पर कुछ सोच कर उन्होने उस इस बात को ज्यादा अहमियत नही दी.दीपक के प्रयत्नों से रितु को भी उसी के दफ्तर में सहायक की नौकरी मिल गयी. रितु को नौकरी की नौकरी दीपक के प्रयत्नों के फलस्वरूप मिली कि उसके अपने सौंदर्य के बल पर यह तो उनके दफ्तर में बहुत दिनों तक चर्चा का विषय रहा.रितु ने अपने स्वभाव और सौंदर्य के बल पर जल्द ही दफ्तर में अपना स्थान बना लिया.मिसेज बेरी को अभी भी वह दिन याद है,जब पहली बार वे दीपक के साथ पार्टी में शामिल हुई थीं.उनको आश्चर्य तो हुआ था कि उनके और दीपक के अतिरिक्त दफ्तर का कोई स्टाफ उस पार्टी में नहीं था.महिलाएं और लडकियाँ तो थीं ,पर ज्यादातर लोग उनके बास के साथी थे.महौल तो मिेसेज बेरी को अच्छा नही लगा था और लौटने पर उन्होनें इसका जिक्र भी किया था,पर दीपक ने उस पर ध्या देने की कोई आवश्यकता ही नहीं समझी.उसे तो अपनी उन्नति का दरवाजा खुलता हआ नजर आया था.उसे रितु से शादी करना सार्थक नजर आने लगा था और उसे रितु में अपने उन्नति का पथ द्ऋष्टिगोचर हो रहा था.ऐसे तो रितु बेरी को भी अपने सौंदर्य की प्रसंशा अच्छी ही लगी थी.पार्टी में वे सबसे सुंदर थीं और बडे लोगों पर अपना प्रभाव भी उन्होनें महसूस किया.पता नही8 वह कौन सी कमजोरी थी कि वे खुल कर या प्रच्छन रूप में भी विरोध न कर सकी थी उस दिन?काश! उन्होनें ऐसा कुछ किया होता.धीरे धीरे वे पार्टियों का मुख्य आकर्षण बन गयीं.बाद में तो ऐसा समय भी आया जब वे बहुधा दीपक की अनुपस्थिति में भी पार्टियों में शामलि होने लगीं.इसका प्रभाव भी उनके रहन सहन पर द्ऋष्टिगोचर होने लगा.तरक्की तो उन दोनो की कोई खास नहीं हुई,पर दीपक की पोस्टींग ऐसे जगह कर दी गयी कि वह दोनो हाथों से धन बटोरने लगा.एक तरफ तो उन लोगों का धन और प्रभाव बढता रहा ,दूसरी रितु बेरी गहरे दलदल में फंसती गयी.पहली बार जब वे धोखे से शराब पिला कर अपने बास से भी ऊँचे अफसर की शय्या संगिनी बनायी गयी थीं तो उन्हें बहुत बुरा लगा था,पर उसके बाद मिलने वाले लाभ ने उनके मन से वह कसक भी निकाल दी थी. कभी कभी उनको यह भी लगता था कि आखिर वे जो कर रहीं हैं,वह सब उनके पति की जानकारी में हो रहा है.उनको यह ख्याल भी कभी कभी आता था कि दीपक का प्यार,फिर उनके साथ दीपक की शादी,सबकुछ एक सुनिश्चित योजना अंतर्गत हुआ था.दीपक की धन लोलुपता और उसकी महत्वाकांक्षा ही शायद कारण बनी थी रितु की ओर उसके बढने का.

इन सब बातों को तो अब वर्षों गुजर गये थे.बाद में तो ऐसा भी होता था कि दीपक बेरी स्वयं उसको पार्टियों में छोड आता था या कभी कभी कार उनको अकेले ही ले जाती थी.जिंदगी की रंगिनियाँ और चमक दमक ने रितु बेरी को पूर्ण रूप से अपने दामन में समेट लिया था.कभी कभी दर्पण के सामने खडा होने पर उन्हें रितु भाटिया अवश्य याद आा जाती थी ,पर वे इन विचारों को अपने दिलोदिमाग पर कभी हावी नहीं होने देती थीं.उन्होनें समझ लिया था कि उनका मादक सौंदर्य उनका सबसे बडा अस्त्र है और उसको अक्षुण रखने के लिये वे सदा प्रयत्नशील रहती थीं. यही कारण था कि किसी के लिए भी उनकी उम्र का अंदाजा लगाना बहुत कठिन होता था.बीच बीच में दीपक से थोडे मन मुटाव भी हो जाते थे,पर आज वाली नौबत पहले कभी नहीं आयी थी.

