मुहिम : राजनीति को अपराधियों से मुक्त कराने की

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भारतीय राजनीति में गत तीन दशकों से जिस प्रकार अपराधी प्रवृति के लोगों, पेशेवर अपराधियों तथा अपराधी सरगनाओं की घुसपैठ बढ़ती जा रही है। इस दुर्भागयपूर्ण घटनाक्रम ने भारतीय राजनीति को न केवल राष्ट्रीय बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी शर्मसार कर दिया है। यह देश की संसद व विधानसभाओं में अपराधियों की बढ़ती संख्या का ही परिणाम है जिसके चलते हमारे देश के इन संवैधानिक एवं सम्मानपूर्ण स्थलों को भी कभी-कभी अराजकता के माहौल से रूबरू होना पड़ता है। भारतीय राजनीति के वर्तमान चेहरे को देखकर कभी-कभी यह एहसास होता है कि इसी प्रकार कहीं अपराधिक तत्वों के हाथों में ही गोया देश की पूरी की पूरी राजनीति ही भविष्य में कहीं न चली जाए। देश के कई अपराधी मांफिया सरगनाओं द्वारा देश के किसी राज्य अथवा परिक्षेत्र की पूरी सत्ता पर अपना कब्‍जा जमाने के हौसलों के संकेत भी मिल चुके हैं। इसे महज देश का सौभागय ही कहा जा सकता है कि ऐसे मांफिया सरगनाओं की योजनाएं किसी कारणवश अभी तक तो परवान नहीं चढ़ सकी हैं।

बहरहाल, बदलते समय के साथ अब ऐसा लगने लगा है कि पानी सिर से ऊपर पहुंचने को है। देश की आम जनता ही नहीं बल्कि ईमानदार व स्वच्छ छवि वाले राजनेताओं को भी अब यह लगने लगा है कि जिन अपराधी तत्वों की ख़राब छवि की वजह से देश की संसद व विधानसभाओं की गरिमा धूल-धूसरित हो रही है उन्हीं अपराधियों के हौसले निश्चित रूप से कल इस कदर बढ़ सकते हैं कि वे इन चंद बचे-खुचे शरींफ एवं राजनीति के वास्तविक जानकार नेताओं के लिए भी परेशानी खड़ी कर दें। परंतु इस नौबत तक पहुंचने से पहले ही ऐसा लगता है कि देश की राजनीति में कुछ ऐसी सुधार व्यवस्था लागू की जाने वाली है जिससे कि भारतीय राजनीति को अपराधियों के चंगुल से मुक्त कराने में सहायता मिल सकेगी।

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने पिछले दिनों भारतीय चुनाव आयोग की 60वीं सालगिरह के मौक़े पर आयोजित आयोग के हीरक जयंती समारोह में अपना भाषण देते हुए भारतीय चुनाव आयोग सहित पूरे देश का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया है। बावजूद इसके कि प्रत्येक राजनैतिक दल की ही तरह कांग्रेस में भी कई ऐसे सांसद हैं जिनकी पृष्ठभूमि आपराधिक है। परंतु इसके बावजूद सोनिया गांधी ने सभी राजनैतिक दलों का आह्वान किया है कि आपसी सहमति के द्वारा ऐसे उपाय करें जिनसे अपराधी छवि के दांगदार व्यक्तियों को किसी भी पार्टी की ओर से अपना प्रत्याशी न बनाया जाए। सोनिया गांधी के इस आवाहन से प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी अपना सुर मिलाते हुए इस दिशा में कठोर कदम उठाने तथा पूर्ण पारदर्शिता बरतने की बात भी कही है। इसी समारोह में मौजूद कानून मंत्री वीरप्पा मोईली ने भी सोनिया गांधी के विचारों की सराहना की तथा अपने मंत्रालय के स्तर पर पूर्ण सहयोग देने की बात कही।