दूसरे दिन मिसेज बेरी ने अपना फैसला राजेश भंडारी को सूचित कर दिया था और राजेश भंडारी ने उन्हें तुरत बुलवा लिया था.उनकी नयी नौकरी का पता तो दीपक बेरी को भी थोडे दिनों के बाद ही लगा था.,वह भी तब जब उन्होनें दफ्तर में अपना इस्तिफा प्रस्तुत किया था.उनके बास की अनिक्षा केबावजूद उस इस्तिफे को मंजूरी मिल गयी थी.राजेश भंडारी का प्रभाव ही कुछ ऐसा था.दीपक ने अपने को बुरी तरह अपमानित महसूस किया था और अपनी पत्नी से झगड पडा था.अब उनलोगों के लिए एक दूसरे को बर्दास्त करना भी मुश्किल हो गया था.दीपक जानता था कि पत्नी को छोडना उसे बहुत महंगा पडेगा ,पर उसे अपनी बुद्धि पर कुछ ज्यादा ही भरोसा था.उसे लगा कि जब वह रितु भाटिया जैसी छुई मुई लडकी को ऐसा बना सकता है ,तो वह किसी अन्य को भी क्यों नहीं बना सकता?ऐसे भी उसको लगने लगा था कि पदाधिकारी बन जाने के बाद रितु उसकी पत्नी बन कर रहना कभी भी स्वीकार नहीं करेगी.उसने तलाक की पेशकश की जिसे रितु बेरी की भी मंजूरी मिल गयी थी.तलाक होने में कोई ज्यादा अडचन नहीं आयी.उन दोनों ने अपना जीवन इस तरह का बना लिया था कि उनके नजदीकी मित्र भी कोई खास नहीं थे,जो उनको समझाते. फिर भी एक दो लोगों ने प्रयत्न किया, पर उन्हें भी मुहकी खानी पडी.सब ओर से स्वतंत्र होकर रितु बेरी ने अपने काम की ओर ध्यान देना शुरु किया.कंपनी ने उनके लिए आधुनिक सजावट से युक्त एक अच्छे फ्लैट का प्रवंध कर दिया था.अपने फ्लैट की सजावट पर मिसेज बेरी को थोडा आश्चर्य अवश्य हुआ,पर जब दो या तीन दिनों के बाद राजेश भंडारी ने उनका फ्लैट देखने और उनके साथ चाय पीने की पेशकश की तो फ्लैट की सजावट का रहस्य उनकी समझ में आगया.दीपक बेरी का साथ छोडने के बाद भी उन्होनें अपने नाम से बेरी उपनाम नहीं हटाया था,क्योंकि भाटिया उपनाम फिर से लगाने में उनकी रूह काँप गयी थी.उनको लगा थाकि उस उपनाम की अब वह हकदार नहीं थीं.भंडारी साहब ने वह रात मिसेज बेरी के साथ काटी थी और सुबह होने से पहले चले गये थे.

भंडारी साहब द्वारा जन संपर्क अधिकारी का आफर और जन संपर्क अधिकारी बनने तक मिसेज बेरी के दिमाग में एक विवार हमेशा हलचल मचाये रहता था कि आखिर एक असिस्टेंट को भंडारी साहब ने जन संपर्क अधिकारी क्यों बना दिया?उन्हें अपने सौंदर्य पर अभिमान भी होने लगा था.भंडारी साहब के इस अनुग्रह के बदले एक दो रातें उनके साथ बीतने में मिसेज बेरी को कोई एतराज नहीं था.सती सावित्री तो वे थी नहीं.तलाक के बाद तो वे हर तरह के वंधनों से मुक्त हो गयी थीं.भंडारी सहब शादी शुदा थे.उनकी अपनी ग्ऋहस्थी थी.बिना किसी खास योग्यता के इस पद को वे अपनी तिकडमबाजी से ही हासिल कर पाये थे. वह तो भला हो उस राज्य मंत्री का जिसने कैबिनेट मंत्री के विदेशी दौरे के दौरान फइल प्रधान मंत्री के सचिवालय में बढा दी थी.प्रधान मंत्री के प्रधान सचिव भंडारी साहब के अपने आदमी थे.बस काम बन गया था.बदलते सरकारों के बीच जब बडे बडे दिग्गज धरासाई हो गये थे,भंडारी साहब उसी तरह अपने पद पर कायम थे.कंपनी के बिगडते हुए हालात भी उनके प्रभाव को कम नहीं कर सके थे.ऐसे आदमी के साथ एक आध रातें गुजारना मिसेज बेरी के लिए भी आनंद दायक ही था.

कुछ दिनों के बाद उनको मंत्री के साथ विदेश जाने वाले डेलिगेसन में जन संपर्क अधिकारी के रूप में शामिल के दिया गया था.इस आफर पर तो वे झूम उठी.भंडारी साहब के लिए पूर्ण समर्पण की भावना व्याप्त हो गयी उनमें.उनको लगने लगा कि भंडारी साहब ने उन्हें सदा के लिए अपना ऋणी बना दिया.एक खटका उन्हें अवश्य महसूस हुआ वे सरकारी दफ्तर में काम कर चुकी थीं.उन्हें पता था कि हर मिनिस्टरी में एक से अधिक जन संपर्क अधिकारी होते हैं.फिर उनलोगों को नजर अन्दाज करके उन्हें ही क्यों चुना गया?पर पासपोर्ट और वीसा की व्यस्तता में वे इस ओर ज्यादा ध्यान न दे सकीं.भंडारी साहब की ओर से भी इस बीच कोई बुलावा नहीं आया था.प्रस्थान के एक दिन पूर्व भंडारी साहब के दरबार में उनकी तलब हुई.वे खुशी खुशी हाजिर हुईं.भंडारी साहब अकेले ही थे और मिसेज बेरी के अंदर घुसते ही हमेशा की तरह भंडारी साहब के कमरे के बाहर लाल बत्ती जलने लगी,जो इस बात का सूचक था कि साहब गोपनीय मीटींग में हैं.

भंडारी साहब के साथ उस दिन की बातचीत से न केवल मंत्री के साथ उनको भेजे जाने का रहस्य समझ में आया,बल्कि यह भी समझ में आ गया कि वे जन संपर्क अधिकारी क्यों बनाई गयी थीं.भंडारी साहब को बडे लोगों की सुरा और सुंदरी के प्रति कमजोरी ज्ञात थी.वे यह अच्छी तरह जानते थे कि ऐसे लोग अपने स्वच्छ छवि के प्रति भी सजग रहते हैं.साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे वाली बात थी.आज उनके समझ में यह भी आा गया कि स्मार्ट लडकियाँ और महिलाएँ निगम के इस प्रधान कार्यालय में विभिन्न पदों पर क्यों पदासीन हैं.उनको भंडारी साहब ने अच्छी तरह समझा दिया था कि विदेश यात्रा में मंत्री को हर तरह से प्रसन्न रखना उनकी जिम्मेवारी है.शिकायत का मौका नहीं आना चाहिए.इस प्रच़्छन धमकी का अर्थ भि उनकी समझ में आ गया था. विदेश यात्रा के दौरान शिकायत का मतलब केवल नौकरी से हाथ धोना नहीं होता,बल्कि और भी कहर ढाये जाते.उस समय मिसेज बेरी के मस्तिष्क के कोने में यह विचार अवश्य कौंधा कि वे कहाँ पहुच चुकी हैं.पर एक झटके में यह विचार भी आया कि बलात्कार होना अवश्यंभावी है तो उसका आनंद क्यों न उठाया जाये. उनको यह भी लग रहा था कि इस हालात के लिए वे स्वयं भी तो कम जिम्मेवार नहीं हैं.

मंत्री महोदय आसाम की तरफ से आये थे.टेढा सा नाम था उनका.वह नाम मिसेज बेरी को कभी याद नहीं रहा.वे उनको टी.सिंह के नाम से याद करती थीं.मंत्री महोदय की उम्र चालीस के लगभग थी.नाक नक्श तो कोई खास नहीं था,पर उनके शरीर का कसाव और चेहरे की रौनक उनको जवानों की श्रेणी में बैठा देती थी.मिसेज बेरी ने इस यात्रा को बहुत इन्जाय किया.लोग बाग भी मिसेज बेरी को जन संपर्कअधिकारी से ज्यादा मंत्री महोदय की प्रेमिका समझते थे.मंत्री महोदय के संग बिताये क्षणों के सथ साथ विदेशों से गिफ्ट की भरमार ने मिसेज बेरी को आनंद से सराबोर कर दिया.उनको यह भी याद नहीं रहा कि पूरे यात्रा के दौरान उनका दर्जा ज्यादा से ज्यादा मंत्री महोदय की अस्थाई रखैल या उच्च श्रेणी की वेशया का रहा.उनको बस यही ध्यान रहा कि कितनों को मिल पाता है यह अवसर.मंत्री महोदय यात्रा के दौरान उनके व्यवहार से बहुत प्रसन्न हुए थे और उनके बारे में बहुत अच्छी रिपोर्ट दिये थे.भंडारी साहब ने तो उन्हें तुरत वेतन व्ऋद़धि दे दिया था और वादा किया था कि उन्हें जल्द से जल्द पदोन्नति दे देंगे .