प्रश् यह है कि भारतीय राजनीति से अपराधियों का सफ़ाया क्या अब इतना आसान रह गया है कि उन्हें एक दो सत्रों अथवा पांच-दस वर्षों में भारतीय नाजनीति से नकारा जा सके। राजनीति में प्रवेश पा चुके तथा स्थापित हो चुके अपराधी एवं दांगदार छवि रखने वाले लोगों की भी कई प्रकार की श्रेणियां हैं। इनमें कई अपराधी तो केवल इसलिए राजनैतिक कवच ओढ़े हुए हैं ताकि उनकी अपनी जान सुरक्षित रहे तथा वह किसी पुलिस मुठभेड़ अथवा अपने विरोधी गिरोह की सांजिश का शिकार न होने पाएं। कुछ ऐसे अपराधी राजनीति में सक्रिय हैं जो बांकायदा अपना गिरोह या गैंग संचालित करते हैं। और या तो अपने-अपने राज्यों में अन्यथा राज्य के बडे हिस्से पर अपना पूरा नियंत्रण रखते हैं। कई राज्यों के धनार्जन वाले कई महत्वपूर्ण संसाधनों जैसे रेत, बजरी, मिट्टी खनन व्यापार, निर्माण कार्य तथा प्रापर्टी कारोबार आदि पर इनका एकछत्र नियंत्रण होता है। नीलामी, टेंडर, बोली आदि सब कुछ इन्हीं के गुर्गों द्वारा शासन व प्रशासन की नाक तले किया जाता है। देश के अधिकांश विभिन्न प्रकार के खनन क्षेत्रों पर भी इन्हीं का कब्‍जा देखा जा सकता है। राजनीति, अपराध, बाहुबल तथा धनार्जन का यह संयुक्त गठजोड़ केवल कानूनों का घोर उल्लंघन ही नहीं करता बल्कि पर्यावरण पर भी अपना दुष्प्रभाव डालता है। परंतु अपराधियों की सत्ता तक सीधी पैठ होने के कारण संबंधित विभाग के कर्मचारी व अधिकारी मूक दर्शक बने रहने को मजबूर रहते हैं। और यदि किसी राष्ट्रभक्त तथा नियमों का पालन करने वाले किसी अधिकारी ने इन राजनैतिक मांफियाओं के अवैध खनन या अवैध निर्माण के कारोबार पर उंगली उठाने का साहस किया तो उसे किसी भी परिस्थिति का सामना करना पड़ सकता है। आम आदमी तो इन परिस्थितियों में कुछ बोलने व कहने का साहस ही नहीं जुटा सकता।

दरअसल चाहते तो सभी दलों के नेता यही हैं कि राजनीति के अपराधीकरण पर नकेल कसी जाए परंतु यही राजनैतिक दल इस विषय पर एकमत नहीं हो पाते तथा इस समस्या से निपटने के समाधान को लेकर किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंच पाते। परंतु सोनिया गांधी के इस तांजातरीन आव्हान ने अब न केवल गेंद अन्य राजनैतिक दलों के पाले में डाल दी है बल्कि भविष्य के चुनावों के लिए यह संभावना भी व्यक्त की जाने लगी है कि कोई राजनैतिक दल कुछ करे या न करे परंतु कम से कम राजनीति को अपराधियों से मुक्त कराने का आव्हान करने वाली कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी किसी दांगदार छवि वाले अथवा अपराधी प्रवृति के व्यक्ति को कांग्रेस का पार्टी प्रत्याशी तो संभवत: नहीं बनाएंगी। उधर राहुल गांधी भी राजनीति में अपराधियों की बढ़ती घुसपैठ से नाख़ुश हैं। वे देश में जहां भी छात्रों व युवाओं से मिलते हैं उन्हें राजनीति में भाग लेने हेतु आमंत्रित करते हैं। राहुल ने पिछले दिनों गोवा में छात्रों से मुलांकात के दौरान यह भी कहा कि युवाओं के राजनीति में सक्रिय होने के परिणामस्वरूप अपराधी स्वयं राजनीति से पलायन कर जाएंगे। राहुल का दावा है कि इस समय भारतीय राष्ट्रीय छात्र संगठन तथा युवा कांग्रेस जैसे कांग्रेस पार्टी के सहयोगी संगठनों में दागदार अथवा अपराधी छवि का कोई भी व्यक्ति नहीं है। यदि कुछ लोग ऐसे थे भी तो उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया है। यदि राहुल गांधी की मानें तो वे युवा कांग्रेस में अपराधियों की घुसपैठ न होने पाए इसके लिए संगठन पर पूरी बारीक नजर रखते हैं।

कितना दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के कुल सांसदों में 153 सांसद ऐसे हैं जिनपर घोर अपराधिक मामलों में मुंकद्दमें अदालतों में विचाराधीन हैं और इन्हीं में 74 सांसद ऐसे हैं जिनपर कत्ल, कत्ल का प्रयास, डकैती, अपहरण व फिरौती वसूलने जैसे संगीन अपराधों के आरोप हैं। इसी प्रकार यदि 14वीं लोकसभा पर नजर डालें तो हम देखेंगे कि उस समय भी देश के 17 राज्यों व दो केंद्र शासित प्रदेशों से संबद्ध 125 सांसद घोर अपराधी छवि वाले थे। अब जरा इन अपराधियों की दलगत स्थिति पर भी नंजर डालिए। 14वीं लोकसभा में देश की संसद को दांगदार बनाने में जहां भारतीय जनता पार्टी के सबसे अधिक 23 सांसद शामिल थे वहीं कांग्रेस पार्टी भी 17 सांसदों के साथ इस शर्मनाक दौड में भाजपा से कुछ ही कदम पीछे थी। लालू यादव के राष्ट्रीय जनता दल के 7,समाजवादी पार्टी के 9 तथा बहुजन समाज पार्टी के 5 सांसद पिछली लोकसभा की छवि को धूमिल करने के भागीदार थे। इन आंकड़ों में आश्चर्यचकित करने वाली बात यह भी है कि उपरोक्त अधिकांश सांसद दूसरी बार अपने-अपने क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व कर रहे थे।

ख़ुशी की बात है कि अब हमारे देश के शीर्ष नेता,बुद्धिजीवि तथा आम लोग अपराधीकृत राजनैतिक व्यवस्था से संभवत: ऊब चुके हैं और इन्हें इनकी वास्तविक औंकात तक पहुंचाने का मन बना चुके हैं। अब इस सुधार व्यवस्था के अंर्तगत क्या उपाय किए जाते हैं तथा इन्हें कैसे लागू किया जाता है यह जरूर चिंता का विषय है। यदि कांग्रेस के साथ सभी राजनैतिक दल यह मन बना भी लेते हैं कि अपराधी रिकार्ड रखने वाले या अपराधी छवि के लोगों को पार्टी अपना प्रत्याशी नहीं बनाएगी तो भी क्या इस पर पूरा नियंत्रण पाया जा सकेगा? किसी निर्दलीय प्रत्याशी को किसी राजनैतिक दल के समर्थन देने को कैसे रोका जा सकेगा। ऐसे घिनौने खेल कई राजनैतिक दलों द्वारा पहले भी खेले जा चुके हैं जबकि स्वतंत्र प्रत्याशी के रूप में लड़ रहे किसी बाहुबली के पक्ष में किसी राष्ट्रीय राजनैतिक दल ने अपने घुटने टेक दिए हों। कई बार यह देखा जा चुका है कि पार्टी विशेष ने अपना प्रत्याशी खड़ा करने के बजाए किसी बाहुबली निर्दलीयअपराधी को समर्थन देकर विजयी बनवाया। दूसरी बात यह कि निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में यदि कोई अपराधी व्यक्ति चुनाव लड़ना चाहे तो भारतीय चुनाव आयोग उस पर कैसे लगाम लगा सकेगा। जाहिर है यहां सरकार तथा केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा ही कुछ ऐसे नए मापदंड स्थापित करने पड़ेंगे जो पुराने मापदंडों से अलग हटकर हों। अर्थात् केवल संजायाफ्ता व्यक्ति ही चुनाव लड़ने के लिए अयोग्य नहीं हो बल्कि उसे भी चुनाव लड़ने से रोका जा सके जिस पर अपराधिक मुंकद्दमे चल रहे हों, जिससे समाज में भय व आतंक फैलता हो तथा जो अपराधिक व दांगदार छवि रखता हो। देश में दो दशकों से अपराधी व दांगदार राजनीतिज्ञों के विरुद्ध छिड़ी बहस में सोनिया गांधी के आव्हान ने बेशक नई जान फूंक दी है। कहा जा सकता है कि कांग्रेस अध्यक्ष के साथ अन्य सभी दल मिलकर इस विषय पर यदि चाहें तो बहुत कुछ कर सकते हैं। हमें यह मानना चाहिए कि राजनीति को आपराधियों के चंगुल से मुक्त करना एक कठिन कार्य जरूर हो सकता है परंतु यह असंभव बिलकुल नहीं है।

-तनवीर जाफरी

1 COMMENT

  1. सोनिया गांधी तो खुद को महात्मा गांधी समझकर बड़ी-बड़ी बाते करके सिर्फ गाल बजाती फिरती है. जबकि भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में सर्वाधिक राजनीतिक गुंडे तो कोंग्रेस ने पैदा किए, पाले-पोसे हैं. पिछली बार मनमोहन सिंह की सरकार में इतने दागदार मंत्री थे की दुनिया के सारे रिकोर्ड टूट गए. तसलेमुद्दीन से लेकर लालू और शिबू सोरेन से लेकर सज्जन कुमार और जगदीश टाइटलर कोंग्रेस सरकार का हिस्सा रहे हैं. ऐसे में इनसे उम्मीद करना ही बेकार है.

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