मिसेज बेरी अपनी व्यवहार कुशलता और अप्रतिम सौंदर्य के बल पर भंडारी साहब को प्रसन्न रखने में कामयाब रहीं थीं.उन्हें जल्द ही तरक्की मिल गयी थी.इसी बीच देश और विदेश में भ्रमण के अवसर भी उन्हे प्राप्त होते रहे थे.सेक्रेट्री स्तर के आफिसर तक फ्लैट में उनके मेहमान बन चुके थे.सबसे ज्यादा कोफ्त उन्हे इन बूढे सचिवों से होती थी.वे स्वयं तो एन्जवाय कर नहीं पाती थी इनके साथ,पर उनका उनके नखडे षने को बाध्य करता था मिसेज बेरीा को.वे दिनोदिननीचे गिर रहीथीं,पर भान भी नहीं होरहा था उनको इस सबका.पता नहीं वे किस स्वप्न लोक में विचर रही थीं.

पर कल तो हद हो गयी.कल मिसेज बेरी उर्फ रितु संपूर्ण नंगी कर दी गयी.उनके और वेश्या कहे जाने के बीच जो झीना पर्दा था वह कल हट गया था और वह नंगी खडी थीं,एकदम नंगी.अभी तक वे उच्च अधिकारियों या मंत्री के संपर्क में आयी थी,पर कल तो कुछ और हो गया.

राजेश भंडारी के एक अभिन्न मित्र अमेरिका मे रहते थे.भंडारी साहब ने बातों ही बातों में श से उनका जिक्र भी किया था.राजेश भंडारी के वही मित्र आजकल उनके शहर में आये हुए थे और एक पंच सितारा होटल में ठहरे हुए थे.कल शाम को राजेश भंडारी जब उनसे मिलने जा रहे थे,तो उन्होनें मिसेज बेरी को भी कहा कि तुम वहाँ आ जाओ.मैं तुम्हारा परिचय उनसे कराना चाहता हूँ.परिचय का अर्थ अब मिसेज बेरी के समझ में अच्छी तरह आने लगा था.राजेश भंडारी ने यह भी कहा था कि वे सज्जन उनके अभिन्न मित्र हैं और अमेरिका में उनका बहुत प्रभावहै.भंडारी साहब ने इससे ज्यादा बताना मुनासिब नहीं समझा था.ज्यादा कुरेदने का साहस भी मिसेज बेरी में कहाँ था?

मिसेज बेरी टैक्सी से वहाँ पहुँची थीं,उनको मालूम था कि वहाँ राजेश भंडारी और उनके मित्र के अतिरिक्त अन्य कोई नहीं होगा.भंडारी साहब भी अपनी व़यस़तता बता कर थोडी देर बाद ही वहाँ से खिसक गये थे.भंडारी साहब के मित्र के साथ तीन घंटे बीता कर जब रात्रि के एक बजे वह टैक्सी में घर के लिए रवाना हुईं थीं तब उन्हें पहली बार अपने आप से पूरी तरह घ्ऋणा हो रही थी.विदा होते समय उस सज्जन ने मिसेज बेरी को धन्यवाद देते हुए अमेरिका आने का निमंत्रण भी दिया था.मिसेज बेरी ने शायद सुना भी नहीं था और टैक्सी में बैठ गयी थीं.आज उन्हें लग रहा था कि वे आदमखोर जानवरों के बीच फँसी हुई थीं,जो उनको नोच नोच कर खा रहे थे.आत्महत्या के अतिरिक्त इस नर्क से निकलने का कोई मार्ग भी उन्हें नहीं सूझ रहा था,पर वे जानती थीं कि आत्महत्या करने का साहस उनमें नहीं है.यही सब सोचते सोचते वे नींद की गोली खाकर सो गयी थी और देर से जगी थी.

पैंतालीस मिनट का सफर तय करके बस अपने गंतव्य स्थान पर पहुँच चुकी थी.सहयात्री के ‘एक्सक्यूज मी’ ‘कहकर उतरने का उपक्रम करने पर उनकी तंद्रा भंग हुई.वे भी अपने वेहरे का मेक अप ठीक करके बस से उतर कर सधे हुए कदमों के साथ अपने दफ्तर की ओर वल पडी.

 

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  1. महानगरों की महत्त्वाकांक्षी युवा महिलाओं का यथार्थ और मार्मिक चित्रण … साधुवाद … उतिष्ठकौन्तेय

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